बरेली (ब्यूरो)। हाल ही में शासन ने शिशु-मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए पारदर्शिता के साथ डाटा तैयार कर डेली रिपोर्ट लेने का आदेश विभाग को दिए हैं, लेकिन यहां शासन की मंशा को ही पलीता लगाया जा रहा है। हर साल जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य का हर दिन का डाटा नोट करने के लिए विभाग की ओर से आशा कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली हजारों आशा डायरी 300 बेड हॉस्पिटल के एक रूम में लॉक कर दी गई हैं।

हर साल इतना बजट होता है जारी
जिले में अर्बन और रुरल क्षेत्र में करीब 3600 से अधिक आशा कार्यकर्ता स्वास्थ्य विभाग को सेवाएं दे रही हैं। हर साल आशा कार्यकर्ताओं को देने के लिए शासन से करीब दस लाख के बजट से डायरी मंगाई जाती है। जो डायरी 300 बेड हॉस्पिटल के रूम में लॉक हैं इन पर वर्ष 2020-21 लिखा हुआ है गौर करने वाली बात है कि इस वर्ष डायरी वितरित की ही नहीं गई हैं वहीं इस वर्ष आखिरी माह चल रहा है अब अगले माह दोबारा से शासन से बजट जारी कर खेल कर दिया जाएगा।

डायरी होने से ये मिलता है फायदा
आशा कार्यकता के अनुसार डायरी होने से संबंधित क्षेत्र में कितनी महिलाएं प्रेग्नेंट हैं, क्या उनका टीकाकरण किया गया है वहीं प्रसव से पूर्व जच्चा-बच्चा का ठीक प्रकार से केयर हो सके वहीं जन्म के बाद से बच्चे की पूरे टीकाकरण का विवरण इस डायरी में नोट कर उसकी डेली रिपोर्ट विभाग को मुहैया करानी होती है।

तो क्यों कर दी गईं लॉक
शहर के तीन 300 बेड कोविड हॉस्पिटल में कोविड एल टू बिल्डिंग के ठीक पीछे बने ऑक्सीजन प्लांट के पास एक रूम में हजारों की संख्या में डायरी धूल फांक रही हैं। सवाल उठना लाजमी है कि अगर किसी विभागीय जिम्मेदार ने डायरी वितरित न कर उन्हें एक रुम में लॉक करवा दिया इससे साफ है कि कहीं कहीं जिम्मेदार का आर्थिक लाभ जुड़ा होना नजर आ रहा है।


वर्ष 2019 के सितंबर माह में आखिरी बार रुरल में तैनात आशा कार्यकर्ताओं को डायरी मिली थी इसके बाद से डिमांड करने पर भी जिम्मेदार टालमटोल कर रहे हैं। पूर्व में की गई बैठक में भी डायरी मुहैया कराने की मांग की गई थी लेकिन एक साल का समय बीत जाने के बाद भी डायरी नही दी गई।
शिववती साहू, जिला अध्यक्ष, आशा संगठन

वर्जन
आशा डायरी हर साल कार्यकर्ताओं को दी जाती हैं, कुछ अतिरिक्त डायरी मंगवाई गईं होंगी, इसलिए रूम में रखवाया गया होगा। अगर डायरी पर वर्ष 2020-21 अंकित है तो मामला गंभीर है, संबंधित से जवाब-तलब कर मामले की जांच कराई जाएगी।
डॉ। हरपाल सिंह, एसीएमओ प्रशासन