-राइट टू रिजेक्ट और राइट टू रिकॉल की व्यवस्था
-राजनेताओं के निधियों पर हो सरकारी जवाबदेही
BAREILLY: इलेक्शन शिड्यूल घोषित होते ही चुनावी चर्चो का बाजार गर्म होता जा रहा है। इसके साथ ही चुनावी अखाड़े में उतरने वाले संभावित उम्मीदवारों की चारित्रिक और नैतिक समीक्षा भी रंग पकड़ती जा रही है। गवर्नमेंट ऑफिस हो या फिर प्राइवेट ऑफिस हर रिप्रजेंटेटिव को लेकर बहस छिड़ी हुई है। कुछ इसी तरीके की चर्चा वेडनसडे को बिजली विभाग में देखने को मिली। यहां हर कोई नेताओं की मोरल वैल्यूज से लेकर उनकी कार्यशैली को अपने तरीके से व्यक्त कर रहा था। इलेक्ट्रिक डिपार्टमेंट में कर्मचारियों के बीच महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी की समस्या पर घंटों मंथन हुआ। कर्मचारियों का मानना था कि आजादी के बाद से लोग मात्र बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधा पर ही लीडर को घेरते हैं, लेकिन कई और मुद्दे हैं जो लोगों के बहुत जरूरी है।
सुविधाओं का त्याग हो
कार्यालय के अधीक्षक राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि राजनीति की दशा और दिशा निर्धारित करने में कॉरपोरेट सेक्टर का हस्तक्षेप बढ़ गया है। इसे बड़े-बड़े इंडस्ट्रीयलिस्ट ही चलाते हैं। राजनीति को पूरी तरह से व्यवसाय का रूप दे दिया गया है। राजनेता अब इसे पार्ट टाइम सोशल एक्टिविटीज के तौर पर न देखकर शार्ट टाइम में करोड़ों, अरबों रुपए इकट्ठा करने का माध्यम बना डाला है। उन्हें जनता का विश्वास जीतने और स्थाई नेतृत्व के लिए निजी सुविधाओं का त्याग करना चाहिए।
आरक्षण खत्म हो
राजेंद्र प्रसाद को बीच-बीच में कई बार रोकने का प्रयास कर रहे लिपिक अथरूद्दीन को मौका मिला तो उन्होंने आरक्षण का विरोध करना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि यह आरक्षण एक वर्ग विशेष को जहां विशेष छूट दे रखी है, तो वहीं एक तबका मेहनती और कर्मठ होने के बाद भी खुद को उपेक्षित और असहाय महसूस करता है। देश में राजनेताओं की कार्यशैली और उनके नजरिये में परिवर्तन की जरूरत है। आरक्षण आर्थिक और शिक्षा के आधार पर लागू किया जाना चाहिए।
जनता के पास विकल्प नहीं
अबतक दोनों सहयोगियों की बात पर चुप्पी साधे लिपिक महेंद्र प्रसाद से रहा नहीं गया। उन्होंने कहा कि जनता के पास विकल्प नहीं है। हमारे सामने जो भी उम्मीदवार आते हैं। आज क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों पर से लोगों का विश्वास उठ चुका है। राजनेताओं को जनहित का ध्यान रखते हुए निजी स्वार्थ और सुविधाओं से ऊपर उठकर जन समस्याओं के लिए खुद को समर्पित रखना चाहिए।
महिला सुरक्षा प्रियॉरिटी पर
वीमेन राइट और सेफ्टी को लेकर लिपिक आकांक्षा सक्सेना ने राजनेताओं को घेरना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ कागजों पर रेंगती है। देखा जाए तो महिलाओं का सबसे अधिक उत्पीड़न राजनेताओं के हाथों ही हुआ है। वोट की इच्छा रखने वाले नेताओं को उन समस्याओं दूर करना होगा।
वापस बुलाने का अधिकार
इंप्लाई रविंद्र कहते हैं कि हम आकांक्षा की बातों से सहमत हैं। इसी के साथ लोकसभा चुनाव में लोगों को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार दिया जाना चाहिए। संदिग्ध छवि वाले नेताओं को टिकट नहीं दिया जाए। इस वजह से वोटिंग रेट में गिरावट है। राजनेता इलेक्शन से पहले लोगों के समक्ष खुद की पारदर्शी और स्पष्ट नीति को बताए।
सरकारी निधियों पर हो कंट्रोल
आनंद बब्बर ने कहा कि सरकारी निधियों पर जनता का कंट्रोल हो। ताकि इस पैसे का सद्पयोग देश की गरीब जनता के बीच रोजी-रोटी और उनकी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के दिशा में की जा सके। सबसे अच्छी पहल यह होगी कि इन सुविधाओं का सार्वजनिक रूप से राजनेता ही बहिष्कार करे।
भूखों रोटी का बंदोबस्त
मनोज सिंह ने कहा कि यह अजीब बात है कि सरकार एक तरफ बाल श्रम को अवैध ठहराती है तो दूसरी तरफ उन्हीं गरीब बालकों के परिजनों का भरण-पोषण का बंदोबस्त नहीं कर पाती है। कई ऐसे मामले हैं, जहां अपने पूरे कुनबे का पेट चलाने वाला छोटा सा बालक ही घर में आय का स्रोत है। वह ख्ब् घंटे दुकान, रेस्तरां और होटल, ढाबों पर श्रम बेचकर अपने बूढ़े और शारीरिक अस्वस्थता के शिकार माता-पिता की जीविका चलाता है। देश की जनता उस नेता की बाट जोह रही है जो चुनाव के समय भत्तों और अन्य सुविधाओं का प्रलोभन न देकर उद्योग-धंधों के साथ रोजगार के स्रोत तैयार करे।
अपराध से करें राजनेता तौबा
मनोज सिंह के शब्दों को विराम लगते ही चालक दीवान सिंह कहते हैं कि भइया राजनीति तो अब लूटतंत्र बन गई है। गुंडा, बदमाश और अन्य अपराधिक तत्वों के संरक्षक भी राजनेता ही हैं। पॉलिटिकल साजिश के तहत शिक्षा के स्तर को धराशायी कर दिया गया। ताकि युवाओं को राष्ट्रहित और सामाजिक सरोकारों के लिए सही मार्गदर्शन न मिल सके। अगर ऐसा होता है तो लोकतंत्र में एकबार फिर भूचाल आ जाएगा और जड़ तक समाए सिस्टम की कैंसर को खत्म करने का माहौल तैयार हो जाएगा। राजनेताओं को चाहिए कि सबसे पहले शैक्षणिक सुधार किया जाए। ताकि समाज में एक-एक नागरिक को मूल्यपरक शिक्षा और इसके माध्यम से सामाजिक विकास की नींव मजबूत हो सके।