बरेली (ब्यूरो)। महिलाओं के अधिकार और उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का भारत में व्यापक दुरुपयोग हो रहा है। यह बात एमजेपीआरयू के लॉ डिपार्टमेंट की रिसर्च में सामने आई है। पांच वर्ष में किए गए इस रिसर्च में आठ प्वाइंट्स पर फोकस रखकर रिसर्च की गई। एनसीआरबी और डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों को भी रिसर्च में शामिल किया गया है। रिसर्च में बताया गया है कि किस किस तरह से महिलाएं पुरुषों का और उनके संबंधियों को प्रताडि़त करती है। इसके साथ ही बताया भी है कि किन कानूनों में बदलाव की जरूरत है इस बारे में भी सुझाव दिए हैं ताकि परिवार को टूटने से बचाने के साथ पुरुषों का उत्पीडऩ रोका जा सके। यह रिसर्च एमजेपीआरयू के लॉ डिपार्टमेंट के अक्लेश कुमार ने की। शोध का विषय भारत में महिलाओं के लिए संरक्षण कानूनों द्वारा पुरुषों का उत्पीडऩ एक कानूनी अध्ययन है।

आठ प्वाइंट्स पर स्टडी
रिर्सचर अक्लेश कुमार ने अपना शोध विधि विभाग के पूर्व एचओडी डॉ। हरवंश दीक्षित के पर्यवेक्षण में पांच वर्षों में पूरा किया। शोधार्थी विधि विभागाध्यक्ष डॉ। अमित सिंह का भी आभार जताया। सैद्धांतिक आधार पर किए गए इस शोध में 8 अध्यायों में विभाजित किया। इसके लिए शोधार्थी ने विभिन्न अधिनियमों, विनियमों, विधि आयोग की रिपोट्र्स, पुस्तकों, शोध पत्रिकाओं एवं शोध लेखों का अध्ययन किया है।

एनसीआरबी के दिए तथ्य
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 क (क्रूरता कानून), घरेलू हिंसा अधिनियम, बलात्कार कानून, दहेज कानून, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीडऩ और चाइल्ड कस्टडी कानून का विशेष रूप से अध्ययन पेश किया है। शोध में 243 लॉ कमीशन की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क का बहुत बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। इस धारा के द्वारा पति और उसके रिश्तेदारों का शोषण किया जा रहा है। धारा के दुरुपयोग पर न्यायालय ने इस धारा को कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी है। धारा 498- क दहेज कानून के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2017 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि 2012 में दहेज अपराधों पर लगभग 2,00000 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन केवल 14.4 परसेंट आरोपियों को दोषी ठहराया गया था। 2006 की तुलना में 2016 तक धारा 498-क (आईपीसी) के तहत बरी होने वालों की संख्या में 60 परसेंट की वृद्धि देखी गई है।

रेप कानून का दुरुपयोग
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 498- क के दुरुपयोग के विषय में कहा है कि &बुजुर्गों के साथ गलत हो रहा है, परिवार टूट रहे हैं, समाज अस्थिर हो रहा है और हम प्रागैतिहासिक युग की ओर बढ़ रहे हैं। रेप कानून के दुरुपयोग के विषय में दिल्ली कमीशन फॉर वूमेन की रिपोर्ट बताया है कि अप्रैल 2014 से जुलाई 2015 के बीच रेप के मामले 2753 दर्ज हुए। जिसमें 1579 मामले झूठे पाए गए है तत्कालीन चेयरपर्सन बरखा सिंह ने कहा कि रेप कानून का दुरुपयोग पुरुष का उत्पीडऩ करने के व्यवसाय के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। शोध में एक नया तथ्य सामने आया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम एक नए हथियार के रूप में समाज में पुरुषों के उत्पीडऩ करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है। इसके संबंध में मद्रास हाई कोर्ट के माननीय जस्टिस एस वैद्यनाथन ने इस कानून के विषय में कहा है। इस कानून की &अंतर्निहित खामियां महिलाओं को इसके दुरुपयोग के लिए प्रेरित करती हैं&य। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है 30 मिलियन पुरुषों ने पत्नी या उसके रिश्तेदार जैसे पिता, भाई आदि से हिंसा सही है। सुमना भसीन के मामले में न्यायालय ने घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरुपयोग पर एक लाख रुपए के जुर्माना की दंडात्मक कार्रवाई की है।

तलाक भी मेन कारक
पुरुष उत्पीडऩ के प्रमुख कारकों में तलाक के विषय में कहा गया है कि तलाक देने के लिए महिलाएं असीमित रुपए की मांग रखती है। जिसको पूरा करना संभव नहीं होने के कारण पुरुष पक्षकार न्याय प्रक्रिया में उलझ कर उत्पीडऩ सहता रहता है। कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीडऩ अधिनियम का दुरुपयोग भी प्रारंभ हो चुका है। जिसके संबंध में मद्रास हाईकोर्ट ने रीमा श्रीनिवासन अयंगर के मामले में कहा है कि महिलाएं इस अधिनियम का दुरुपयोग पुरुष पर झूठे आरोप लगाकर उत्पीडऩ के लिए नहीं कर सकती है, इस अधिनियम के दुरुपयोग के एक अन्य मामले अनिता सुरेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने 50,000 के जुर्माने की दंडात्मक कार्रवाई की है।

संशोधन की जरूरत
निसंदेह शोध की विषय वस्तु से इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि महिलाओं द्वारा अपने संरक्षण कानून के प्रति नजरिया बदल रहा है। वह इन कानूनों का दुरुपयोग विधिक लाभ लेने के लिए भी कर रही हैं, जिससे पुरुष और उनके शुभचिंतकों का उत्पीडऩ हो रहा है। शोध में पाया गया है कि महिलाओं के संरक्षण संबंधी कानूनो में संशोधन की आवश्यकता है, जिससे समाज में अस्थिरता पैदा होने से रोका जा सके और पुरुष वर्ग के मानवीय और विधिक अधिकारों को संरक्षित किया जा सके।

रिसर्च में रिसर्चर द्वारा दिए गए सुझाव
-वर्तमान में महिलाओं ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे शैक्षणिक, बौद्धिक, आर्थिक रूप से उन्नति की है इसलिए लिंग के प्रति तटस्थ कानून की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए।
-पुरुषों के मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए &पुरुष आयोग&य का गठन किया जाना चाहिए जिससे महिलाओं के संरक्षण कानूनो के दुरुपयोग की शिकायत और झूठे मामलों के संबंध में डाटा एकत्र करके उनका उचित निस्तारण किया जा सके।
-भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क (भारतीय न्याय संहिता की धारा 85-86) के कठोर रूप को सरल करते हुए इस धारा को जमानतीय और न्यायालय की पूर्व अनुमति से शमनीय बनाया जाना चाहिए।
-इसका एक अन्य लाभ यह भी होगा कि यदि पक्षकार विवाह जैसी नैतिक संस्था में पुन: प्रवेश करना चाहते हैं तो वह सरलता से यह कर सके और तलाक के बढ़ते मामलों में रोक लग सकेगी।
-घरेलू हिंसा अधिनियमकी धारा 32 (2) में पीडि़ता के &एकमात्र परिसाक्ष्य&य के आधार पर न्यायालय आरोपी को अपराधी मान सकता है। इसको सरल करते हुए &एकमात्र&य शब्द हटाया जाना चाहिए, जिससे साक्ष्य को सत्यता की कसौटी पर परखा जा सके।
-तलाक मामले की देरी में प्रमुख कारक महिला पक्षकार की असीमित रुपए की मांग होती है। जिससे मुकदमे लंबित रहते हैं इसे खत्म किया जाना चाहिए। पक्षकार के द्वारा मुकदमा फाइल करने की तिथि सेअधिकतम 5 साल तक न्यायालय के द्वारा मामला निर्णीत किया जाना चाहिए।
-महिलाओं को आर्थिक राहत अलग-अलग अधिनियम की धारा में वर्णित है जिससे न्यायालय आर्थिक राहत की मात्रा का विनिश्चय करने में तर्कपूर्ण सिद्धांत निर्धारित नहीं कर पाता है। इसको एक ही अदालत के द्वारा समस्त धाराओं में दी गई आर्थिक राहत को एक ही मुकदमे में एक बार में ही निर्धारित किया जाना चाहिए।
-महिलाओं के द्वारा दर्ज झूठे मामलों में सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
-सामान्यत: संतान की अभिरक्षा माता के पास प्राकृतिक रूप में जन्म के 5 वर्ष रहती है आज प्री स्कूलिंग की व्यवस्था में संतान 2 वर्ष की आयु से स्कूल जाना प्रारंभ कर देती है और उसका मस्तिष्क उन्नत होने लगता है इसलिए यह अभिरक्षा आयु वर्तमान में 5 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष होनी चाहिए, जिससे पिता भी संतान की अभीरक्षा उसके कोमल मस्तिष्क में ही पा सके।
-वर्तमान में उच्च न्यायालय में लाखों मामले लंबित है न्याय के त्वरित उद्देश्य के लिए उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां जिला जज/सेशन जज में भी निहित होनी चाहिए।


भारत में वूमेन प्रोटेक्टिव लॉज का व्यापक दुरुपयोग किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय के कई निर्णयों में यह फैसला किया गया कि महिला संरक्षण विधियों के बजाय अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों की तरह जेंडर न्यूट्रल लॉ बनाया जाए, जिससे पुरुषों को भी न्याय व्यवस्था का समान संरक्षण मिल सके।
-डॉ। अमित सिंह, विभागाध्यक्ष विधि, रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली

चर्चा में रहा बिजनौर का केस
बिजनौर जिले के स्योहारा के गांव चक महमूद सानी की मन्नान जैदी की शादी पास के गांव से मेहर जहां से हुई थी। मेहर जहां ने शादी से पहले प्यार का झूठा नाटक भी रचा था। शादी करने के लिए मेहर जहां मन्नान जैदी के घर पहुंचकर शादी की जिद पर अड़ी थी। 17 नवम्बर 2023 को दोनों की रजामंदी से शादी हो गई। पति का आरोप था पत्नी उसे आए दिन मारती है। इसके लिए बेडरूम में चोरी छिपे कैमरे लगाए गए। 29 अप्रैल 2024 को मेहर जहां ने अपने पति को नशे की गोलियां देकर उसको नंगा करके हाथ बांधकर पति के प्राइवेट पार्ट को सिगरेट से दागा। इतना ही नहीं चाकू लेकर कई जगह चोटिल भी किया। इस दौरान वह खुद सिगरेट पीती रही। मामला सीसीटीवी रिकॉर्डिंग से खुला तो पुलिस ने पति की तहरीर पर केस दर्ज किया।