बरेली (ब्यूरो)। भागदौड़ भरी जिंदगी में बरेलियंस अब बीते दौर में लौट रहे है। पुरानी परंपराएं फिर से घरों में दिखाई देने लगी है। किसी दौर में यूज होने वाले मिट्टी के बर्तनों ने एक बार फिर लोगों के किचन में अपनी जगह बना ली है। मिलावटी खान-पान और होती आवोहवा से परेशान लोग अब हेल्दी लाइफ स्टाइल तलाश रहें हैं। इसी का नतीजा है कि शहर में 25 परसेंट लोगों के घरों में अब मिट्टी के बर्तन लौट आए है। यह न केवल पंरपराओं को जीवित रखते है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। शहर में जहां प्लास्टिक के बर्तनों का प्रचलन बढ़ गया था वहीं अब मिट्टी के बर्तनों की डिमांड मार्केट में काफी तेजी से आई है। इस प्रकार मिट्टी के बर्तन न केवल हमारे खाने-पीने में बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी बढ़ावा देती है।

घरों में रहे रेडी
शहर में कई जगहों पर घरों में मिट्टी के बर्तन बनाए जा रहे है। इन बर्तनों को बनाने के लिए कुशल कारीगरों की जरूरत होती है जो मिट्टी को गूंथकर उसे आकार देते है। और फिर उसे आग मे तपाते है जिससे की मिट्टी पूरी तरह से पक जाए इसमें कई वैराइटी के बर्तन तैयार किए जाते है। जैसे मिट्टी के घड़े, कटोरे, तवा, कढ़ाई, जग, और वॉटल भी बनाई जाती है। आजकल इन बर्तनों की मांग फिर से बढ़ रही है क्योंकि लोग हेल्थ और पारंपरिक लाइफ स्टाइल को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।

रेस्टो में भी मिट्टी के बर्तन
घरों के साथ-साथ अब रेस्टोरेंट में मिट्टी के बर्तनों का यूज होने लगा है। इससे न केवल परंपराएं वापस आई है बल्कि लोग भी इस कॉनसेप्ट को बहुत पसंद कर रहे हैं। इससे रेस्टोरेंट की भी सेल में इजाफा हुआ है। यह कॉनसेप्ट न केवल खाने की प्रेजेंटेशन को अट्रैक्टिव बनाता है बल्कि हमारे परंपराओं का भी एहसास कराता है। मिट्टी के बर्तन नेचुरल होते है जो खाने में विशेष स्वाद लाते है। इन बर्तनों मे रखा गया खाना अकसर फ्रेशनस और एक अनोखा अनुभव देता है। कई रेस्टोरेंट मिट्टी की हाड़ी, कटोरे, और प्लेट्स का इस्तेमाल करते है। जो हमारे सांस्कृति को दर्शाते है यह न केवल एनवॉरमेंट के प्रति अवेरनेस बढाते है बल्कि कस्टमर्स को एक अनोखा अनुभव भी प्रदान करते है।

ऐसे बदला ट्रेंड
सभ्यता और सांस्कृतिक धरोहर मानी जाने वाली भारतीय मिट्टी की बनावट को और डिजाइन में कई प्रयोग कर कुम्हारों ने इसे एक आधुनिक रूप प्रदान किया है। इसके बाद से एक बार फिर मिट्टी के बने बर्तन ट्रेंड में दिखाई देने लगे है। वॉटर वॉटल से लेकर जग में भी कारीगरी की जा रही है। रोटी बनाने के लिए तवा और सब्जि के लिए कुकर और कढ़ाई तैयार किए जा रहे है।

यह है इसके फायदे
एक्सपर्ट की माने तो मिट्टी के बने बर्तनों में खाना बनाने से खाने में आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम और जिंक जैसे पोषक तत्व मिलते है। इन बर्तनों में धीमी गति से खाना बनाने से खाने में मौजूद पोषक तत्व सुरक्षित रहते है। इन बर्तनों में बने भोजन का टेस्ट अच्छा होता है। मिट्टी के बर्तन मे बनाए गए खाने का सेवन करने से अपच, गैस, कब्ज जैसी कई बीमारीयां दूर रहती है। डायबिटीज वालों को भी काफी अच्छा ऑपशन होता है। और हमारे शरीर में इम्यूनिटी की कमी भी नही होती।

पोषक तत्व भी होते है कम
स्टील और नॉन स्टिक से बने बर्तनों में खाना बनाने से सब्जियों में जो पोषक तत्व शामिल होते है वह खत्म हो जाते है इनमें अधिक समय तक खाना बनाने से यह टूट जाते है और यह फ्री फैटी एसिड में बदल जाते है। इसके सेवन से पेट खराब हाने के चांसस भी रहते है और हैल्थ के लिए भी हार्म फुल होता है। वहीं अगर हम मिट्टी के बने बर्तन में खाना पका रहे है तो उसमें पोषक तत्व और बढ़ जाते इससे बने खाने का सेवन करने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है।

ये है स्थिति
ग्रामोउद्योग अधिकारी अजय पाल बताते हैं कि पहले के मुकाबले मिट्टी के बर्तनों की डिमांड अब तेजी से बढ़ी है। त्योहारों पर इसकी विशेष तौर रप मांग होती है। कुम्हारों में भी अब उत्साह दिखाई दे रहा है। अनुमान के मुताबिक जिले भर में मिट्टी के आइटम की डिमांड बढ़ी है। खासतौर पर गर्मियों में पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी की बोतल को भी और खाने बनाने के लिए कढ़ाई तबा आदि का भी यूज कर रहे हैं।


ये है रेट लिस्ट
जग- 250 रुपए
कढ़ाई- 400 रुपए
कटोरी सेट-600 रुपए
प्लेट 150 रुपए
तवा 200 रुपए
बॉटल- 300 रुपए
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यहां से खरीद सकते हैं
-सतीपुर चौराहा
-जोगी नवादा
-कालीबाड़ी
-नवादा शेखान
-प्रेमनगर
-राजेन्द्र नगर
-इज्जतनगर

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-मिट्टी के बर्तनों की डिमांड अब पहले की अपेक्षा बढ़ी है। अब पहले की अपेक्षा मिट्टी के जो बर्तन आ रहे हैं उनमें फिनिशिंग और डिजायन के साथ आईटम भी अधिक हैं। जिन्हें लोग पसंद भी कर रहे हैं।
प्रकाश प्रजापति

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मिट्टी के बर्तन पहले की अपेक्षा अब काफी आकर्षक और फिनिशिंग के आ रहे हैं। इसके लिए कई जगह इलेक्ट्रिॉनिक मशीनों से भी तैयार किए जा रहे हैं। जो लोगों को पंसद भी आ रहे हैं।
नरेन्द्र प्रजापति
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-माटी कला से जुड़े लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए जिले में चार लोगों को जोडऩे का टार्गेट मिला था। जो पूरा हो गया है। जिनको इस काम से जोड़ा गया है उनको सीएम योजना के तहत सब्सिडी भी मिली है। वह अपना काम भी कर रहे हैं।
अजय पाल, जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी