बिटिया है डॉक्टर पापा हैं खुश
बैंक एंप्लाई राघवेंद्र महरोत्रा 30 साल पहले लिए गए फैसले पर गर्व महसूस करते हैं। हालांकि उन्हें अपने फैसले के पर चौतरफा प्रेशर झेलना पड़ा। सोसाइटी में सवाल भी उठे। मगर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। वह अपने सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट पर अड़े रहे। आज उनके फैसले का रिजल्ट है कि उनकी इकलौती बेटी न सिर्फ डॉक्टर है। बल्कि यूएस में मेडिकल फिल्ड में पोस्ट रिसर्च भी कर रही है। ज्वाइंट फैमिली में रहते हुए सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट के लिए उन्हें कई बार अपनों का ही सामना भले ही करना पड़ गया हो, मगर अपनी बेटी आंचल को किसी मुकाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें आज अपना फैसला सही लगता है। आंचल की शुरुआती एजुकेशन सेंट मारिया स्कूल से हुई। जिसके बाद उन्होंने आंचल को राजस्थान स्थित वनस्थली से बीएससी इन मेडिसिन बॉयो टेक्नोलॉजी करवाया। इसके बाद पीजीआई चंडीगढ़ से एमएससी मेडिसिन इन बॉयो टेक्नोलॉजी करवाया। आज वह यूएस के येलीडो कॉलेज ऑफ मेडिसिन में पोस्ट रिसर्च कर रही है। वह न्यू कपल्स को भी सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट फॉलो करने के लिए इंस्पायर करते हैं.
देना है बेहतर भविष्य
लक्ष्मी नगर निवासी हरप्रीत सिंह अपनी बच्ची के साथ खेलते हुए बताते हैं कि सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट उन्हें शादी के पहले से पंसद था। एक से ज्यादा बच्चों की परवरिश करने में तरह-तरह की प्रॉब्लम्स आती हैं। बढ़ती महंगाई और आपाधापी की लाइफ में वह अपने बच्चे की उम्दा परवरिश के लिए सिंगल चाइल्ड ही रखना चाहते हैं। उनकी शादी को 6 साल हो गए हैं। उनकी एक ही बेटी है जिसका नाम हरलीन कौर है। प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत हरप्रीत की पत्नी रंजीत कौर हाउस वाइफ है। रंजीत बताती हैं कि पहले वह जॉब करती थीं, मगर हाल में उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी है। दोनों बताते हैं कि उनके ग्रुप में ज्यादातर लोग सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट फॉलो कर रहे हैं। हालांकि इसके पीछे करियर और यंग कपल्स में हाउस वाइफ कॉन्सेप्ट का खत्म होना ही है। उनकी ज्वाइंट फैमली है। वह अपने सिंगल चाइल्ड रखते हुए उसकी एकेडमिक लाइफ स्ट्रांग बनाना चाहते हैं.
दूसरों को भी किया मोटिवेट
सिटी मेंं एसीएमओ के पद पर कार्यरत डॉ। आरएस अग्रवाल पहचान के मोहताज नहीं हैं। उनकी शख्सियत के पीछे एक और राज छुपा हुआ है। उन्होंने न सिर्फ अपनी लाइफ में सिंगल बेबी का कॉन्सेप्ट फॉलो किया, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए मोटिवेट किया। उनका एक ही लड़का है, जिसका नाम समर्थ है। समर्थ इस समय चेन्नई में अशोक लेलैंड कंपनी में डिप्टी मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत हैं। डॉ। अग्रवाल बताते हैं उनसे इंस्पायर होकर उनके छोटे भाई और सिस्टर इन लॉ ने भी सिंगल चाइल्ड का कॉन्सेप्ट अपना लिया। हालांकि इस कॉन्सेप्ट को आत्मसात करने के पीछे वह बच्चे की प्रॉपर पेरेंटिंग और उसका बेहतर करियर मेनटेन करने को वजह मानते हैं। उनकी पत्नी भावना हाउसवाइफ हैं। वह बताती है कि शुरुआत में ज्वाइंट फैमली में रहते थे। लिहाजा दूसरे बच्चे के लिए फैमली प्रेशर तो था ही। मगर प्रॉपर पेरेंटिंग के लिए हमने सिंगल चाइल्ड रखने का डिसीजन बहुत पहले ही ले लिया था। डॉ। अग्रवाल बताते हैं कि इससे पहले मैं मुज्जफरपुर में मोरना ब्लॉक में छिछोरणा मे पोस्ट था। उस पूरे एरिया में सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट से इतना प्रभावित हुए कि ज्यादातर फैमलीज ने सिंगल चाइल्ड ही रखा।
सिंगल है तो करियर पर पूरा ध्यान
पुराने शहर में रहने वाले गौरव मिश्र पेशे से एक फार्मास्यूटिकल कंपनी में सेल्स ऑफिसर हैं। वह सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट में बिलीव करते हैं। उनकी वाइफ कंचन मिश्र हाउस वाइफ हैं। वह बताते हैं कि बेटी अध्या के आने बाद से ही हम दोनों ने डिसाइड कर लिया था कि हमें और बच्चे नहीं चाहिए। सिंगल बेबी होने का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि बच्चे की केयर ईजी हो जाती है। सिंगल होने की वजह से उसके दिमाग में यह सोच नहीं डेवलप नहीं होती है कि उसके पेरेंट्स उसके सिबलिंग्स पर ज्यादा ध्यान देते हैं। हम अपने बच्चे के करियर पर अब पूरा ध्यान दे रहे हैं। सिंगल चाइल्ड होने की वजह से इसकी पढ़ाई भी अच्छे स्कूल से करवाने का प्लान है। मैं तो सबको यही सजेस्ट करूंगा कि सबको सिंगल चाइल्ड रखना चाहिए।
सिंगल चाइल्ड रख कर करेंगे उसकी लाइफ को निखारने की कोशिश
पवन विहार निवासी धीरज अग्रवाल पेशे से कॉन्ट्रेक्टर हैं। खुश मिजाज धीरज सोसाइटी के प्रति काफी गंभीर हैं। उनकी वाइफ सोनिया अग्रवाल हाउसवाइफ हंै। धीरज और उनकी फैमिली शुरुआत से ही बरेली में रही है। उनकी शादी को 6 साल हो चुके हैं। दोनों का एक ही बेटा है। जिसका नाम आर्यन है। आर्यन अभी महज 4 साल का है। आर्यन के जन्म के समय ही धीरज ने डिसाइड कर लिया था कि दूसरा बेबी नहीं करेंगे। ये डिसीजन उन्होंने बच्चे के बेहतर फ्यूचर के लिए लिया था। समय बीतने के साथ ही वह अपने डिसीजन पर फक्र भी महसूस करते हैं। अपने काम के बिजी शेड्यूल में से टाइम निकाल कर वह बेटे की परवरिश पर पूरा ध्यान देते हैं। सोनिया अग्रवाल बताती हैं कि शुरुआत में एक और बच्चे के लिए फैमली का काफी प्रेशर रहा, मगर समय के साथ यह कम हो गया। सिंगल चाइल्ड रख कर वह उसके ही एजुकेशन और करियर को बेहतर बनाना चाहते हैं।
घटती सोशल लाइफ
सिंगल चाइल्ड के केस में बच्चों में शेयरिंग कैपेसिटी कम हो जाती है। भाई-बहन न होने पर बच्चों के पास अपनी फीलिंग शेयर करने के लिए कोई नहीं होता। बच्चों का दिल बहलाने के लिए पेरेंट्स वीडियो गेम और टेक्नोलॉजी का सहारा लेते हैं। बच्चे भी खुद को उस अकेलेपन में ढालने के लिए उसी की दुनिया में खो जाते हैं। नतीजा ये होता है कि अर्ली ऐज पर उनकी सोशल लाइफ सिफर हो जाती है। पेरेंट्स को अर्ली ऐज पर बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए। बच्चों के सवालों को गंभीरता से लेते हुए उनके सही जवाब देने की कोशिश करनी चाहिए।
फैमिली में पेंच
मैटेरियलिस्टिक दुनिया में करियर की चाहत न्यूक्लियर फैमिली को जन्म देती है। हसबैंड-वाइफ दोनों का वर्किंग होना। ज्वाइंट फैमिली में न रह पाना सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट के लिए इन क्लाजेज को सबसे ज्यादा जिम्मेदार कहा जा सकता है। ज्वाइंट फेमिली में एक से ज्यादा बच्चों के केस में फैमिली के दूसरे मेम्बर बच्चों का ध्यान रखते थे। मगर अब वर्किंग पेरेंट्स या तो बच्चों को पड़ोसियों के यहां छोड़ते हैं या उन्हें थोड़ा बड़ा होने पर बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करते हैं। साइकियाट्रिस्ट भी बच्चों के बेहतर डेवलपमेंट के लिए ज्वाइंट फैमिली को प्रिफर करते हैं।
कम हो जाती है शेयरिंग पॉवर
सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट के अपनी एडवॉन्टेज हैं तो कुछ डिस एडवॉन्टेज भी हंै। सिंगल चाइल्ड प्रिफर करने के लिए हर पेरेंट अलग-अलग रीजन देते हैं। वह कितने सही हंै या किस हद तक गलत हैं। साइकिएट्रिस्ट हेमा खन्ना की राय।
सवाल - पेरेंट्स के सिंगल चाइल्ड प्रिफर करने के पीछे क्या कारण हैं।
जवाब -मैटेरियलिस्टिक वल्र्ड में इकोनॉमिक सिक्योरिटी खुद में एक बड़ा रीजन हो सकता है। समय की गति के हिसाब से लगातार बदलती हुई दुनिया में पेरेंट्स के लिए ये चेलेंज होता है कि वह अपने बच्चे को सब कुछ दे सकें।
सवाल-सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट फॉलो में पेरेंट्स खो तो नहीं रहे।
जवाब - सिंगल रहने वाले चाइल्ड की शेयरिंग पावर कम हो जाती है। आपको जानकार हैरानी होगी कि मेरे पास काउंसलिंग के लिए आने वाले बच्चे खुद भी अकेले रहना चाहते है। वह टेक्नोलॉजी के साथ खुद को शेयर करते है। उन्हें भाई बहन की कमी नहीं खलती है।
सवाल - कहीं पेरेंट्स की करियर लाइफ तो इसका कारण नहीं है।
जवाब - कुछ हद तक कपल्स का वर्किंग होना भी इसका कारण है। पेरेंट्स सोचते हैं कि एक ही बच्चा पल जाए यही बहुत है। चूंकि दोनों वर्किंग में होते हैं तो दूसरे बच्चे के लिए उन्हें अपनी इनकम ब्रेक करनी पड़ती है। घर का रूटीन ब्रेक होता है। कॉम्पटटिव वल्र्ड में इन स्थितियों से बचने के लिए पेरेंट्स सिंगल चाइल्ड प्रिफर करते हंै।
सवाल - सिंगल चाइल्ड के साथ कितना समय स्पेंड करना चाहिए।
जवाब - ये बच्चों की एज पर डिपेंड करता है। बच्चा जब छोटा होता है, तो लर्निंग प्रॉसेस में उसे सबसे ज्यादा अटेंशन की जरूरत होती है। इस एज पर मेंटल, सोशल, साइकलॉजिकल और फिजीकल डेवलपमेंट सबसे ज्यादा होता है।
सवाल - सिंगल होने से बच्चे की लाइफ पर कैसा असर पड़ता है।
जवाब - अकेला बच्चा होने पर बच्चे की मानसिक स्थिति सेलफिश हो जाती है। बच्चा इमोशनली डिसबैलेंस हो सकता है। ऐसे बच्चे ज्यादातर जिद्दी होते है। उनकी हर मांग पूरी होने की मंशा के बाद वह अपने मन के इतर कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर पाते।
सवाल - ऐसे में पेरेंट्स को क्या करना चाहिए।
जवाब - बच्चा जब छोटा हो तो उसे सबसे ज्यादा अटेंशन दे।
सवाल - सिंगल चाइल्ड वाले पेरेंट्स अपनी प्रॉब्लम लेकर आते है। उनका परसेंटेज में कितना होगा।
जवाब - मेरे पास पेरेंट्स अपने बच्चों की ऐसी प्रॉब्लम्स को शेयर करने आते हंै। किसी-किसी मंथ में इनकी संख्या 60 परसेंट तक हो जाती है।