खराब है ड्रेनेज सिस्टम
हॉस्टलर्स की एक सबसे बड़ी समस्या यहां ड्रेनेज सिस्टम में होने वाली ब्लॉकेज क प्रॉब्लम भी है। ब्वॉयज की मानें तो यहां टॉयलेट्स, वॉशरूम्स और मेस हॉल सभी जगह पानी भर जाता है। स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि वॉशरूम्स में तो नहाना भी मुश्किल हो जाता है। कई बार तो ब्वॉयज को हैंडपंप के पास ही नहाना पड़ता है, पर अब तब हॉस्टल इस प्रॉब्लम पर किसी की नजर नहीं है।
हैंडपंप ही सहारा है
यूनिवर्सिटी कैंपस में तीन बड़ी टंकियां बनी हैं। और उनकी देखरेख के लिए छह पंप ऑप्रेटर्स भी रखे गए हैं, पर हॉस्टलर्स क ो बिजली जाते ही पानी मिलना भी बंद हो जाता है। जब पानी आता भी है तो वह इतना गंदा होता है कि उसे यूज नहीं किया जा सकता है। वहीं पीने के पानी के लिए हॉस्टल में लगा एक्वागार्ड और वाटर कूलर भी खराब है। ऐसे में स्टूडेंट्स के पास हॉस्टल परिसर में लगे दो हैंडपंप ही सहारा बने हैं। हॉस्टल के 138 रूम्स में तकरीबन 275 स्टूडेंट्स रह रहे हैं। ऐसे में दो हैंडपंप नाकाफी साबित होते हैं।
जंगल में मंगल है हॉस्टल
हॉस्टल के चारों ओर बड़ी-बड़ी घास उगी हुई है। इसकी वजह से आए दिन हॉस्टल में कीड़े-मकोड़े भी निकलते रहते हैं, जो कि स्टूडेंट्स के लिए खतरे से खाली नहीं है। न ही रोड से हॉस्टल तक पहुंचने के रास्ते में पर्याप्त स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था है। इससे रात में स्टूडेंट्स को अंधेरे में ही हॉस्टल तक पहुंचना होता है। जबकि यूनिवर्सिटी हर महीने तकरीबन पांच लाख रुपए साफ-सफाई के मद में खर्च करती है।
फर्नीचर नहीं है यहां
हॉस्टल का कॉमन रूम हो या रूम्स में स्टडी चेयर की जरूरत, हॉस्टल में कुछ भी सही सलामत नहीं है। तकरीबन 275 स्टूडेंट्स के लिए क ॉमन रूप में केवल 40 कुर्सियां पड़ी हैं और रूम्स में भी पढ़ाई कुर्सियां नहीं हैं। कई बार स्टूडेंट्स को रूम्स में सीएफएल भी खुद ही लाकर लगानी होती है।
बिजली बिना कैसे हो पढ़ाई
हॉस्टल में जेनरेटर न होने से स्टूडेंट्स क ो पावर कट की प्रॉब्लम से रूबरू होना पड़ता है। दिन तो क्लासेज में कट जाता है, पर रात में चार घंटे की होने वाली कटौती से तो न ही स्टूडेंट्स रात में चैन से सो पाते हैं और न ही पढ़ाई कर पाते हैं। इसका नतीजा यह होता है, जब स्टूडेंट्स क्लास में बैठते हैं और वहां पंखा चल रहा होता है तो उन्हें नींद आने लगती है। इससे उनकी पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है। इस हॉस्टल में फ्रेशर्स ही रहते हैं। उनके लिए तो सेटेल होना और भी मुश्किल हो जाता है। एक तो नई जगह, ऊपर से रोजाना पावर कट की प्रॉब्लम।
तकरीबन डेढ़ महीने पहले कुलपति के साथ हुई वार्डन की मीटिंग में हॉस्टल्स के सुधार के लिए आठ लाख रुपये दिये गए। इस फंड से डायनिंग हॉल का रेनोवेशन, कॉमन हॉल और रूम्स का फर्नीचर, प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन की व्यवस्था की जानी थी। डायनिंग हॉल का काम शुरू हो चुका है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।
-डॉ। विजय बहादुर सिंह यादव, चीफ वार्डन