-थिएटर को और ज्यादा पॉपुलर कैसे बनाया जा सकता है?

थिएटर को सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। थिएटर ही नहीं वरन किसी भी कला को एकेडमिक सिलेबस में स्पेस दिया जाना जरूरी है। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि थिएटर, संगीत या क ोई भी कला को जानने के बाद उसे करियर बना लिया जाए। बल्कि इसे सिलेबस में स्पेस

दिए जाने से हर व्यक्ति अच्छा दर्शक

बन पाएगा। इससे कहीं न कहीं थिएटर आर्टिस्ट के काम में भी निखार आएगा। दर्शक  केवल मूक दर्शक बन कर नहीं रहेंगे. 

-रियलिटी शोज के बारे में आपकी क्या राय है?

रियलिटी शोज कला की आत्मा को मार रहे हैं। वास्तव में हमारे रियलिटी शोज का दायरा बहुत सीमित है। इसमें ग्लैमर तो है पर कलाकार खुल कर सामने

नहीं आ पाता। उसकी प्रतिभा सीमित दायरे में ही बंध कर रह जाती है।

जरूरत है कि रियलिटी शोज शोहरत का जरिया न बनकर प्रतिभा को निखारने का काम करें. 

-आपने थिएटर और सिनेमा दोनों में काम किया है। दोनों में क्या डिफरेंस है?

थिएटर क रना वास्तव में चैलेंजिंग है। एक थिएटर करने के लिए आर्टिस्ट्स 21 या 30 दिन पहले से रिहर्सल करना शुरू करता है। स्क्रिप्ट के अनुसार खुद को ढालता है और शो के दौरान अपना पूरा अनुभव वहां उड़ेल देता है। दोबारा जब वही प्ले करना होता है तो फिर से उतनी ही मेहनत करनी पड़ती है। थिएटर में आर्टिस्ट को दर्शकों का लाइव रिएक्शन देखने को मिल जाता है। हर बार उसकी आडिंएस अलग होती है। काम करने का जज्बा भी बदलता है। हर बार कलाकार का अनुभव बढ़ता जाता है, उसकी कला निखरती जाती है। पर सिनेमा एक बार तैयार हो गया तो उसमें बदलाव नहीं किए जा सकते।

-फोक थियटर दम तोड़ता जा रहा है। क्या आपको भी ऐसा लगता है?

नहीं, फोक थिएटर मरा नहीं है। हां, इसका स्वरूप जरूर बदला है। हमारा फोक कल्चर गांवों से निकलकर शहर की तरफ बढ़ रहा है। अब महाराष्ट्र में होने वाली लावनी को ही ले लें तो वर्तमान में लावनी फिल्म जैसी हो गई है। यही परिवर्तन नौटंकी और भांड में भी दिखता है। पर अगर हमें फोक के वास्तविक स्वरूप को बचाना है तो इसके लिए गवर्नमेंट की ओर से एफ ट्र्स किए जाने जरूरत है. 

-जगदम्बा के बारे में  क्या राय है?

जगदम्बा वास्तव में कस्तूरबा की कहानी उन्हीं की जुबानी है। गांधी के बारे में उनकी राय, उनके दुख को अपने दुख मानने के बीच का अंतद्र्वंद्व है जगदंबा। जगदंबा का किरदार मेरी आत्मा में बस चुका है।

-थिएटर आर्टिस्ट्स के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?

थिएटर करते रहो करते रहो एक दिन कामयाबी तुम्हारे कदम चूमेगी।

Report by: Nidhi Gupta