-अपर मिडिल और मिडिल क्लास में वोट के लिए दिखी उदासीनता

-रूरल इलाकों में पिछड़ेपन के बावजूद वोट देने का जज्बा बरकरार

BAREILLY: क्म्वीं लोकसभा चुनाव में वोटिंग पर्सेंटेज का ग्राफ बढ़ाने को इलेक्शन कमीशन की कवायद बरेली में ज्यादा असरदार साबित न हो सकी। 7भ् पर्सेट वोटिंग का टारगेट लेकर शुरू किए गए तमाम अवेयरनेस कैंपेन भी उन उम्मीदों को पंख न दे सकी जो बरेली से लगी थी। सड़क पर स्टूडेंट्स की अपील से लेकर लोक गायिका मालिनी अवस्थी के सुर भी ज्यादातर लोगों को हिचक की लक्ष्मण रेखा लांघकर पोलिंग बूथ तक ले जाने में ठंडी पड़ गई। बरेली ने भले ही लोस इलेक्शन में अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हों, लेकिन अगर असेंबली इलेक्शन से इसकी तुलना करें तो पोलिंग कम ही हुई। वो भी तब जब इस बार इलेक्शन कमीशन ने पोलिंग का ग्राफ बढ़ाने के लिए सारा जोर लगा दिया। बड़े पैमाने पर अवेयरनेस कैंपेनिंग होने के बाद भी उम्मीद से कम पड़े वोट की वजहों पर एक नजर

गुड सेकेंड से भी दूर शहरी

इलेक्शन कमीशन की ओर से जारी फाइनल रिकॉर्ड पर गौर करें तो बरेली सीट के शहरवासी उम्मीदों के पायदान पर गुड सेकेंड पोजीशन पर भी जगह नहीं बना सके। जबकि ग्रामिणों ने बेहतर मा‌र्क्स स्कोर करते हुए फ‌र्स्ट डिविजन हासिल की। इस बार बरेली सिटी में भ्फ्.98 परसेंट तो बरेली कैंट में महज भ्ख्.म्म् परसेंट पोलिंग हुई। वहीं देहात के एरियाज ने पोलिंग के मामले में शहर को कहीं दूर पीछे छोड़ दिया। मीरगंज में म्ब्.9फ् परसेंट, भोजीपुरा में म्8.ब्ख् परसेंट और नवाबगंज में म्7.8ख् परसेंट वोटिंग हुई। आंकड़े गवाह हैं कि शहरवासियों ने बड़े पैमाने पर हुई अवेयरनेस कैंपेनिंग से ज्यादा सीख नहीं ली।

नहीं छुआ विस चुनाव का रिकॉर्ड

लोगों को घर से बाहर निकालने की इलेक्शन कमीशन की सारी कवायद धरी की धरी रह गई। लोकसभा इलेक्शन को पिछले एसेंबली इलेक्शन से तुलना करें तो पोलिंग पर्सेटेज उससे भी कम हुई है। फरवरी ख्0क्ख् में हुई एसेंबली इलेक्शन में बरेली लोकसभा सीट के सभी पांचों विधानसभा में ओवरऑल म्ब्.0म् परसेंट वोटिंग हुई थी। जबकि ओवरऑल बरेली जिले की सभी 9 विधानसभा में म्भ्.79 परसेंट वोटिंग हुई थी। वहीं इस बार के इलेक्शन में पोलिंग म्क्.ख्ख् परसेंट ही हुई है। एसेंबली इलेक्शन में भी देहात के एरियाज में बंपर वोटिंग हुई थी। देहात के सभी विधानसभा में म्0 परसेंट से ज्यादा वोटिंग हुई थी।

कैंडीडेट पर कंफ्यूजन

इलेक्शन में खड़े होने वाले कैंडीडेट्स पर भरोसा न होना कई वोटर्स को पोलिंग बूथ से दूर रखने की वजह बना। काउंसलर साधना मिश्रा उम्मीद से कम वोटिंग परसटेंज के लिए इसे ही कारण मानती है। बतौर साधना मिश्रा शहर का ज्यादा पढ़ा लिखा वोटर्स मानता है कि उम्मीदवार जीतने के बाद काम नहीं करते। सालों से ऐसा ही हाल देखा कि किसी भी उम्मीदवार ने काम नहीं किया। ऐसे में इलेक्शन के समय उन्हें लाइन में लग वोट देना गवारा नहीं। कैंडीडेट्स पर ज्यादा सोच विचार अक्सर कंफ्यूजन क्रिएट करता है। ऐसे में चुनाव में हमें क्या करना, यह सोच उन पर हावी रहती है। जबकि गांव के लोगों में वोट देने और अपने नेता को जिताने का जज्बा दिखता है।

पोलिंग को पिकनिक समझना

चुनाव के समय कुछ लोगों की शहर से बाहर घूमने जाने की फितरत ने भी वोटिंग परसेंटेज पर असर डाला है। उम्मीद थी कि 7ख् परसेंट तक वोटिंग जाएगी, पर म्ख् फीसदी पर ही ठहर गई। यह कहना है मानव सेवा क्लब के महासचिव सुरेन्द्र बीनू सिन्हा का। सुरेन्द्र कहते हैं कि इलेक्शन में मिडिल व अपर मिडिल क्लास का रुझान कम ही रहता है। चुनाव में व्यवस्था पहले के मुकाबले बेहतर थी बावजूद इसके शहर के पॉश इलाके के ज्यादातर लोगों ने इस बार भी वोट डालने की अहमियत नहीं समझी। ऐसे लोग वोटिंग को अपना फर्ज नहीं समझते। पोलिंग डे को पिकनिक मानते हैं। तमाम कोशिशें के बाद भी ऐसी कई फैमिलीज अवेयर नहीं हाेना चाहती।

सालों की उदासीनता वजह

सोशियोलॉजिस्ट डॉ.अनुराधा गोयल का मानना है कि पोलिंग के लिए लोगों में रुझान न बढ़ने की बड़ी वजह सालों की उदासीनता है। डॉ। अनुराधा कहती हैं कि वोटिंग के लिए अवेयरनेस कैंपेनिंग बेहद अच्छी थी, लेकिन लोग सालों से सोए हैं। उन्हें जगाने में कुछ समय लगेगा। वो साफ करती हैं कि लोगों के दिमाग में बस गया है कि नेता कुछ काम नहीं करते, ऐसे में घरों से निकलकर वोट देना उनमें उत्साह नहीं जगाता। अगर इतनी कैंपेनिंग भी न होती तो वोट का ग्राफ गिर जाता। वहीं गांव के लोग ज्यादा सोचते विचारते नहीं। उन्हें लगता है वोट देना फर्ज है, देना है तो देना है।

शहरी वोटर्स में उत्साह कम

उम्मीद के मुताबिक इस बार वोट न होने के पीछे शहरी पब्लिक का अपनी जिम्मेदारी महसूस न कर पाना है। यह मानना है सर्जन डॉ। अजय भारती का। डॉ। भारती इतनी कैंपेनिंग के बावजूद चुनाव में लोगों के ऐसे न्यूट्रल रवैये से खासे हैरान दिखे। वह कहते हैं गांव के लोगों का चुनाव से खासा जुड़ाव रहता है। इसलिए उनकी भागीदारी इस बार भी बेहतर रही। जबकि शहरी जनता का इंट्रेस्ट आज भी कम है, जो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। सारी सुविधाएं होने के बावजूद लोग घर में बैठे रहे। या तो वह इलेक्शन को लेकर न्यूट्रल रहे, या फिर वह अब भी वोट देने को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते।

पॉलिटिक्स से दूर बुद्धिजीवी

हम लोग भी उम्मीद कर रहे थे कि इस बार बरेली में वोटिंग परसेंटेज 70 के पार जरूर जाएगा। निश्चित तौर पर ऐसा होना हम सब के लिए खुशी की बात होती, पर ऐसा हो न सका। बरेली का वोटिंग परसेंटेज उम्मीद से कमजोर होने के बाद यह कहना रहा पॉलिटिकल एनालिस्ट डॉ। वंदना शर्मा का। डॉ वंदना कहती है कि मेरा पर्सनली मानना है कि बुद्धिजीवी या अर्बन क्लास राजनीतिक प्रक्रिया से दूर हैं। उनमें चुनाव के लिए निराशा का माहौल है। अच्छे कैंडीडेट का ऑप्शन न होने पर वह वोट देने घर से बाहर नहीं निकलते। वहीं रूरल वोटर्स ज्यादा जागरूक है। किसी भी वजह से वोट दे पर वह अपना यह हक इस्तेमाल करने में पीछे नहीं रहता।

लोकसभा इलेक्शन ख्0क्ब् बरेली म्क्.ख्ख् परसेंट

एरिया परसेंट टोटल वोट वोट पड़े

बरेली सिटी भ्फ्.98 फ्,88,ख्7ख् ख्,09,भ्9ब्

बरेली कैंट भ्ख्.म्म् फ्,ख्ख्,भ्80 क्,म्9,87क्

मीरगंज म्ब्.9फ् फ्,क्म्,क्म्8 ख्,0भ्,ख्9भ्

भोजीपुरा म्8.ब्ख् फ्,फ्0,8भ्भ् ख्,ख्म्,फ्80

नवाबगंज म्7.8ख् फ्,0भ्,00भ् ख्,0म्,8भ्ख्

आंवला म्क्.8 परसेंट

एरिया वोट परसेंट टोटल वोट वोट पड़े

आंवला म्0.7ख् ख्,8भ्,8भ्म् क्,7फ्,भ्7क्

फरीदपुर म्क्.ब्7 ख्,99,भ्फ्भ् क्,8ब्,क्ख्फ्

बिथरी चैनपुर म्ब्.0ख् फ्,ब्भ्,म्ब्भ् ख्,ख्क्,ख्म्म्

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एसेंबली इलेक्शन ख्0क्ख् पोलिंग पर्सेटेज

विधानसभा परसेंट

बरेली सिटी भ्भ्.09

बरेली कैंट भ्फ्.9ख्

मीरगंज म्7.09

भोजीपुरा 70.ख्ख्

नवाबगंज 7फ्.98

आंवला म्म्.9ब्

फरीदपुर म्भ्.म्फ्

बिथरी चैनपुर म्9.ब्ख्