-एडवांस दवाओं और इलाज से एचआई व एड्स मरीजों की बढ़ी जिंदगी
-कुल 1142 रजिस्टर्ड मरीजों में से 440 एचआईवी, 702 एड्स पीडि़त
BAREILLY: एचआईवी पॉजिटिव होने की पुष्टि ही किसी भी इंसान की जिंदगी में अंधेरा करने के लिए काफी है। शर्तिया जानलेवा बीमारी का डर इंसान की जिंदगी खत्म होने से पहले ही उसे मारना शुरू कर देता है। लेकिन इस बीमारी के खिलाफ लगातार कारगर और असरदार साबित हो रही दवाओं की कामयाबी, मरीज को जिंदगी की अनमोल उम्मीद देने का काम कर रही है। एचआईवी पॉजिटिव मरीज अब बीमारी का पता लगते ही एआरटी सेंटर से इलाज शुरू करने पर नॉर्मल इंसान की तरह जिंदगी जी रहे हैं। इससे लाइलाज बीमारी एड्स को कंट्रोल रखने व रोकने में मदद मिली है।
भ् से ख्ख् साल बढ़ी लाइफ
क्ख्-क्भ् साल पहले तक एड्स की चपेट में आने के बाद मरीज धीरे धीरे इम्यूनिटी खत्म होने से भ्-म् साल में ही दम तोड़ देते थे। लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की मुहिम और नाको-यूपीसैक्स के सहयोग ने एड्स के मरीजों की उम्र में ख्0 से ख्ख् साल तक का इजाफा किया है। लेकिन इसके लिए मरीज का एआरटी में समय रहते रजिस्ट्रेशन व दवाओं की रेगुलर डोज लेना जरूरी है। इसके अलावा समय-समय पर सीडी-ब् यानि क्लस्टर डिफिशिएंसी ब् टेस्ट कराना जरूरी है।
एचआईवी और एड्स एक नहीं
लोगों में एचआईवी और एड्स को लेकर अब भी काफी कंफ्यूजन है। एचआईवी यानि ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस रेट्रो वायरल है। जबकि एड्स एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंस सिंड्रोम एक खतरनाक सिचुएशन है। एचआईवी पॉजिटिव का मतलब इंसान में रेट्रो वायरल का होना है। लेकिन इंसान की इम्यूनिटी मजबूत होने तक वह नॉर्मल ही रहता है। लेकिन एड्स वह सिचुएशन है जिसमें इंसान की इम्यूनिटी खत्म होने लगती है और वह जानलेवा बीमारियों के खतरे में आ जाता है।
70ख् एड्स, ब्ब्0 एचआईवी
बरेली मंडल में कुल क्क्ब्ख् ऐसे मरीज हैं जिनका एआरटी सेंटर से इलाज चल रहा है। इनमें 70ख् एड्स मरीज व ब्ब्0 एचआईवी पॉजिटिव है। एचआईवी व एड्स के बीच अंतर सीडी-ब् टेस्ट से की जाती है। इंसान में फ्भ्0 से ज्यादा सीडी-ब् पाए जाने वाला एचआईवी पॉजिटिव मरीज की इम्यूनिटी अगर मजबूत है तो उसे दवाओं की जरूरत नहीं होती। लेकिन फ्भ्0 से कम सीडी-ब् खतरनाक स्टेज है। इसमें तुरंत इलाज की जरूरत है। वहीं बच्चों में 7भ्0 से ज्यादा सीडी-ब् सेफ माना जाता है। भ्00 से ज्यादा सीडी-ब् वालों को हर म् महीने में और भ्00 से कम सीडी-ब् वालों को हर तीसरे महीने में अपना टेस्ट कराना होता है।