बरेली (ब्यूरो)। स्वास्थ्य विभाग की ओर से मातृ-शिशु मृत्यु दर को रोकने की दिशा में किए जा रहे एफट्र्स नाकाफी साबित हो रहे हैं। विभाग भले ही इसको लेकर जी जान से लगा है पर इसके अपेक्षित परणिाम सामने नहीं आ पा रहे हैं। फिलहाल राहत की खबर यह है कि इस साल पिछले वर्ष की अपेक्षा इस दर में कुछ कमी देखने को मिली है। 2020-2021 में मातृ-मृत्यु की संख्या 66 थी जो कि 2021-22 में घटकर 50 रह गई।
जोखिम से बचाती हैैं जांचें
प्रसव से पहले जांच उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में होने वाले खतरों से बचाती है। किसी भी गर्भावस्था में जहां जटिलताओं की संभावना अधिक होती है। उस गर्भावस्था को हाई रिस्क प्रेगनेंसी या उच्च जोखिम वाली गर्भवस्था में रखा जाता है। इसका पता लगाने के लिए प्रशिक्षित डॉक्टर्स द्वारा प्रसव पूर्व तीन संपूर्ण जांच कराना बहुत जरूरी होता है, जिससे कि समय रहते इसका पता लगाकर इससे होने वाले खतरों से गर्भवती को बचाया जा सके।
संस्थागत प्रसव पर जोर
मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ। बलबीर सिंह ने बताया कि मातृ-मृत्यु दर कम करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से गर्भवती महिलाओं का समय पर रजिस्ट्रेशन किया जाता है। इसके साथ ही उनकी जरूरी जांचे को समय पर किया जाता है। जिन महिलाओं का हीमोग्लोबिन कम होता हैैं, उनको आइरन, फॉलिक जैसी जरूरी दवाइयां दी जाती हैैं। साथ ही उनका खास देखभाल भी की जाती है। इसके लिए विभाग ओर से थर्सडे को कैंप लगाया जाता है। साथ ही सीएमओ का कहना हैैं कि जितना ज्यादा संस्थागत प्रसव होगा, उतनी मातृ-मृत्यु होंगी। साथ ही सरकार की जननी सुरक्षा योजना व अन्य से महिलाओं का लाभ मिल रहा है।
आंकडों पर नजर
2021-22 मेंंं 50 महिलाओं की मृत्यू हुई हैैं। जबकि 2020-21 में यह संख्या 66 थी।
इनमें भी 2021-22 में 28 महिलाओं की मृत्यु स्वास्थ्य इकाई मेंं हुई है, साथ ही नौ की घर में व 13 की रास्ते मेंं मौत हुई है।
2020-21 में स्वास्थ्य इकाई में 34, घर में 16 व रास्ते में 16 महिलाओं की मृत्यु हुई थी।
जांचे हैैं जरूरी
गर्भवती महिलाओं की एचआईवी, वजन, ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबिन, शुगर व अन्य जांच की जाती हैं, ताकि गर्भवती महिलाएं और उनका होने वाला बच्चा स्वस्थ रहें। एनीमिक गर्भवती महिलाओ को उचित मात्रा में फल और हरी सब्जियां खाना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को सही समय पर आयरन, फोलिक एसिड और पौष्टिक खानपान करना चाहिए। सुरक्षित मातृत्व के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जाए। महिलाओं में हीमोग्लोबीन की नियमित निगरानी की जाएं। रक्त की कमी एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं का चिन्हितकरण, उपचार एवं फालोअप किया जाता हैैं। गंभीर एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं का खास ख्याल रखा जा रहा है।
वर्जन
मातृ मृत्यु दर को न्यूनतम करना ही हमारा लक्ष्य हैैं, इसके लिए विभाग की ओर से लगातार प्रयास किया जा रहा है। संस्थागत प्रसव बढऩे से मातृ-मृत्यु दर और कम होगी।
-डॉ। बलबीर सिंह, मुख्य चिकित्साधिकारी