कम हो रहीं तितलियां
आपने गार्डन में ये जरूर महसूस किया होगा कि लगभग पांच सालों पहले गार्डन में मंडराने वाली तितलियां और भंवरों की संख्या अब उतनी ज्यादा नहीं रही। वैज्ञानिक ये मान रहे हैं कि इनकी संख्या में कमी हो रही है क्योंकि आवश्यकतानुसार इन्हें खाने की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इसके पीछे मुख्य वजह है कि फूलों की खुशबू का खत्म होना.
Hybrid plant से effect
बीसीबी के बॉटनी के एचओडी डॉ। एसपी सिंह और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ। आलोक खरे प्लांट पर कई तरह के रिसर्च कर चुके हैं। उनका कहना है कि फूलों से कम होती सुगंध कहीं न कही हाइब्रिड प्लांट के चलन की वजह से हुई है। हाइब्रिड प्लांट में फूलों के आकार और कलर पर ध्यान दिया जा रहा है न कि उनकी खुशबू पर।
Pollution से chemical लोचा
वैज्ञानिक का मानना है कि पॉल्यूशन के घटकों में मुख्यत: एसपीएम (सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर), आरएसपीएम (रिस्पायरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर), सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड होते हैं। जहां तक एयर पॉल्यूशन की बात है एसपीएम फूल-पौधों पर छा जाते हैं, जिनके असर से पौधों की ग्रोथ इफक्टेड होती है। जाहिर सी बात है इससे फूलों में खुशबू भी इफेक्टेड होती होगी।
तितलियों की importance
फूलों की खुशबू कम होने से फिलहाल लोग सीधे प्रभावित नहीं होंगे लेकिन फ्यूचर में यह बड़ी प्रॉब्लम बन सकती है। भंवरे और तितलियां खुशबू से अट्रैक्ट होकर फूलों तक पहंचते हैं और उनके पराग चूसने के कारण परागण होता है। इसी से फूल, फल में तब्दील होता है। खुशबू कम होने से फल और सब्जियों की पैदावार पर काफी निगेटिव इफेक्ट होगा।
Rental honey bee for apple production
जम्मू और हिमाचल में परागण नहीं होने के कारण सेब की पैदावार पर काफी असर पड़ा। कृषि वैज्ञानिकों ने शोध किया तो पता चला कि वहां मधुमक्खियां सेब के फूलों पर काफी कम संख्या में मंडरा रही हैं, जिससे परागण नहीं हो पा रहा है। किसानों को सलाह दी गई कि वे रेंट पर हनी बी मंगवाएं। किसानों ने ऐसा किया तो वहां सेबों की पैदावार में गुणात्मक वृद्धि देखी गई। इन इलाकों में अब भी ऐसा ही हो रहा है।
खुशबू का दायरा limited
सात सालों पहले जहां फूलों की खुशबू 900-1200 मीटर तक फैलती थी आज वो 200 मीटर भी तय नहीं कर पा रही है. गुलाब, चमेली, रातरानी इसके स्पष्ट उदाहरण है। यह प्रॉब्लम सबसे ज्यादा तितलियों और भंवरे को प्रभावित कर रहा है। हाइब्रिड प्लांट तैयार करने के लिए दो देशी नस्ल के प्लांट के ही किसी खास क्वालिटी को ध्यान में रखकर दोनों में क्रॉस कराया जाता है और फिर हाइब्रिड प्लांट का निर्माण होता है।
तबाह हो जाएगा eco system
अर्थ पर सभी चीजें इको सिस्टम के तहत एक दूसरे से कनेक्ट हैं। इस सिस्टम में हर एक लिविंग बिंग की अपनी एक इंपॉर्टेंस है। इनमें से एक भी कड़ी मिस हुई तो कार्बन साइकिल गड़बड़ हो जाएगी। नेचुरली न फल लगेंगे और न ही बीज बनेगा। यानी प्लांट खत्म हो जाएंगे और उनके खत्म हो जाने से ऑक्सीजन खत्म हो जाएगा और अर्थ से लाईफ खत्म हो जाएगा। तितलियां, भंवरें, जुगनूं और मधुमक्खियों के फूलों पर मंडराने से परागकण होता है। इसके बाद ही पौधों में फल लगते हैं और बीज
बनते हैं।
फूलों की खुशबू में आ रही कमी के पीछे हाइब्रिड प्लांट का ज्यादा चलन मुख्य कारण है. इसमें फूलों के साइज और आकर्षक रूप को लेकर नये प्लांट तैयार किए जा रहे है लेकिन फूलों की खुशबू पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में यह बात सही है कि जिन फूलों की खुशबू कभी दूर से ही आती थी आज उनके सामने जाने पर भी सुगंध नहीं आती है। इसकी वजह से भंवरे और तितलियां भी अब कम नजर आ रहे हैं।
-डॉ। एसपी सिंह,
एचओडी, बॉटनी डिपार्टमेंट
पिछले 7-8 सालों के दौरान फूलों की खुशबू में काफी अंतर आया है. हाइब्रिड प्लांट के फूलों में खुशबू बिल्कुल कम रह गई हैं। इसका असर भंवरे और तितलियों पर पड़ रहा है। अब इनकी संख्या भी कम ही दिखती है। हाइब्रिड प्लांट का यूज इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि जगह कम है और लोगों को इसमें ज्यादा और बेहतर पैदावार चाहिए। ऐसा अगर चलता रहा तो इकोसिस्टम पर विपरीत प्रभाव पडऩा भी तय है।
-डॉ। आलोक खरे, एसोसिएट प्रोफेसर, बॉटनी डिपार्टमेंटReported by:Gupteshwar Kumar