case-1

सिटी के कमिश्नर ऑफिस में ड्यूटी करने वाली होमगार्ड किरनबाला को उनके मोबाइल पर कुछ दिनों पहले एक फोन आया। फोन करने वाले ने किरनबाला को एयरटेल कंपनी के लकी ड्रॉ में उनकी पांच लाख की लॉटरी लगने की बात कही। किरन को उनकी दादी के इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी इसलिए वह आसानी से झांसे में आ गईं। फोन करने वाले ने लॉटरी के पैसे लेने के लिए उनसे एक अकाउंट में 11,700 रुपए जमा करने को कहा। ठग ने किरन से उनके अकाउंट की डिटेल भी मांगी ताकि लॉटरी के रुपए उनको दिए जा सके। ठग की बातों में आकर किरनबाला ने बताए गए अकाउंट में रुपए जमा कर दिए। इसके बाद उन्हें न ही कोई पैसा मिला और न ही फोन करने वाले का कोई पता चल सका है।

case-2

रेलवे साउथ कॉलोनी के रहने वाले विवेक गौड़ ने अखबार में टॉवर लगवाने का विज्ञापन देखा। विज्ञापन में टावर के एवज में हर महीने लगभग 50 हजार रुपए देने की बात कही गई थी। विवेक ने अपने घर पर मोबाइल टॉवर लगवाने के लिए एडवर्टिजमेंट में दिए गए नंबर पर कांटैक्ट किया। फोन प्रीती नाम की एक लड़की ने उठाया। प्रीती ने विवेक से उनके घर पर एयरसेल का 3जी टॉवर लगवाने का वादा किया। टॉवर लगवाने के लिए उनसे 7001 रुपए की टोकन मनी मांगी गई। इसके लिए उन्हें एक अकाउंट नंबर दिया गया। ठगों के अकाउंट में पैसे डालने के बाद विवेक के घर पर न ही टॉवर लगा और न ही उनके पैसे वापस मिले। इसके बाद से प्रीती का भी कोई पता नहीं है।

फोन, ई-मेल को बनाते हैं जरिया

ठगी का जाल ई-मेल या फिर फोन से चलता है। लोगों को बड़ी कंपनियों के लकी ड्रॉ में ईनाम निकलने का ई-मेल या फोन किया जाता है और ईनाम की राशि पाने के लिए टोकन मनी की डिमांड की जाती है। पैसे जमा करने के लिए एक अकाउंट नंबर भी दिया जाता है। एक बार इस अकाउंट में पैसे पड़ जाने के बाद फोन करने वालों का कोई पता नहीं चलता।

होते हैं well trained

लॉटरी या लकी ड्रॉ की सूचना देने के लिए फोन करने वाले काफी ट्रेंड होते हैं। उनके करने का तरीका इतना सधा होता है कि फोन रिसीव करने वाला आसानी से उनकी बातों में आ जाता है। वहीं फोन करने वाले भी कुछ देर की ही कंवर्सेशन में यह समझ जाते हैं यहां बात बनेगी या नहीं। फोन रिसीव करने वाला अगर पहली बार में ही डांट कर बात करता है तो उसे दोबारा फोन नहीं किया जाता। वहीं अगर आपने इन्हें जरा भी एंटरटेन किया तो यह समझ जाते हैं कि यहां बात बन सकती है।

कॉल सेंटर से होता है खेल

इस तरह की ठगी का काम बाकायदा एक कॉल सेंटर खोल कर किया जाता है। ये कॉल सेंटर दिल्ली, नोएडा, गुडग़ांव जैसे बड़े शहरों से चलाए जाते हैं। कॉल सेंटर में मेल व फीमेल दोनों एंप्लाई रखे जाते हैं। इस रैकेट के लोग मोबाइल कंपनियों के कर्मचारियों के साथ मिली-भगत कर यूजर्स के मोबाइल नंबर और डिटेल ले लेते हैं। इसके बाद इन मोबाइल कंपनियों के नाम से ही यूजर्स के पास कॉल की जाती है। फोन करने वालों के पास यूजर की पूरी डिटेल होती है इस वजह से पढ़े-लिखे लोग भी आसानी से झांसे में आ जाते हैं।

लखनऊ या आगरा में ही सुविधा

इस तरह की धोखाधड़ी के मामले साइबर क्राइम के तहत आते हैं। साइबर क्राइम की यूनिट पूरे यूपी में सिर्फ लखनऊ और आगरा में ही है। इनकी कमांड आईजी लेवल के आफिसर को दी गई है। पीडि़त अपनी कंप्लेन डायरेक्ट भी यहां कर सकते हैं। इसके अलावा थाने में दर्ज होने वाली एफआईआर भी कुछ दिनों बाद यहां ट्रांसफर कर दी जाती है।

पुलिस की गाइड लाइंस

पुलिस की तरफ से इस तरह की ठगी से बचने के लिए कई तरह के दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। जैसे लोगों को इस तरह से आने वाले ई-मेल या फोन पर बिल्कुल ध्यान न दें। कोई अगर बार-बार कॉल करके परेशान करता है तो उसकी तुंरत शिकायत पुलिस में करें।

नहीं हो पाती कार्रवाई

इस तरह की ठगी के शिकार लोगों की एफआईआर तो लिख ली जाती है लेकिन पुलिस के पास ठगी करने वाले के फोन नंबर के अलावा कोई डिटेल नहीं होती। पुलिस के पास इन नंबर्स को सर्विलांस पर लगाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता। वहीं ठगी करने के बाद जालसाज नंबर्स को बंद कर देते हैं जिससे उनकी पहचान नहीं हो पाती।

इस तरह के फोन व ईमेल पर बिल्कुल ध्यान नहीं देना चाहिए। संबंधित थाने या आगरा व लखनऊ में स्थित साइबर सेल में इसकी कंप्लेन कर सकते हैं। फोन या ईमेल ट्रेस करने में टाइम लगता है लेकिन कार्रवाई जरूर होती है।

-एलवी एंटनी देवकुमार,

डीआईजी बरेली