ऐ दोस्त हमें नाज है तेरी दोस्ती पर
बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा बस ऐसा ही होता है दोस्ती का रिश्ता न जमाने का बंधन, न मर्यादाओं की दीवार दोस्त पर सब कुछ न्यौछावर। ऐसे ही अपने सबसे अजीज दोस्तों से जुड़ी कुछ मीठी यादें बरेली सिटी के टॉप ऑफिसर्स ने आई नेक्स्ट के साथ शेयर की। कुछ को जिंदगी में ऐसे दोस्त भी मिले जिन्होंने अपने डिवोशन और त्याग से उनके लिए सफलता के पथरीले रास्तों को सुगम बनाया। इन ऑफिसर्स ने दोस्ती के कुछ ऐसे ही खट्टे-मीठे अनुभवों की रोचक दास्तां बयां की।
एलवी एंटनी देव कुमार, डीआईजी
Job कर मुझे पढ़ाया
हमने क्लास 1-12 तक साथ पढ़ाई की है। इकोनॉमिकली वीक होने के कारण मेरे दोस्त जेवियर ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर मेरी नैया पार लगाने की ठानी। उसने राशन शॉप में सेल्समेन की छोटी सी नौकरी तक की। मैंने लॉ की पढ़ाई के साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की। आज मैं पुलिस डिपार्टमेंट में एक अच्छी पोस्ट पर हूं। जेवियर और मैं एक ही गांव के रहने वाले हैं। जेवियर अब भी गांव में ही रहता है, लेकिन हमारी दोस्ती आज भी एक मिसाल है। हम आज भी एक दूसरे के लगातार संपर्क में रहते है.ं बचपन में अगर हमारे पास एक लोग के खाने के पैसे होते थे तो दोनों मिलकर खाते थे। जैसे उसने मेरे लिए इतना कुछ किया वैसे ही मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हंू। सिटी के कमिश्नर के राम मोहन राव भी मेरे दोस्त हैं। हमने 1994 में मंसूरी में एक साथ ट्रेनिंग की है। तीन महीने एक साथ रहे। उसके बाद राम आईएएस बन गया और मैं आईपीएस।
के राम मोहन राव, कमिश्नर
IAS बनाने में दोस्तों का ही हाथ
पैसे और पॉवर के चलते तो मेरेकई दोस्त बने लेकिन दो दोस्त ऐसे हैं जो दिल के करीब हैं। इनमें से एक शक्ति नारायण और दूसरे काली कुमार। दोनों से मेरी दोस्ती आंध्र प्रदेश के वेस्ट गोदावरी डिस्ट्रिक्ट के एलूर स्थित सर सीआर रेड्डी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुई। उस दौरान मैं गांव से पढ़ाई करने शहर जाता था। घर से मुझे जो खाना बनाकर दिया जाता था उसे मैं दोस्तों के घर जाकर शेयर करके खाता था। उनके घर पर मुझे घर जैसा महसूस होता था। आज उन्हीं दोस्तों की प्रेरणा से मैं आईएएस बना और मेरे दोस्त हैदराबाद सेक्रेटेरिएट में डिप्टी सेक्रेटरी और ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में काम कर रहे हैं। आज भी हर सुख-दुख में एक दूसरे के साथी हैं।
उमेश प्रताप सिंह, नगर आयुक्त
miss my friends
प्रतापगढ़ के केपी इंटर कॉलेज में साइंस साइड से मैं इंटर कर रहा था। मेरी ही क्लास में एक शांत सा दिखने वाला लड़का पढ़ता था। उसका नाम लक्ष्मी कांत मिश्र था। मुझे ये देखकर बहुत कोफ्त होती थी कि वह पढऩे में तो अच्छा है मगर गलत सोहबत का शिकार था। क्लास बंक करके पिक्चर देखना। यूं ही दोस्तों के साथ घूमते रहना। मैं उसे देखकर सोचता था कि उसका फ्यूचर कितना ब्राइट हो सकता है। खैर मैंने उसकी काउंसलिंग करना शुरू कर दिया। काफी समझाने के बाद आखिरकार उसका माइंड डायवर्ट हुआ। इंटर के बाद वह इंजीनियरिंग में चला गया। आज मैं ये सोचकर खुश हूं कि वह सिंगापुर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में बेहतर पोजीशन में कार्यरत है। वहां से उसके फोन आते है तो दिल खुश हो जाता है। दोस्तों के बारे में सोचता हूं तो एक और मेरा जिंदादिल दोस्त ललित मिश्र भी मेरी यादों में रचा बसा है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करते समय हमारी मुलाकात हुई। फाइनेंसियली वीक होने के कारण कई मौकों पर मैने उसकी मदद की। खास बात ये है कि 1992 के बाद से अब तक मेरी हर ज्वाइनिंग पर ललित मुझसे आकर जरूर मिलता है। बरेली पोस्ट होने के बाद भी वह मुझसे मिलने आया। हमारे पारिवारिक संबंध इतने स्ट्रांग है कि अगर हमारे घर में कोई फंक्शन होता है तो वह जरूर शिरकत करता है। सुख-दुख के पलों में हम हमेशा करीब रहे है। मैं कहीं भी रहूं मगर दोस्तों को जरूर मिस करता हूं।
राजेश आनंद, ब्रिगेडियर
मुझे बचाने के लिए लगा दी थी जान की बाजी
यूं तो मेरे स्कूल, कॉलेज के अधिकांश दोस्त मेरे टच में हैं। पर उसकी यादें कुछ खास हैं। उस दिन वह मेरे साथ न होता तो मैं इस दुनिया से रुखसत हो जाता। उस समय मैं लीबिया में शांति सेना में कार्यरत था। एक दिन मैं समुद्र में स्विमिंग के दौरान भंवर में फंस गया। मैंने तो अपने बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। उसी समय मेरे दोस्त ब्रिगेडियर एपी सिंह की नजर मेरी तरफ पड़ी। बस फिर क्या था, उन्होंने बिना कुछ सोचे मुझे बचाने के लिए डाइव लगा दी। और कुछ ही समय में मुझ तक पहुंच गए। तब तक मैं बेहोश हो चुका था। वह मुझे किनारे तक ले गए। और मुझे मेरे कैंप तक सकुशल पहुंचाया। वास्तव में जो दोस्त बुरे वक्त में काम आए, वही तो सच्चा दोस्त होता है। तब से हम टच में हैं। आज भी जब किसी टेंशन में होता हूं, तो उसे याद करता हूं। सेना में सेलेक्शन मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था। मुझे करियर के शुरुआती दिनों से पता था कि कोई भी सफलता आसानी से नहीं मिलती इसलिए कड़ी मेहनत की जिसका मुझे अच्छा और सुखद परिणाम मिला। मेरा परिवार हमेशा मेरा सपोर्ट करता है। किसी भी तरह के डिसीजन मेकिंग में मेरी फैमिली का अहम रोल होता है। फ्रेंडशिप डे पर मेरा कहना है कि कई दोस्त बनाने से बेहतर है कि ऐसे दोस्त बनाने चाहिए जो आपके सुख-दुख में हमेशा आपके साथ खड़े रहें।
आईएस तोमर, मेयर
thanks to my friend
बात 1972 की सर्दियों की है। कानपुर मेडिकल कॉलेज से एमएस की पढ़ाई के दौरान मेरी मुलाकात एक शख्स से हुई। वह बातचीत में संजीदा मगर खुशमिजाज था। पहली ही मुलाकात में हम अच्छे दोस्त बन गए। मैं आपको उस बेहद करीबी दोस्त का नाम नहीं बताऊंगा। वह फाइनेंसियली काफी वीक था। उसके पास कोई जॉब नहीं थी। उसी दौरान किस्मत से मुझे रजिस्ट्रार और डिमास्ट्रेटर की जॉब का ऑफर आया। मैं खुश तो था मगर कहीं न कहीं अपने दोस्त की हालत को लेकर बेचैन था। बात जरूरत की थी। मैने बिना कुछ सोचे उसे जॉब ट्रांसफर कर दी। थोड़ी सी मशक्कत के बाद वह जॉब में आ गया। आज वह यूपी के प्रख्यात सर्जन हंै। इतना ही नहीं उनका लड़का आईएएस ऑफिसर है। काम में मशरूफियत के चलते हम अब भले कम मिलते हों मगर दिल के तार आज भी जुड़े हैं। फ्रेंडशिप डे पर मैं एक और सीनियर का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। मेरठ से एमबीबीएस कंप्लीट करके मैं एमएस भी मेरठ से ही करना चाहता था। मगर मेरे सीनियर एस.कुमार अड़े रहे कि मुझे कानपुर जाकर एमएस की पढ़ाई करनी चाहिए। वह इतना मुझे इतना प्रेम करते थे कि खुद मेरा सामान पैक करके मुझे ट्रेन में बैठा दिया। खास बात ये है कि मेरठ में एमएस कोर्स 4 साल बाद शुरू हुआ। अगर उन्होंने वह स्टेप न लिया होता तो शायद मैं जिस पोजिशन पर आज हूं न होता। थैक्स टू माई रीयल फ्रेंड।
डॉ। सुधांशु, सीएमएस
wife ही मेरी दोस्त
बात बहुत पहले की है। जुलाई 1984 में मेरा मैनपुरी से अलीगढ़ के लिए ट्रांसफर हुआ। अलीगढ़ में ज्वाइनिंग के बाद अगस्त महीने मेे मेरी तबियत अचानक बहुत अधिक खराब हो गई। टेस्ट कराने के बाद क्लीयर हुआ कि मुझे ज्वाइंडिस हो गया था। बीमारी का लेवल इतना हाई था कि उसका असर सीधे ब्रेन तक पहुंचने लगा। उस वक्त अलीगढ़ में मैं सिर्फ अपनी वाइफ और दो साल की बच्ची के साथ ही रह रहा था। मैं आज सोचकर हैरान रह जाता हूं कि मेरी वाइफ अकेले मुझे लेकर लखनऊ पहुंची। उन्होंने मुझे हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। बाद में जब मुझे होश आया तो मेरी आंखों से आंसू छलक छलक गए। वैसे एकेडमिक लाइफ से ही मेरा कोई दोस्त नहीं था। उस दिन से मेरी वाइफ ही मेरी दोस्त बन गई। आज भी वही मेरी सच्ची दोस्त है। लाइफ का लंबा समय मैंने उनके सुझावों पर काम किया। ट्रांसफरेबल जॉब के चलते मैं उन्हें टाइम तो नहीं दे पाता था मगर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। मैं इस फ्रेंडशिप डे पर उनका शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने हर मोड़ पर मेरा साथ दिया।
नरेंद्र सिंह पटेल, सीडीओ
बिछड़ा यार मिला तो खिला चेहरा
मैं नैनीताल के सैनिक स्कूल में क्लास 5 में था, तभी मेरी मुलाकात हुई थी आनंद स्वरूप दुबे से। पर पारिवारिक वजहों से क्लास 9 के बाद स्कूल छोडऩा पड़ा। हालांकि, उसने किसी और स्कूल से पढ़ाई जारी रखी। वह क्लास में मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। मुझे उसका जाना बहुत बुरा लगा। मैं अक्सर उसे याद करता था। उसके साथ बिताए पल मुझे अनायास ही याद आ जाते थे। पर अचानक चार साल बाद वक्त ने करवट ली। एक दिन ग्रेजुएशन के दौरान जब मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में फ्रेंड्स के साथ ग्राउंड में खड़ा था, पीछे से किसी ने मुझे आवाज दी। मैंने चौंककर पीछे देखा। वह आनंद की आवाज थी। हालांकि मुझे उसे पहचानने में थोड़ी देर लगी, पर उसका मिलना जैसे मुझे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो। उसके बाद से तो हम टच में हैं। जब भी उससे बात होती है तो पुरानी सारी यादें ताजा हो जाती हैं। आनंद इस समय एक कामयाब बिजनेसमैन है। दोस्ती को आसानी से परिभाषित नहीं किया जा सकता। अपने कैरियर के शुरुआती दौर में मेरी जिंदगी में कई दोस्त आए और गए लेकिन उनमें से कुछ ही दोस्त ऐसे हैं जिनको आप कभी भूल नहीं पाते। मेरा मानना है कि जहां तक हो आप अच्छे लोगों से दोस्ती करें क्योंकि जैसी संगति होती है वैसा ही इंपेक्ट आपके जीवन पर पड़ता है।