(बरेली ब्यूरो)। अपनी सिटी में 300 से अधिक निजी अस्पताल हैं। इसके अलावा रेस्टोरेंट्स व होटल्स की संख्या भी कम नहीं है। आए दिन नए-नए उपक्रम खुलते जा रहे हैं। लेकिन, इनके संचालकों को अपने यहां आने वालों की लाइफ की चिंता तनिक भी दिखाई नहीं देती। अपने कस्टमर्स की जान की उन्हें कितनी परवाह है, इसका अनुमान वहां मौजूद अग्निशमन सुरक्षा को लेकर की गई व्यवस्थाओं से ही लगाया जा सकता है। अधिकांश स्थानों से तो फायर सेफ्टी सिस्टम ही नदारद हैं। वहां केवल गिनती के फायर एक्सटिंग्यूसर लगाकर खानापूर्ति कर दी गई है। डीडीपुरम स्थित लूथरा टॉवर की तरह यदि कभी इनमें से किसी स्थान पर आग लग जाए तो बड़ी अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने लूथरा टॉवर में आग लगने के बाद बरेलियंस की राय जानने के लिए सोशल मीडिया पर फायर सेफ्टी को लेकर सर्वे कराया। इसमें 90 परसेंट बरेलियंस फायर सेफ्टी इंतजामों से नाखुश दिखाई दिए।

एनओसी पर लापरवाही
22 मार्च को लूथरा पॉवर में मीटर पैनल में शॉर्ट सर्किट से लगी आग के बाद रेस्टोरेंट्स, होटलों, अस्पतालों और स्कूलों में आग बुझाने की व्यवस्थाओं क्वेश्चन मार्क लगना लाजमी है। स्पष्ट है कि डिस्ट्रिक्ट में एनओसी के नाम पर खूब खेल किया जा रहा है। भविष्य में इसके भयानक परिणाम सामने आ सकते हैं। यहां पर अधिकांश ऐसे संस्थानों और प्रतिष्ठानों के पास फायर एनओसी नहीं है, जबकि बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन से पहले ही एनओसी ली जाती है। लेकिन, इसमें खेल कर बिना एनओसी के ही भवन तैयार करा लिए जाते हंै। इसको लेकर जिम्मेदार भी मौन धारण किए रहते हैं। अफसरों द्वारा भी निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति कर ली जाती है। जनपद की बात करें तो यहां कई स्कूल, रेस्टोरेंट, होटल एवं हॉस्पिटल ऐसे हैं, जिनपर एनओसी नहीं है। ऐसे में इनके संचालकों द्वारा लोगों की जान से जानबूझ कर खिलवाड़ किया जा रहा है।

भीड़भाड़ वाले इलाकों में निर्माण
लूथरा टॉवर की घटना के मामले में जिम्मेदारों की सारी हकीकत सामने आ गई है। आबादी वाले क्षेत्र में इतना बड़े व्यावसायिक टॉवर का चलना व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है। आग लगने पर वहां का फायर सेफ्टी सिस्टम भी चालू हालत में नहीं मिला। इसके अलावा भी कई स्कूल, नर्सिंग होम आदि की बिल्डिंग तो ऐसे स्थान पर हैं, जहां लोगों का काफी आवगमन रहता है। यहां लोगों की जान को खतरा बना रहता है। यदि कोई एक्सीडेंट होता है तो इनके पास आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम तक नहीं हैं। लेकिन, अग्निशमन या प्रशासनिक अफसरों की ओर से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। घटनाओं के बाद भी से लोग सबक नहीं ले रहे।


लगा भी लें तो नहीं करते चैक
ऐसे किसी भी संस्थान को लाइसेंस जारी करने से पहले अग्निशमन विभाग से एनओसी लेनी होती है। विभाग द्वारा तय मानकों पर वहां मौजूद सेफ्टी अरेंजमेंट्स को चैक करने के बाद ही एनओसी जाने का प्रावधान है। अधिकांश स्थानों की बात करें तो अग्नि सुरक्षा के नाम पर बस दो-चार फायर एक्सटिंग्यूसर जरूर लगा दिए गए हैं, जिनकी उपयोगिता की जांच भी लंबे समय से नहीं की गई है। इन संस्थानों के संचालक तो इसे लेकर बेपरवाह हैं ही, अग्निशमन विभाग भी आंख बंद कर मौन साधे बैठा है।

ये हैं फायर सेफ्टी रूल्स
बिल्डिंग में मिनिमम डेढ़-डेढ़ मीटर चौड़े दो दरवाजे होने चाहिए।
टॉप फ्लोर पर ओवरहेड टैंक कंपलसरी है, जो हमेशा पानी से भरा रहे।
बिल्डिंग में जगह-जगह अग्निशमन यंत्र लगे हों।
आपातकालीन संकेतक और फायर अलार्म का अरेंजमेंट हो।
बेसमेंट में किसी भी हाल में संचालन नहीं होना चाहिए।
स्टार्ट करने से पहले अग्निशमन विभाग की एनओसी ली गई हो।
संस्थान में अग्निशमन विभाग, पुलिस और आपातकालीन नंबरों का डिस्प्ले हो।

इन क्वेश्चन्स पर यह रहा फीडबैक

क्वेश्चन यस नो
क्या कहीं आग लगने के बाद फायर बिगेड समय पर पहुंच पाती है। 100 परसेंट -----
क्या जिम्मेदार फायर सेफ्टी नॉम्र्स फॉलो कराने के प्रति अवेयर दिखते हैं। 13 परसेंट 87
क्या आप होटल, रेस्टोरेंट, हॉस्पिटल या अन्य सार्वजनिक स्थानों के 20 परसेंट 80
फायर सेफ्टी इंतजाम से संतुष्ट हैं।

वर्जन
फायर सेफ्टी के लिए हमारी टीम समय समय पर अभियान चलाती रहती है। पब्लिक को भी इसके लिए अवेयर होना पड़ेगा।
- सीके शर्मा, सीएफओ