आर्मी चीफ के बयान से बवाल

डिफेंस डील में करप्शन की बातें कई बार सामने आ चुकी हैं, लेकिन आर्मी चीफ के एक नए बयान ने देश में सियासी गर्मी और भी बढ़ा दी है। दरअसल, आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह ने यह कहकर हलचल पैदा कर दी कि आर्मी में घटिया क्वालिटी की गाडिय़ों को खरीदने के लिए उन्हें घूस की पेशकश की गई थी। इस बयान के बाद जहां संसद में हंगामा शुरू हुआ तो वहीं डिफेंस मिनिस्टर ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश तक दे दिए।

14 करोड़ की पेशकश 

आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह ने कहा है कि एक घटिया क्वालिटी की 600 गाडिय़ों को खरीदने के लिए उन्हें 14 करोड़ रुपए घूस देने की पेशकश की गई थी। जनरल सिंह के इस खुलासे के बाद देश का सियासी माहौल एक बार फिर गरमा गया है। एक इंग्लिश न्यूजपेपर को दिए गए इंटरव्यू में आर्मी चीफ  ने बताया है  कि एक शख्स उनके पास आया और उसने कहा कि अगर आप किसी खास गाड़ी की खरीद की मंजूरी देते हैं तो आपको 14 करोड़ रुपए दिए जा सकते हैं। उस शख्स ने कहा कि आपके पहले के लोगों ने भी पैसे लिए थे। मैं इस व्यक्ति की जुर्रत देखकर दंग रहा गया.जनरल सिंह का दावा है कि उन्होंने फौरन यह बात डिफेंस मिनिस्टर एके एंटनी को बता दी थी। ऐसे ही 7000 वाहन महंगे दामों में खरीदे गए थे, लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं पूछा गया। जनरल सिंह के मुताबिक, हैरानी की बात यह है कि रिश्वत की पेशकश करने वाला शख्स कुछ दिनों पहले ही आर्मी से रिटायर हुआ था। उन्होंने कहा कि इससे इससे पता चलता है कि आर्मी में इस तरह के लोग किस तरह से घुसे हुए हैं।

उम्र विवाद भी इसी का हिस्सा

आर्मी चीफ सिंह के मुताबिक करप्शन के खिलाफ  आवाज उठाने के कारण ही उनकी जन्म तिथि को मुद्दा बनाया गया। उन्होंने कहा कि यह नियम बिल्कुल साफ  है कि जब आप सरकारी सर्विस शुरू करते हैं तो 10 वीं के सर्टिफिकेट को ही माना जाता है। वहां मेरे जन्म का साल 1951 है। विवाद को उठाने में इसी तरह की लॉबी ने काम किया। जैसे आर्दश घोटाला लॉबी, गाडिय़ां, उपकरण बेचने वालों की लॉबी।

पहले क्यों नहीं स्वीकारा?

जब जनरल  सिंह से पूछा गया कि उन्होंने 2008 में यह बात क्यों स्वीकार की थी कि उनका जन्म 1950 में हुआ था, तो उनका तर्क था कि जब आपसे यह कहा जाए कि अभी इस बात को मान लीजिए, क्योंकि फाइल आगे जानी है, बाद में इस मसले को सुलझा लिया जाएगा, तो आप क्या करेंगे। आप अपने से सीनियर अधिकारियों को यह तो नहीं कहेंगे कि मुझे आप पर भरोसा नहीं है। यह तो सेना में आदेश न मानने वाली बात हो जाती।

आखिर कौन था वह?

यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर वह कौन शख्स था जिसने आर्मी चीफ को घूस की पेशकश की थी। बताया जा रहा है कि आर्मी ने एक रिलीज जारी की थी जिसमें डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के चीफ रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल तेजेंद्र सिंह पर कुछ आरोप लगाए थे.  प्रेस रिलीज में कहा गया है कि तेजेंदर सिंह आदर्श सोसाइटी में भी फ्लैट बुक करवा चुके हैं। आर्मी ने तेजेंदर सिंह पर आरोप लगाया है कि तेजेंदर सिंह ने टेट्रा वेक्ट्रा लिमिटेड की तरफ से घूस की पेशकश की थी। टेट्रा वेक्ट्रा बीईएमएल को गाडिय़ां सप्लाई करता है। बीईएमल भारतीय सेना को गाडिय़ां मुहैया कराती है।

कोर्ट जाने की तैयार में तेजेंद्र सिंह

दूसरी ओर तेजेंद्र सिंह आर्मी की तरफ  से जारी प्रेस रिलीज में घूस की पेशकश का आरोप लगाए जाने के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। तेजेंदर सिंह ने अपने ऊपर

लगे आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए मुकदमा करने की धमकी दी है। शायद यही वजह है कि सेना प्रमुख ने घूस की पेशकश करने वाले शख्स का नाम सार्वजनिक तौर पर नहीं लिया है।

लॉबिंग का खेल

आर्मी चीफ का खुलासा डिफेंस डील्स में होने वाले करप्शन की पोल खोलता है। एक्सपट्र्स का कहना कि डिफेंस की फील्ड में करप्शन का खेल सामान की खरीद से ही शुरू होता है। अक्सर डील्स में दलाली दी जाती है, ऐसे पहले की कई घटनाओं में साबित भी हो चुका है। और इसी दलाली या लॉबिंग के साथ ही करप्शन की शुरुआत होती है। कोई भी सौदा तय होने में होने वाली देरी से भी करप्शन बढ़ता है। देरी की एक वजह अफसरों की जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति है। अफसर यह सोच कर फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं कि जांच होने पर उनकी गर्दन न फंसे, क्योंकि सौदेबाजी से गलत कमाई नेता करते हैं, लेकिन जांच होने पर गाज अफसरों पर ही गिरती है। खरीद की प्रक्रिया को नेता गलत ढंग से प्रभावित करते हैं। खरीद के लिए आर्मी अपनी जरूरत तय करके प्रस्ताव देती है। इसके बाद टेंडर निकाला जाता है। टेंडर में भाग लेने वाली कंपनियों में से सही पात्र को चुना जाता है। फिर उनकी ओर से सप्लाई की जाने वाले हथियार आदि का परीक्षण होता है। इस परीक्षण के दौरान ही अवैध सौदेबाजी होती है।

ताबूत घोटाला

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए करगिल वार में शहीद हुए सोल्जर्स के शव को सम्मानजनक तरीके से घर पहुंचाने के लिए जिन ताबूतों की खरीद हुई, उसमें भारी घोटाला हुआ। इंडिया की डिफेंस मिनिस्ट्री ने अमेरिका की एक कंपनी से अल्युमिनियम के 500 ताबूत और शव रखने योग्य 3000 थैले खरीदे थे। इस सौदे में प्रति ताबूत 2500 अमेरिकी डॉलर और शव के थैलों के लिए 85 अमेरिकी डॉलर प्रति थैला के हिसाब से भुगतान किया गया। बाद में पाया गया कि यह रेट इंटरनेशनल मार्केट से बहुत ज्यादा था। इस तरह सरकार को करीब 89 लाख 76 हजार रुपए का भरी घाटा हुआ। जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा शहीदों के शव के काम न आकर दलालों व भ्रष्ट अफसरों की जेब में चले गए। मामले ने काफी तुल पकड़ा था।

बोफोर्स घोटाला

सन 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने इंडियन आर्मी को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिए 80 लाख डॉलर की दलाली चुकाई थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला के नाम से जाना जाता है। आरोप था कि गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोच्ची ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की। उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डालर का था। आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डालर की रिश्वत बांटी थी। एक तरफ जहां आर्मी चीफ ने आर्मी से जुड़े भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खुलकर बोलने की हिम्मत जुटाई है, वहीं दूसरी तरफ बरेली स्थित एक्स सर्विसमेन कंट्रीब्यूटरी हेल्थ स्कीम (ईसीएचएस) में दवाओं से जुड़ा ऐसा मामला सामने आया है, जिस पर कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है। ऐसा तब है जब आर्मी इंटेलिजेंस ने मामले को रंगे हाथों पकड़ा है।

क्या है मामला?

कैंट एरिया में स्थित ईसीएचएस हॉस्पिटल में दवाओं की सप्लाई से जुड़ा यह मामला 22 मार्च का है। लंबे समय से आर्मी इंटेलिजेंस को यह सूचना मिलती आ रही थी कि आर्मी को सप्लाई होने वाली सरकारी दवाइयों को खुले बाजार में बेच दिया जाता है। इसी तहकीकात के दौरान मिलिट्री इंटेलिजेंस ने 22 मार्च को ईसीएचएस के मेन गेट के बाहर मेडिकल स्टोर इंचार्ज को रंगे हाथों पकड़ लिया। स्टोर इंचार्ज के पास से करीब 20 हजार रुपए की दवाइयां पकड़ी गई। सबूत के तौर पर मौके पर ही फोटोग्राफी भी की गई।

क्या हुआ इसके बाद?

मिलिट्री इंटेलिजेंस ने स्टोर इंचार्ज से बरामद दवाइयों को ईसीएचएस के ओआईसी लेफ्टिनेंट कर्नल डीसी जोशी के हवाले सील लगी हुई दवाइयों को प्रूफ के साथ सौंप दिया। मिलिट्री इंटेलिजेंस के अधिकारियों ने इस बात की सूचना पूरे प्रूफ के साथ यूबी एरिया मुख्यालय को भी दे दी। मामले को बीते हुए करीब एक सप्ताह बीत चुका है, लेकिन इसीएचएस से जुड़ा कोई भी अधिकारी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

यह पहला मामला नहीं हे

ऐसा नहीं है कि आर्मी से जुड़ी दवाइयों को बाजार में बेचने का यह पहला मौका है। इससे पहले भी देश भर में इस तरह के कई मामले सामने आते रहे हैं। बरेली स्थिति ईसीएचएस में साल 2010 में भी इसी तरह का मामला सुर्खियों में रहा था। उस

समय नकली दवाओं का आरोप लगा था। करीब 55 हजार रुपए की नकली दवाइयां यहां से पकड़ी गई थी। इसके बाद काफी बवाल हुआ था। धीरे-धीरे यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

क्यों नहीं खुल रही जवान

सूत्रों का कहना है कि दवाइयों से जुड़ा एक ऐसा सिंडिकेट है जो आर्मी हॉस्पिटल के साथ ईसीएचएस में भी अपना दबदबा रखता है। दवाइयों से जुड़ा यह खेल लंबे समय से चला रहा है। इस काले कारोबार में करोड़ों की कमाई होती है, जिसका बंटवारा होता है। जब भी किसी अधिकारी ने इस मामले पर जुबां खोलने की हिम्मत जुटाई है उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ा है। ऐसी स्थिति में अब कोई भी इस मुद्दे पर बोलने से बचता है।

कई बार हुई शिकायत

पूर्व सैनिकों के हक की लड़ाई के लिए हमेशा आवाज उठाने वाली पार्टी जवान-किसान मोर्चा ने कई बार दवाइयों के गोलमाल की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से की है। 22 मार्च को मिलिट्री इंटेलिजेंस द्वारा भी की गई कार्रवाई को मोर्चा के सदस्यों ने स्टेशन हेडक्वार्टर और ईसीएचएस के अधिकारियों से की है। हालांकि आर्मी की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया है।

आप अंदर कैसे आ गए?

ईसीएचएस से जुड़े अधिकारियों का हाल यह है कि मीडिया के नाम से ही उन्हें पसीने आने लगे। मिलिट्री इंटेलिजेंस से जुड़ी कार्रवाई और दवा से जुड़े घोटाले के संबंध में जब ईसीएएचएस के ओआईसी ले.कर्नल डीसी जोशी से पूछा गया तो पहले तो उन्होंने कुछ भी कहने से साफ मना कर दिया। जब उनसे दोबारा पूछा गया तो उन्होंने आई-नेक्स्ट रिपोर्टर से यह कह कर बात करने से मना कर दिया गया कि आपको हॉस्पिटल के अंदर आने किसने दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि जो भी क्योरी करनी है हेडक्वार्टर से करें उनके पास इस रिपोर्ट की पूरी जानकारी है। इंटेलिजेंस ने उन्हें रिपोर्ट सौंप दी है।

ईसीएचएस हेडक्वार्टर ने खड़े किए हाथ

आई-नेक्स्ट ने जब इस संबंध में नई दिल्ली स्थित ईसीएचएस के हेडक्वार्टर में मौजूद डिप्टी डायरेक्टर से बात की तो उन्होंने कहा कि देखिए यह सही है कि ईसीएचएस से जुड़े सभी मामलों को हमलोग मॉनिटर करते हैं, लेकिन बात जहां तक दवाइयों के कालाबाजारी या गोलमाल का है तो यह आर्मी मेडिकल कॉप्स मॉनिटर करती है। फिर भी अगर  ईसीएचएस में इस तरह का मामला आया है तो इसकी रिपोर्ट अभी हमारे पास नहीं है। इसलिए हम कुछ भी स्पष्ट नहीं कह सकते हैं।

क्या होता है ईसीएचएस?

ईसीएचएस के तहत तीन आम्र्ड फोर्सेज के सभी एक्स सर्विसमेन को मेडिकल सुविधा प्रदान की जाती है। इसके तहत आर्मी, एयर फोर्स और नेवी के करीब 36 लाख एक्स सर्विसमेन का मेडिकल कवर हो चुका है। यही नहीं इनके आश्रित जैसे वाइफ, मदर, फादर, सन और डॉटर को भी मेडिकल सुविधा प्रदान की जाती है। इसके अंतर्गत अलग से पॉलीक्लिनिक्स स्थापित किए गए हैं। जहां गंभीर बिमारियों के इलाज की सुविधा के साथ मेडिसीन भी प्रोवाइड की जाती है। यह पूरी तरह से निशुल्क सेवा है। जो गवर्नमेंट ऑफ इंडिया से फाइनेंस्ड है।