BAREILLY: किसी ने कहा हैआंचल में संकल्प भरे है, पांवों में जंजीर भले हैं। अबला से सबला बन जाऊं, बिखरे कई विकल्प पड़े हैं'
मां के शरीर में अपने अस्तित्व को पनपता महसूस कर रही नन्हीं कली बाहरी दुनिया के विकल्पों को चुन बुलंदियां छूने का सपना देखती है। जैसे कोख में रहकर वह मां की उन सभी अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करने का वादा ले रही हो, जो उसकी मां चाह कर भी नही कर पाई। लेकिन फिर एक दिन किसी मशीनी जांच और रोती हुई मां की आहें उसे अहसास करा जाती हैं कि समाज की बेडि़यों का हवाला देते हुए उसे कुचला जा रहा है। ऐसी कितनी ही कलियां खिलने से पहले ही तोड़ दी गई और आज ये सभी एक ही सवाल पूछती हैं कि आखिर हम सब कब कहेंगे, 'मुबारक हो बिटिया हुई है'
महिला सशक्तिकरण से ही बदलेगी तस्वीर
लड़कियों को कोख में ही मार देने या पैदा होने पर लावारिस छोड़ देने के मामलों के पीछे समाज की वंशवाद चलन व दहेज जैसी कुप्रथा प्रमुख हैं। इस स्थिति में तभी बदला जा सकता है जब लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाया जाए। इसके साथ ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए व्यवहारिक रूप से पिता की जायदाद में बराबर का हक मिलना व जमीन आदि पर पूरा हक दिये जाना बहुत आवश्यक है। हालाकि इन तरह के कानून बनाये जा चुके है लेकिन ये हक आज भी महिलाओं से दूर हैं।
अब तो डराने लगे हैं आंकड़े
आंकड़ों के मुताबिक 2011 की जनगणना में बरेली में चाइल्ड सेक्स रेशियो 1000 (लड़का) और 90फ् (लड़की) था, जो दस साल पहले के औसत से कम है। ख्00क् में ये अनुपात क्000 के मुकाबले 90म् का रहा है। चाइल्ड पॉप्यूलेशन के आंकडे़ शहर में भू्रण हत्याओं और किशोरियों के साथ हो रही हिंसाओं की ओर इशारा कर रहे है। बरेली में ख्0क्क् में 0 से म् साल की उम्र के बच्चों की कुल संख्या 70क्,ब्क्म् थी, जिनमें फ्म्8भ्9क् लड़के और फ्फ्ख्8ख्भ् लडकियां थीं। दस साल पहले ये आंकड़ा फ्7,7फ्म्0 और फ्ब्,क्8भ्7 का था। आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सुधार की बजाए इसमें लगातार गिरावट दर्ज हो रही है।
लचर कानून भी बड़ी वजह
कोख में ही मार दिये जाने की मानवता को शर्मसार कर रही घटनाओं के लिए मौजूद कानून लचर स्थिति में है। क्99ब् में बने कानून प्री कांसेप्शन एंड प्रीनेटल डाईग्नोस्टिक टेक्नोलॉजी एक्ट यानि पीसीपीएनडीटी के तहत लिंग जांच व भ्रूण हत्या के लिए मात्र फ्00 से ब्000 रुपये तक की पेनाल्टी का प्रावधान है। इस मामले में पीसीपीएनडीटी एडवाइजरी कमेटी की सदस्य शिखा सिंह मानती है कि गैर कानूनी ढंग से हो रही जांचों के मामलों में डॉक्टरों पर कार्रवाई होती है। लेकिन कोर्ट गवाही के अभाव में ये लोग छूट जाते हैं। शिखा कहती हैं कि एक्ट में सुधारकर इसे और कड़ा करने की जरूरत है। यहां बताते चलें कि भारत में भ्रूण जांच और अर्बाशन के इल्लीगल धंधे का कारोबार एक हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।