बरेली(ब्यूरो)। आंखों में गुस्सा और सपनों के टूटने का डर, इंस्टीट्यूट के बाहर खड़े हर स्टूडेंट के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। यह नजारा थर्सडे को थाना इज्जतनगर के बन्नूवाल कॉलोनी में 2017 से संचालित हो रहे पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट के गेट का था। दरअसल फर्जी तरीके से संचालित हो रहे इस इंस्टीट्यूट पर पुलिस व स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने छापा मारा था। इस दौरान वहां से इंस्टीट्यूट संचालक व उसके सहयोगी को गिरफ्तार कर लिया गया। इंस्टीट्यूट के फर्र्जी होने की सूचना मिलने पर गेट पर बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स की भीड़ लग गई। वे इस के विरोध में आक्रोश प्रकट करने लगे।
प्रिंसिपल पर भी केस
पैरामेडिकल कॉलेज में एडमिशन कराने के नाम पर फर्जी एफिलिएशन सर्टिफिकेट के आधार पर चलाए जा रहे इंडियन पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट का पुलिस व स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने भांडाफोड़ किया। संस्था ओनर विनोद यादव पुत्र दयाराम यादव निवासी बारादरी थाना क्षेत्र के मेगा सिटी कॉलोनी संजय नगर एवं प्रिंसिपल जगदीश चंद्रा पुत्र आनंद प्रसाद, जो प्रेमनगर थाना क्षेत्र के राजेंद्र नगर में रह रहा है और उत्तराखंड के उधम सिंह का मूल निवासी है। दोनों के खिलाफ बैरियर-2 चौकी प्रभारी उपनिरीक्षक ब्रजपाल सिंह की तहरीर के आधार पर मुकदमा पंजीकृत किया गया है। पुलिस के अनुसार इनके पास से संस्था से जुड़े फर्जी कागजात, संस्था के 12 एडमिट कार्ड, एक लैपटॉप, तीन मोबाइल, फर्जी एफिलिएशन सर्टिफिकेट आदि बरामद हुए हैैं। कार्रवाई के दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम से एसीएमओ डॉ। हरपाल सिंह, एसीएमओ डॉ। भानू प्रकाश व पुलिस विभाग की टीम सीओ थर्ड आशीष प्रताप सिंह, इज्जतनगर थाना प्रभारी अरुण कुमार श्रीवास्तव कार्रवाई उपस्थित रहे।
चल रही थी क्लास
कॉलेज गेट पर मौजूद स्टूडेंट्स ने बताया कि दोपहर 12 बजे क्लास चल रही थी, इसी बीच पुलिस व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी प्रिंसिपल जगदीश चंद्र के ऑफिस में गए। इस पर स्टूडेंट्स ने टीचर्स से पूछा कि क्या बात है तो उन्होंने कहा तुम लोग पढ़ाई करो। सर (प्रिंसिपल) पुलिस से बात कर रहे हैैं।
चार कमरों की है क्लास
बच्चों ने बताया कि इंस्टीट्यूट में 500 से अधिक बच्चों ने एडमिशन लिया है, लेकिन इनमें से कुछ ही क्लास अटेंड करते थे। अधिकांश बच्चे नॉन अटेंडिंग होने के कारण नहीं आते थे, वहीं कुछ जॉब करते थे। जॉब वाले बच्चे एग्जाम न दे पाने की बात कहते थे तो उनसे पांच हजार रुपए लेकर उन्हें बिना एग्जाम के ही पास करवा दिया जाता था। क्लास के नाम पर चार कमरे और एक लैब में पढ़ाई होती थी।
मुश्किल से दी फीस
पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट से कम फीस में कोर्स करने का ख्वाब लिए बच्चों को थर्सडे को तब झटका लगा, जब उन्हें छापा के बाद इंस्टीट्यूट फर्जी होने की जानकारी मिली। बच्चों का कहना था कि वे साधारण परिवार से आते हैैं, आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है, जिस कारण जॉब करके वह फीस जमा कर रहे थे। छापा पडऩे के बाद संस्था को बंद कर दिया गया है, ऐसे में उन के भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगे हैैं।
अरमानों पर फेर दिया पानी
डीएमएलटी सेकंड ईयर के छात्र मोहम्मद हसन ने बताया कि वह नवाबगंज के निवासी हंंैं, पिता किसान हैैं, बड़ी उम्मीदों से यहां एडमिशन लिया था। कोर्स के लिए घर से दूर किराए का कमरा लेकर प्रतिदिन क्लास अटेंड की, लेकिन फर्जी होने की जानकारी मिलने से उनकी उम्मीद को ठेस पहुंची है। उन्होंने बताया कि डीएमएलटी की एक वर्ष की फीस 40 हजार रुपए ली जा रही थी। दिन-रात मेहनत की है। आज भी (छापे वाले दिन) क्लास अटेंड की थी। संस्थान में किसी भी कोर्स की फीस निर्धारित नहीं थी। किसी कोर्स के कुछ स्टूडेंट्स से 90 हजार रुपए लिए जाते थे तो किसी से उस ही कोर्स की फीस 60 हजार भी ली जाती थी।
गेट पर डाला ताला
आक्रोशित स्टूडेंट्स की भीड़ को बढ़ता देख, बिल्डिंग ओनर ने पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट के मुख्य गेट पर ताला डलवा दिया। वहीं गेट पर खड़े होकर स्टूडेंट्स को गेट से हटने के लिए कहते नजर आए।
प्लेसमेंट का लालच
इंस्टीट्यूट संचालक ने वेबसाइट भी बना रखी थी और सर्च करने पर उसका संस्थान भी ऊपर नजर आता था। इस से प्रभावित हो कर बच्चों को आसानी से ïिवश्वास हो जाता था कि यह वेरिफाइड संस्थान है, जो कम रुपए में एडमिशन देता है। संचालक बच्चों को पास कराने से लेकर उनका प्लेसमेंट कराने तक की जिम्मेदारी लेते थे। संचालक विनोद यादव व प्रिंसिपल जगदीश चंद्र द्वारा स्टेट पैरामेडिकल फैकल्टी लखनऊ का फर्जी एफिलिएशन सर्टिफिकेट तैयार कर संस्थान का संचालन करते थे। यहां से पासआउट बच्चे कई बड़े-बड़े अस्पतालों में फर्जी प्रपत्रों के सहारे सेवाएं दे रहे हैैं, जिनका प्लेसमेंट दिखा कर अन्य बच्चों को भी कम फीस में कोर्स करवाने का लालच दिया जाता था।
ये कोर्स किए जाते थे ऑफर
डीएमएलटी, बी फार्मा, डी फार्मा, एएनएम, जीएनएम, ओटी, डीपीटी, एक्स रे, सीएमएस, बीएससी नर्सिंग
बोले स्टूडेंट्स
किसी के साथ एजुकेशन के नाम पर खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, हम लोगों का भविष्य दांव पर लग गया है। अब आगे क्या करेंगे इसकी चिंता सता रही है।
नजमुद्दीन
फीस के नाम पर मोटी रकम वसूली गई और अब इंस्टीट्यूट के फर्जी होने की जानकारी हुई है। इतनी फीस दी थी, अब क्या वापस होगी।
जुनैद
डीएमएलटी कोर्स में दूसरा वर्ष है। ऐसे में समय व रुपए दोनों की बर्बादी हुई है। घर से दूर किराए के मकान में रहकर पढ़ाई कर रहा था, घरवाले इतनी उम्मीद से पढ़ा रहे थे, उन्हें क्या जबाव दूंगा।
मोहम्मद हसन
मेहनत से कमाए रुपए शिक्षा के नाम पर संस्थान वालों लिए और अब फर्जी होने से पांव तले जमीन ही खिसक गई है। ऐसे में हम लोगों का भविष्य दांव पर लग गया है।
अजीम
कुछ अनसुलझे सवाल
-सात वर्षों से चल रहे फर्जी संस्थान की क्या किसी जिम्मेदार को नहीं थी खबर
-क्या इस अवधि में यहां से निकले किसी स्टूडेंट्स ने किसी सरकारी संस्थान में जॉब के लिए एप्लाई नहीं किया
-अगर सरकारी जॉब के लिए एप्लाई किया तो किसी ने उस के सर्टिफिकेट की जांच कराने की जरूरत क्यों नहीं समझी
-किसी भी संस्थान के लिए फायर डिपार्टमेंट से एनओसी भी आवश्यक है तो क्या उस की भी जरूरत महसूस नहीं हुई
खुद को बताता था डॉक्टर
संचालक वीके यादव पहले भी इस तरह का फर्जीवाड़ा कर चुका है। वीके यादव पहले खुद को डॉक्टर बताता था और पीलीभीत बाईपास रोड पर हिंदुस्तान अस्पताल का संचालन करता था। 2017 में इसका पंजीकरण निरस्त कर दिया गया था और उसके खिलाफ कार्रवाई की गई थी। उसके बाद वीके यादव ने भोजीपुरी फिल्मों में भी किस्मत आजमाई। उसने बतौर हीरो भोजपुरी मूवीज में भी काम किया। छात्रों का कहना है कि 2017 से वहां पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट चल रहा था।