10 साल से नहीं मिले
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट हर साल गिद्धों की गणना करता है। प्रत्येक वर्ष होने वाली गिद्ध गणना में बरेली से एक भी गिद्ध नहीं मिला। गणना के दौरान बरेली में हर जगह गिद्ध के बच्चे या घोसले भी तलाशे गए लेकिन उनके हाथ हर साल मायूसी ही हाथ लगती रही है।
IVRI कर रहा help
हरियाणा के पिंजौर में चल रहे वल्चर कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर में आईवीआरआई के विशेषज्ञ भी मदद कर रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि गिद्धों की कम होती संख्या को रोका जा सके। पिंजौर में कुछ दिन पहले हुई एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में आईवीआरआई के कई वरिष्ठ साइंटिस्ट्स ने भी शिरकत की थी।
93 परसेंट हो चुके हैं लुप्त
फैयाज खुदसर के अनुसार, इंडिया में मुख्यत: गिद्धों की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। लॉन्ग बिल्ड वल्चर, स्लेंडर बिल्ड वल्चर और व्हाइट रम्पड वल्चर लेकिन लोगों की लापरवाही की वजह से इनकी संख्या अब इतनी गिर गई है कि करीब 93 परसेंट गिद्ध लुप्त हो चुके हैं। फैयाज ने बताया कि गिद्ध जहां मौजूद होते हैं वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को स्वच्छ व स्वस्थ रखने में हमारी मदद करते हैं।
सारस कम हुए
गांवों और जंगलों में सिचुएशन और डेंजरस हो गई है। यूपी में डॉग्स की संख्या बढऩे से राजकीय पक्षी सारस की तादाद भी कम हुई है। सारस जलाशयों के किनारे झाडिय़ों में अंडे देते हैं, जिन्हें डॉग्स आहार बनाते हैं।
डाइक्लोफ्लिनेक का असर
कई रिसर्च के बाद यह बात सामने आई है कि डाइक्लोफ्लिनेक दवा से इनकी तादाद कम हुई है। यह दवा बैन है लेकिन पशुओं के लिए सस्ते पेन किलर के तौर पर चोरी से इसका अब भी यूज हो रहा है। नतीजतन जब पशुओं की मौत हो जाती है तो उनकी बॉडी में डाइक्लोफ्लिनेक के अंश मौजूद रहते हैं। ऐसा मांस गिद्ध की किडनी फेल कर देता है और डिहाइड्रेशन से मौत हो जाती है।
ecosystem में गिद्ध का role
गिद्ध सड़े-गले मांस को खाकर हमें अनगिनत डेंजरस बैक्टीरिया और वायरस से बचाते हैं। इससे एनवायरमेंट क्लीन और इकोसिस्टम बैलेंस रहता है। इनडाइरेक्टली ये हमें रैबीज, मुंह और पैर पकने वाली बीमारियों से बचाते हैं। इकोसिस्टम में अगर ये बर्ड बिल्कुल खत्म हो गए तो ये छोटी-मोटी बीमारियां महामारी का रूप ले सकती हैं।
himalayangriffon
कुछ दिनों पहले इज्जतनगर के गांव रजपुरा माफी में एक हिमालयन ग्रिफन गिद्ध मिला था। आईवीआरआई में इलाज कराने के बाद उसे छोड़ दिया गया। माना जा रहा है कि वह भोजन की तलाश में भटकता हुआ हिमालय से इस ओर आ गया था। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की मानें तो 10 साल पहले नहरकटिया क्षेत्र में सैकड़ों गिद्ध रहा करते थे।
रैबीज के patients बढ़े
दिल्ली के वन्य जीव वैज्ञानिक फैयाज खुदसर बताते हैं कि लोगों ने यह जरूर महसूस किया होगा कि पिछले एक दशक में डॉग्स की संख्या काफी बढ़ी है। इससे रैबीज के पेशेंट्स भी बढ़े हैं। गिद्ध रेयर हो गए तो बचा-खुचा या मरे जानवरों का मांस डॉग्स के लिए अवेलेबल हो गया। इससे उनकी ब्रीडिंग बेतहाशा बढऩे लगी।Report by: Gupteshwar Kumar