बरेली(ब्यूरो)।जल को अमृत कहा गया है, क्योंकि यह जीवन का आधार है। इससे तमाम रोग मिटते हैैं, लेकिन अगर यह शरीर में दूषित रूप में पहुंचता है तो बीमारियों को उत्पन्न भी कर सकता है। इसलिए पानी की सप्लाई को लेकर नगर निगम के जिम्मेदारों को गंभीर होने की जरूरत है। शहर के कई हिस्सों में पीने योग्य पानी नल से न उपलब्ध होने से मजबूरी में लोगों को खरीदकर पानी पीना पड़ रहा है, जिससे अवैध रूप से चल रहे वॉटर सप्लाई सेंटर की संख्या जिले में तेजी से बढ़ रही है।

रेतीला पानी पीने को मजबूर
निगम क्षेृत्र में 96 हजार घरों में ओवरहेड टैैंक के माध्यम से वॉटर सप्लाई किया जाता है। लेकिन, कई क्षेत्रों में सुबह-सुबह सप्लाई के साथ गंदगी आने की समस्या बनी रहती है। ऐसे में अधिकांश लोगों को मजबूरी में इसी पानी को छानकर व उबालकर इस्तेमाल करना पड़ता है, लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैैं।

खरीदकर पानी पीने को मजबूर
ओएचटी सप्लाई का पानी कई स्थानों पर पीने योग्य न होने पर लोग सरकारी नल या फिर खरीदकर पानी यूज कर रहे हैैं। वहीं ओएचटी सप्लाई के पानी से कपड़े-बर्तन धोने व अन्य कार्य किए जा रहे हैैं। इसमें भी जो समर्थ है वह पीने के पानी के लिए रोजाना 30 रुपए खर्च कर आरओ वॉटर कंैफर खरीद रहे हैैं। वहीं शहर में अवैध रूप से संंैकड़ों की संख्या में वॉटर सप्लाई सेंटर चलाए जा रहे हैैं। 30 से 60 रुपए में प्रतिदिन कैंफर के माध्यम से वॉटर सप्लाई की जा रही है। नियमानुसार संचालन न होने से कैम्फर के पानी की क्वालिटी की भी कोई गारंटी नहीं है। कुछ लोग साफ पानी की चाहत में महंगे-महंगे वॉटर प्यूरीफायर सिस्टम लगवा रहे हैैं।

अफसर बने अंजान
शहर में गलियों से लेकर प्रतिष्ठानों तक आरओ प्लांट से पानी की धड़ल्ले से सप्लाई की जा रही है। साथ ही इसकी एवज में 30 से 60 रुपए तक प्रतिदिन की कमाई भी की जा रही है। पानी गुणवत्तापूर्ण है या नहीं, सप्लायर पर एनओसी है या नहीं इसकी भी जिम्मेदारों द्वारा जांच नहीं की जा रही है। ऐसे में पब्लिक के लिए आंख मूंद कर आरओ सप्लाई के पानी की क्वालिटी पर भरोसा करना पड़ रहा है।

एनओसी है जरूरी
शहर व गांव में संचालित औद्योगिक, वाणिज्यिक, होटल, रिसार्ट, बैंक्वेेट हॉल व रिसॉर्ट, आरओ व अस्पतालों को भूगर्भ जल विभाग से एनओसी लेना अनिवार्य होता है, लेकिन कई संस्थान बिना एनओसी ही संचालित हो रहे हैैं।