सिर्फ फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट कलेक्टर ही जाते हैं निरीक्षण पर

वैज्ञानिक मौके पर जाती नहीं और सहायक वैज्ञानिक की पोस्ट है खाली

BAREILLY:

केस-1

शाही थाना के दुनका में 5 नवंबर 2013 को डकैती की वारदात हुई थी। इसमें वादी ने डकैती के साथ-साथ विरोध करने पर गोली मारने की एफआईआर दर्ज करायी थी। फील्ड यूनिट मौके पर गई तो उन्हें घटना संदिग्ध लगी क्योंकि घर में कोई सामान बिखरा नहीं था। इसके अलावा मेन गेट पर अंदर से ताला लगा था। इससे साफ हो गया कि सिर्फ फायरिंग की घटना हुई थी।

केस-2

बिथरी चैनपुर में 17 सितंबर 2013 को लूट के बाद गोली मारने की वारदात हुई थी। सेवादार ने बताया कि बदमाशों ने सामने से गोली मारकर लूटपाट की थी। उसका कहना था कि गोली उसके कंधे पर लगी। मौके पर जब फील्ड यूनिट पहुंची तो पाया कि बाइक में गिरने के कोई निशान नहीं हैं और गोली लगने पर भी संदेह था, इस सबसे मामला झूठा पाया गया।

इन दो केसेस से साफ होता है कि किसी भी अपराधिक घटना में फील्ड यूनिट की कितनी इंपॉर्टेस होती है। फील्ट यूनिट यानि फोरेंसिक टीम क्राइम सीन पर पहुंच कर पूरे घटनास्थल की बारीकी से जांच करते ही सच्चाई का पता लगा सकती है, लेकिन ये तभी संभव है जब फील्ड यूनिट टीम में एक्सपर्ट साइंटिस्ट हों। गौरतलब है कि इस वक्त बरेली फील्ड यूनिट का हाल बेहाल है। यहां सिर्फ दो फोटोग्राफर व फिंगर प्रिंट कलेक्टर ही वर्क कर रहे हैं। एक लेडी कांस्टेबल हैं, लेकिन वह टेंप्रेरेरी है और अभी ट्रेनिंग कर रही है। कहने को एक वैज्ञानिक भी हैं लेकिन वह फील्ड पर जाना कम ही पसंद करती हैं। ऐसे में बिना वैज्ञानिक की गाइडेंस और पूरे स्टाफ के बरेली फील्ड यूनिट टीम आजकल मौके-ए-वारदात से सुराग ढूंढने में फिसड्डी ही नजर आती है।

7 में से ब् का स्टाफ

बरेली फील्ड यूनिट के स्टाफ की बात करें तो यहां एक वैज्ञानिक, एक सहायक वैज्ञानिक सहित 7 लोग होने चाहिए लेकिन अभी सिर्फ ब् ही लोग बचे हैं। इनमें एक वैज्ञानिक, एक-एक फोटोग्राफर, फिंगर प्रिंट कलेक्टर और ट्रेनी लेडी कांस्टेबल हैं।

साइंटिस्ट नहीं दिखती फील्ड में

बरेली फील्ड यूनिट टीम में प्रमुख वैज्ञानिक हैं लेकिन उनका होना ना होना एक ही बराबर है। प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर वंदना दुबे कभी-कभार ही किसी घटनास्थल पर नजर आती हैं। इसके अलावा सहायक वैज्ञानिक की पोस्ट काफी समय से खाली पड़ी है। अभी तक कनिष्ठ प्रयोगशाला सहायक, टीम की हेल्प करते थे लेकिन अब उनका बदायूं के लिए प्रयोगशाला सहायक के पद पर ट्रांसफर हो गया है। ऐसे में टीम को सही वर्किंग के लिए गाइड करने वाला कोई नहीं है।

वैज्ञ्‍ानिक का क्या है काम

एक वैज्ञानिक घटनास्थल पर पहुंचकर आसानी से समझ जाता है कि घटना सच है या नहीं। वह टीम को सजेस्ट कर सकता है कि मौके से क्या-क्या सैंपल कलेक्ट करने चाहिए। जैसे ब्लड सैंपल लेना, किसी की लार या थूक मौके पर है, उसे कैसे कलेक्ट करना है, फिंगर प्रिंट, गोली लगने पर बैलस्टिक रिपोर्ट व अन्य तरह से सैंपल कलेक्ट करना होता है। वैज्ञानिक तो जांच कर मौके से ही बता सकता है कि गोली लगी है कि नहीं। वह ही सैंपल्स को लखनऊ फोरेंसिक लैब में जांच में भेजने के लिए रिफर कर सकता है।

कर देते हैं ट्रांसफर

किसी भी बड़ी वारदात को सुलझाने के लिए साइंटिफिक तरीकों को यूज करना बहुत जरूरी है, इसलिए डीजीपी ने भी ज्यादा से ज्यादा साइंटिफिक मेथड यूज करने के निर्देश दे रखे हैं। वहीं एडीजी का साफ निर्देश है कि लोकल लेवल से फोरेंसिक टीम में ट्रांसफर नहीं किया जाएगा फिर भी डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ट्रांसफर किए जा रहे हैं। इससे भी फील्ड यूनिट कमजोर पड़ जाती है।