लड़ रहे parents
बच्चों की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट में डेली मामले आ रहे हैं। इसमें कोई एक क्लास नहीं बल्कि अपर, मिडिल और लो सभी क्लास के केस शामिल हैं। एक मंथ में बच्चों की कस्टडी के लिए 100 से 125 के बीच नए मामले दर्ज हो रहे हैं। पिछले कुछ सालों में इनमें बढ़ोतरी देखी गई है।
बच्चे हो रहे disturb
पेरेंट्स के फैसले की सजा मासूम बच्चों को मिल रही है। बड़ों की नादानी से बच्चों पर मेंटली व फिजिकली बैड इफेक्ट पड़ रहा है। एक्सपर्ट की मानें तो इस तरह के बच्चे में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है। वह लाइफ में किसी के साथ कभी स्ट्रांग रिलेशनशिप नहीं बना पाता। बच्चे के अंदर साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम हो जाती है। वह किसी के साथ एडजस्ट नहीं कर पाता है।
Poor emotional hormone
बच्चों की कस्टडी के लिए लड़ रहे पेरेंट्स की वजह से बच्चों का इमोशनल हार्मोन पुअर हो जाता है। मेडिकल साइंस में इसे सेरोटोनिल कहते हैं। इमोशनल हार्मोन पुअर होने के कारण बच्चे को कई प्रॉब्लम हो सकती हैं। बच्चा सदमे में होने के साथ ही शांत हो जाता है, सोसायटी से कटा हुआ महसूस करता है और सबको नफरत की निगाह से देखने लगता है।
Girls & boys पर अलग असर
हेल्थ कंसल्टेंट की मानें तो पेरेंट्स के बीच डायवोर्स का गर्ल और ब्वॉय चाइल्ड पर डिफरेंट फर्क पड़ता है। पेरेंट्स में से किसी एक का प्यार मिलने पर ब्वॉय चाइल्ड अधिक वॉयलेंट हो जाता है। उसका माइंड हर पल किसी न किसी खुराफात के लिए मोटिवेट होगा। अनडिसिप्लिंड होने के चांसेज सबसे अधिक होते हैं। जबकि गर्ल चाइल्ड डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। इनमें एज बढऩे के साथ सेक्सुअल डिजायर पर फर्क पड़ता है। अगर उनके साथ कोई सिंपैथी जताता है तो वह उसकी तरफ अट्रैक्ट हो जाती हैं। गल्र्स सही गलत का डिसीजन नहीं ले पाती हैं।
Joint Family के फायदे
घर की सिक्योरिटी की टेंशन नहीं।
रिश्तेदारी में शादी व अन्य प्रोग्राम में जाने के लिए सोचना नहीं।
किसी भी तरह की जरूरत पर फैमिली का कोई न कोई मेंबर सॉल्यूशन का लिंक जरूर निकाल लेता है।
शॉपिंग व अन्य कामकाज कब हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।
मोहल्ले में एक मैसेज जाता है कि आप सब साथ हैं। ऐसे में कोई बदतमीजी की जुर्रत नहीं करता।
घर के रूटीन के खर्चे में बहुत बड़ी बचत होती है।
हर इश्यू पर आसानी से सीनियर्स की गाइडेंस मिल जाती है।
हाउस, वाटर टैक्स व अन्य बिल कब जमा हो गए पता नहीं चलता।
बच्चों की केयर के लिए क्रेच की जरूरत नहीं पड़ती है। ट्यूशन भी फैमिली मेंबर्स ही पढ़ा देते हैं।
Nuclear Family बिगाड़ रही social system
पैरेंट्स काम में बिजी हैं तो बच्चा घर में कैद रहेगा, बाहर इनसिक्योरिटी का माहौल है। इन प्राब्लम्स को फेस करती है न्यूक्लियर फैमिली, जिसका कांसेप्ट अब तेजी से हर घर में अपनी पैठ बना रहा है। दूसरी तरफ है ज्वाइंट फैमिली जहां इस तरह की प्राब्लम्स का साल्यूशन किसने दे दिया, कई बार पता भी नहीं चलता। वैसे दोनों लाइफ जीने वालों के पास इसे बेहतर साबित करने के लिए अपने-अपने तर्क हैं। लेकिन, सोशियोलॉजिस्ट का मानना है कि न्यूक्लियर फैमिली कांसेप्ट सोशल सिस्टम को बेहद नुकसान पहुंचा रहा है।
एक दिन का सुकून नहीं
न्यूक्लियर फैमिली है तो एक रात के लिए घर लॉक करके जाना दुश्वार हो जाता है। कहीं जाने पर घर की टेंशन बनी रहती है। दिन में वाइफ घर में अकेले है। उसकी सिक्योरिटी की चिंता तो बच्चा स्कूल से सही सलामत घर पहुंचा या नहीं, कभी इसकी चिंता। ऑफिस में लेट हो रहे हैं तो घर का सामान कैसे आएगा, कभी इसकी चिंता तो कोई एक मेंबर बीमार पड़ गया तो हो गया पूरा सिस्टम ध्वस्त। जॉब के चलते फैमिली के साथ स्पेंड करने के लिए टाइम नहीं है और घर में कैद रहने वालों के लिए खतरे से खाली नहीं है।
Joint family में हैं कई solution
सोशियोलाजिस्ट कहते हैं कि, आजकल बच्चों से पूछा जाए कि फैमिली क्या है? तो वह मम्मी-पापा, भाई-बहन से आगे नहीं बढ़ पाते। कुछ दादा-दादी और नाना-नानी के बारे में बता देते हैं। चाचा, ताऊ, बुआ, चचेरे भाई जैसे रिश्तों के बारे में बताना मुश्किल होता है। दादा के सिर्फ एक पीढ़ी ऊपर के सदस्य का नाम नहीं बता सकते। न्यूक्लियर फैमिली में पल-बढ़ रहे इन बच्चों के मन में फैमिली को लेकर फीलिंग कभी आ ही नहीं पाती। वह कहती हैं कि टू बीएचके, थ्री बीएचके फ्लैट में रहने वाले ज्वाइंट फैमिली की फीलिंग को समझ ही नहीं पाते। यही रीजन है कि रिश्तों की तासीर में कमी आ रही है।Report By : Prashant Singh