‘Stand up, be hold, be strong & take the whole responsibility’
क्या यूथ की अपब्रिंगिंग में कोई कमी है। कहीं फैमिली एनवायरमेंट में मोरल वैल्यूज की वैल्यू कम हो रही है। 'दामिनीÓ गैंगरेप की घटना ने साबित किया है कि यूथ भटक रहा है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या पूरी तरह से रेगुलेटिंग अथॉरिटीज पर डिपेंड रहना चािहए या युवा जेनरेशन सोसाइटी में निर्णायक बदलाव ला सकती है। प्रजेंट सिनारियो में स्वामी विवेकानंद के संदेश कितने प्रासंगिक हैं और उनकी कितनी जरूरत है। फ्राइडे को आई नेक्स्ट का 'युवा मंचÓ इन्हीं सवालों और जवाबों का प्लेटफॉर्म बना। इस मंच से यंग ब्रिगेड ने जहां कई हॉट टॉपिक्स रेज किए तो एक्सपट्र्स ने अपने कीमती अनुभवों से उन्हें रास्ते सुझाए। फाइनली हमें सेफ एंड सिक्योर सोसाइटी बिल्डअप करने का रास्ता मिल गया, जिसे हम आप तक पहुंचा रहे हैं। नतीजा निकला कि अब तो बस जरूरत है कि साथ मिलकर इस दिशा में चला जाए। स्वामी विवेकानंद की जयंती यानी नेशनल यूथ डे की पूर्व संध्या पर ऑर्गनाइज 'युवा मंचÓ में दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी सदगुरु शरण, आई नेक्स्ट के मार्केटिंग हेड अनुराग खरे, आरआरडी के राजेश भी शामिल रहे। कोऑर्डिनेशन आई नेक्स्ट के एडिटोरियल हेड धर्मेंद्र सिंह ने किया।
हमें बंदिशों में न बांधें, हम आसमां के परिंदे हैं
प्रजेंट सिनारियो में यूथ कश्मकश के दौर से गुजर रहा है। घर से बाहर वह खुद को सेफ एंड सिक्योर महसूस नहीं कर रहा। वह यह भी सोचता रहता है कि ऐसे क्या स्टेप उठाए जाएं, जिससे सोसाइटी को सेफ एंड सिक्योर बनाया जा सके। इसी कश्मकश को अपने सवालों के जरिए यंग बरेली ने एक्सपट्र्स के सामने रखा। सभी ने एक सुर में कहा कि वे हर क्षेत्र में आजादी चाहते हैं। क्या पहनना है, क्या नहीं? कैसे उनकी लाइफ स्टाइल हो, इसकी समझ उन्हें है।
छलका यूथ का दर्द
मंच से युवाओं का दर्द भी छलका, खासकर गल्र्स विंग का मानना है कि किसी वारदात के बाद वह अपने आप को बिल्कुल बेसहारा महसूस करती हैं। एक्शन लेने वाली संस्थाएं जैसे पुलिस से वह रेस्पॉन्स नहीं मिल पाता जितना कि वह एक्सपेक्ट करती हैं। कई बार पब्लिक भी किनारा कर लेती है। उन्होंने सिस्टम की कमियों को भी उजागर किया। कहीं न कहीं युवा अपने आपको कमजोर महसूस कर रहा है। उन्होंने ऐसी कार्यप्रणाली की जरूरत महसूस की, जो किसी भी घटना पर क्विक एंड सॉलिड एक्शन ले सके।
नहीं मिला रेस्पॉन्स
यंग ब्रिगेड ने स्पेशली इस बात पर जोर दिया कि पुलिस विक्टिम के साथ फ्रेंडली बने। खास तौर पर महिलाओं के साथ। मंच में मौजूद कुछ युवाओं ने अपने अनुभवों के आधार पर शिकायत जाहिर की, कि कई बार ईवटीजिंग जैसी घटनाओं की कंप्लेन के लिए थाने पहुंचने वाली विक्टिम के साथ पुलिस का रवैया हेल्दी नहीं रहता। इसका रिजल्ट ये होता है कि गल्र्स थाने जाने से ही घबराती हैं।
ये थे मुद्दे
-साड़ी या स्कर्ट - क्या ड्रेस कोड लागू होने से रेप जैसी वीभत्स घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकेगी।
-पुलिस या पब्लिक- क्या पुलिस का पब्लिक के साथ व्यवहार उतना फ्रेंडली है कि वे बेहिचक उनकी हेल्प ले सकें।
-टफ एक्ट या सेल्फ रेगुलेशन- ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए क्या स्ट्रिक्ट एक्शन ही काफी होगा या फिर खुद कदम उठाने की जरूरत है।-प्रेजेंट सिनारियो में स्वामी विवेकानंद के संदेशों की क्या और कितनी प्रासंगिकता है.
Youth says
अपब्रिंगिंग को मॉडिफाइ करने की जरूरत
जहां पर ड्रेस कोड लागू है वहां पर वूमेन को प्रॉब्लम क्यों होती है। मतलब कि ड्रेस से फर्क नहीं पड़ता। मानसिकता बदलें। अच्छे घरों के लड़के भी क्रिमिनल एक्टिविटीज में इन्वॉल्व हो जाते हैं। जबकि उनका बिहेवियर अपने घर में शालीन रहता है। पारिवारिक परिवेश में ही बदलाव की आवश्यकता है।
-चानी मुखर्जी, असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर, एचडीएफसी
पहले फैमिली, सोसाइटी को बदलना होगा
आज सिचुएशन खराब हुई तो इसके लिए जिम्मेदार पेरेंट्स ही हैं। बच्चे बाहर क्या करते हैं किसके साथ अपना समय गुजारते हैं, पेरेंट्स को इस बात की परवाह नहीं है। ड्रेस चेंज करने से पहले अपने परिवार और सोसाइटी का एनवायरमेंट और सोच चेंज करनी होगी।
- जवाहर लाल, प्रेसीडेंट, बीसीबी स्टूडेंट्स यूनियन
तो गांव में रेप और छेड़खानी नहीं होती
पहनावे को बदलने से परिस्थितियों में बदलाव होता तो गांवों में वूमेन और गल्र्स के साथ भी रेप जैसी घटनाएं न होतीं। इससे साफ जाहिर है कि ऐसे क्राइम को अंजाम देने वालों की मेंटेलिटी ही खराब है। पहनावे से फर्क नहीं पड़ता। सोसाइटी वूमेन फ्रेंडली बने। पुलिस को स्ट्रिक्ट एक्शन लेने की जरूरत है।
- प्रिया गुप्ता, मॉडल
हम पर पाबंदी से नहीं बदलेंगे हालात
हमारे ऊपर रेस्ट्रिक्शंस लगाने से ऐसी घटनाओं में कमी नहीं आएगी, ऐसा कई एग्जाम्पल्स से साबित हो चुका है। हम क्या पहनतें हैं उसका ध्यान हमें भी होता है। ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले की मेंटेलिटी ही गंदी होती है। नजरिया बदलना होगा। पुलिस को पीपुल फ्रेंडली बनना होगा, तभी बात बनेगी।
- मनोरमा, स्टूडेंट, आईआईएफटी
हमें पहनना है तो च्वॉइस हमारी होनी चाहिए
हम क्या पहनेंगे ये हमारी च्वॉइस है। हमें अपना भला-बुरा सब मालूम है। सामने वाले की मेंटेलिटी ही जब खराब होती है तो ऐसी घटनाओं को होने से कोई रोक नहीं सकता। पुलिस व कानून द्वारा स्ट्रिक्ट एक्शन लेने की आवश्यकता है। पुलिस में शरण लेने के बाद भी लोग सिक्योर महसूस नहीं करते।
- गीता, स्टूडेंट, आईआईएफटी
Experts’ comments
पेरेंटिंग अभी बहुत बड़ा कंसर्न है
कपड़े ट्रेडिशनल हों या मॉडर्न, यह मायने नहीं रखता। यह मानसिक विकास से जुड़ा मुद्दा है। हम पहनावे में तो मॉडर्न होते जा रहे हैं, लेकिन विचार वही पुराने हैं। मैं कैंपस में ड्रेस कोड के फेवर में नहीं हूं लेकिन ध्यान रखें कि जो कपड़े पहन रहे हैं वे सोबर हों। पेरेंटिंग अभी भी बहुत बड़ा कंसर्न है। बच्चा घर में क्या करता है, ये तो ज्यादातर को पता है पर बाहर कैसे रहता है ये बहुत कम पेरेंट्स को पता है। पेरेंट्स बहुत कुछ इग्नोर करने लगे हैं जो उनके बच्चों के लिए घातक बनता जा रहा है। नतीजा दिल्ली गैंगरेप की तरह वीभत्स निकल रहा है। निसंदेह कड़े कानून होने चाहिए लेकिन सेल्फ रेगुलेशन इसमें अहम रोल निभा सकता है। जिसकी शुरुआत पेरेंटिंग से ही हो सकती है। वहीं मेरा मानना है कि पब्लिक को भी आगे आना होगा। उन्हें अन्याय के खिलाफ चुप्पी तोडऩी होगी।
- डॉ। जोगा सिंह होठी, चीफ प्रॉक्टर, बीसीबी
कानून तो है पर सेल्फ रेगुलेशन भी जरूरी
यूथ में जो मानसिक विकृति डेवलप हो रही है, उसके लिए हमारी पारिवारिक स्थिति ही जिम्मेदार है। क्राइम और क्रिमिनल्स पर लगाम तभी लगाई जा सकती है जब पब्लिक आगे आकर हमारी हेल्प करे। हमारे सामने बहुत सी विकट परिस्थितियां होती हैं। एडवर्स कंडीशन में ड्यूटी तो करते ही हैं साथ ही रहन-सहन भी समस्याओं से घिरा हुआ है। ऐसे में पब्लिक का सपोर्ट जरूरी है। किसी भी क्राइम के अगेंस्ट लोग खुलकर सामने नहीं आते लेकिन फिर भी वह अपेक्षाएं हम से ही करते हैं। हमसे पहले पहल तो पब्लिक को ही करनी चाहिए। किसी गलत आदमी को सोसाइटी में एक्सेप्ट न कर उसका बायकॉट करना चाहिए। सिर्फ कानून कड़े करने से ही क्राइम में यूथ का इन्वॉल्वमेंट नहीं रुकेगा, सेल्फ रेगुलेशन भी जरूरी है। क्योंकि कानून की कई ऐसी धाराएं हैं जिसके आगे पुलिस का भी बस नहीं चलता।
- राजकुमार अग्रवाल, सीओ सिटी फस्र्ट
बच्चों से ज्यादा पेरेंट्स की काउंसलिंग हो
ड्रेस चेंज करने की बजाय नजरिया चेंज करने की जरूरत है। इंडिया में सेक्स इज ए टैबू। कमी हमारे-आपके नजरिए और सोच में है। इंडिया का सामाजिक परिवेश ऐसा है, जहां हम मॉडर्न दिखने की कोशिश तो करते हैं लेकिन विचारों से कई साल पिछड़े हैं। पेरेंट्स की भूमिका इसमें अहम हो जाती है। पेरेंटिंग में बहुत कमी है। वे इग्नोरेंट की भूमिका ज्यादा अदा करते हैं। बच्चों से ज्यादा पेरेंट्स की काउंसलिंग की जरूरत है। बच्चा जब छोटा हो तभी से उसकी सोच बदलनी होगी। ब्वॉयज और गल्र्स को समान एक्सपोजर और रेस्ट्रिक्शंस में पालना होगा। पेरेंट्स का नजरिया बदलेगा तो सोसाइटी में भी बेहतर चेंज आएगा। वहीं पुलिस को भी अपने नजरिए में बदलाव की आवश्यकता है। क्रिमिनल हो या विक्टिम, सबके साथ एक जैसा बिहेवियर उचित नहीं है। फिर भी सेल्फ रेगुलेशन इस दिशा में सबसे बड़ा सुधार होगा।
- डॉ। हेमा खन्ना, साइकोलॉजिस्ट
गल्र्स को भी ब्वॉयज की तरह एक्सपोजर दें
लड़कियों के साथ हो रहे फिजिकल एक्सप्लॉयटेशन के लिए कपड़ों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ग्रास रूट में ही बदलाव की जरूरत है। ब्वॉयज को जरूरत से ज्यादा एक्सपोजर देना और गल्र्स को अपेक्षाकृत कम, सबसे बड़ी प्रॉब्लम है। बिगिनिंग से ही दोनों को बराबरी का दर्जा देते हुए शिक्षा देनी होगी। बच्चे जब ऐसे दोराहे पर एजुकेशन गेन करते हैं तो उनकी मानसिक स्थिति में विकृति आना लाजमी है। सही मायने में नॉलेजेबल एजुकेटेड सोसाइटी ही ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने में सक्षम हो सकती है। पेरेंटिंग की यही कमी हमें आज यह दिन दिखला रही है। सोसाइटी के हर वर्ग को चाहिए कि जो गलत है उसे फेस करें, मुंह न फेरें। पुलिस तभी हमारी हेल्प करेगी जब हम अपनी मदद करने को तैयार होंगे। साथ ही विक्टिम को इतना सपोर्ट करें कि वो न्याय के लिए लड़ सके।
- प्रो। नीलिमा गुप्ता, डीएसडब्लू, आरयू
सोसाइटी को वूमेन फ्रेंडली बनाना होगा
परिधान बदलने की बजाय मेंटेलिटी बदलने पर जोर देना चाहिए। एक महिला क्या पहने वह उसका पर्सनल मैटर है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड के अनुसार क्रिमिनल केसेज में 18 वर्ष से कम एज वाले यूथ की संख्या सबसे ज्यादा है। वूमेन पर इस तरह से रेस्ट्रिक्शंस न लगाएं, वह ऑबजेक्ट नहीं है। सोसाइटी की सोच और नजरिए को वूमेन फ्रेंडली बनाना होगा। हमें ही इसमें योगदान देना होगा। किसी के साथ कोई घटना होती है तो सोसाइटी और पेरेंट्स को उसका सपोर्ट कर मनोबल बढ़ाना होगा। वहीं ऐसी घटनाओं पर रोक लगे, इसके लिए जरूरी है कि पुलिस बल की संख्या पर्याप्त हो और उनकी दशा भी सुधारी जाए। वहीं पब्लिक को भी पूरी तरह से पुलिस पर डिपेंड नहीं होना चाहिए। पुलिस को पब्लिक का सपोर्ट नहीं मिलेगा तो बात नहीं बन सकती।
- डॉ। वंदना शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, पॉलिटिकल साइंस, बीसीबी
ड्रेस पहनने का तरीका सही होना चाहिए
एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में ड्रेस कोड होना चाहिए। इससे बच्चों में समानता की भावना आती है। सोशल डिसपैरिटी कम होती है। बैकग्राउंड किसी का कैसा भी हो, ड्रेस कोड से वह झलकता नहीं है। पटल पर सभी एक समान ही नजर आते हैं। साथ ही यह भी डिपेंड करता है कि कपड़े हम किस तरह से पहनते हैं। कपड़े कैसे भी पहनें लेकिन जगह और तरीके पर ध्यान देना जरूरी है। सोसाइटी में बदलाव चाहते हैं तो इसकी शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी। हमें अपनी मेंटेलिटी को चेंज करना हेगा। पारिवारिक परिवेश में बदलाव लाना होगा लेकिन मोरल वैल्यूज को भी समेटकर साथ चलना होगा। जब तक हम अपने बिहेवियर, स्थितियों को परखने और समझने के नजरिए में बदलाव नहीं करते, तब तक सोसाइटी में स्वस्थ बदलाव को एक्सपेक्ट नहीं कर सकते।
- शिखा सिंह, सीईओ, दया दृष्टि ट्रस्ट
माइंडसेट को चेंज करें, ड्रेस नहीं
युवा मंच के सवालों के जवाब में एक्सपट्र्स ने सोसाइटी के मानसिक विकास पर जोर दिया। सभी ने इस बात पर अपनी सहमति दी कि आए दिन जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं और उनमें 18 साल से कम उम्र के युवाओं का इन्वॉल्वमेंट बढ़ रहा है तो बदलाव के लिए ग्रास रूट से शुरुआत करनी होगी। सबसे पहले पारिवारिक माहौल में एकॉर्डिंगली चेंजेज लाने होंगे। बच्चे चाहे वह लड़की हो या फिर लड़का, उन्हें दूसरों के साथ व्यवहार और सम्मान करने की समान सीख देनी होगी। तभी समानता की भावना आएगी। एक्सपट्र्स ने बताया कि गलती के बाद कानूनी कार्रवाई तो होनी ही चाहिए पर सोसाइटी को भी अपनी तरफ से एक मर्यादित दंड तय करना होगा। यूथ की एनर्जी को पॉजिटिव शेप एंड साइज देने की पहल सोसाइटी को ही करनी होगी। हालांकि एक्सपट्र्स ने कानून में कुछ अमेंडमेंट करते हुए ठोस स्टेप उठाने की भी पुरजोर वकालत की। उन्होंने माना कि सेल्फ रेगुलेशन और टफ एक्शन दोनों का पर्याप्त समावेश हो तो सुरक्षा का लक्ष्य पाना मुश्किल नहीं होगा। मॉडर्नाइज हों बस ट्रेडिशंस साथ लेकर चलें।
Conclusion
-रेस्ट्रिक्टशंस के बजाय नजरिए को चेंज करने की जरूरत। सोसाइटी के सोचने और देखने का नजरिया तभी चेंज होगा जब हम अपने परिवार की सोच बदलेंगे। मतलब सेल्फ रेगुलेशन बहुत जरूरी है।
-ब्वॉयज और गल्र्स को समान रूप से एक्सपोजर दें। दोनों पर बंदिशें भी एक जैसी होनी चाहिए।
-गलत करने वाले का सोशल बायकॉट जरूरी है। विक्टिम की तरफ पब्लिक और पेरेंट्स का सपोर्ट जरूरी है।
-विक्टिम को भी चाहिए वह एंड तक अपनी बात पर स्टैंड रहे।
-पुलिस भी तभी हेल्प करेगी जब पब्लिक उसका सपोर्ट करेगी।
-पुलिस को सभी के साथ एक समान व्यवहार करना चहिए।
-कानून में ऐसे कड़े संशोधन हों जो जमीनी तौर पर व्यवहारिक हों और क्रिमिनल्स पर शिकंजा कस सकें।