नगर निगम ने की लापरवाही की हद, नाला सफाई के लिए अब तक टेंडर ही पास नही

मानसून आने को, ऐसे में अब महज खानापूर्ति करने की तैयारी

सफाई का सच

132 नाले हैं शहर में छोटे-बडे जोड़कर

90 फीसदी नालों से नहीं निकली गई है सिल्ट

80 फीसदी सफाई की झूठी रिपोर्ट कमिश्नर को सौंपी

40 लाख का बजट लेकिन टेंडर ही नहीं खुल सके्र

BAREILLY: शहर एक बार फिर नगर निगम की लापरवाही की सजा भुगतने की कगार पर है। मानसून के दौरान शहर को 'समंदर' बनने से बचाने की कवायद निगम की सरकारी फाइलों में भले ही ए ग्रेड परफॉर्मेस दिखा रही हो। लेकिन हकीकत में गंदे, चोक नाले वाटर लॉगिंग की वजह बन फिर शहर को निगलने की फिराक में हैं। मानसून आने को है लेकिन शहर के नाले अपनी तकदीर बदलने की राह ताक रहे हैं। झूठे आंकड़ों और रिपोर्ट की खोखली बुनियाद पर जिम्मेदार अपने अफसरान को खुश कर अगले कुछ हफ्तों में बड़े हादसों की नींव रख चुके हैं। जबकि निगम में नगर आयुक्त और मेयर के दरबार में जनता और उनकी नुमाइंदगी करने वाले पार्षदों की चोक सीवर-नाले की समस्याओं का अंबार लग रहा है।

गंदी सिल्ट पर सफेद झूठ

नगर निगम की सीमा में छोटे बड़े कुल क्फ्ख् नाले हैं। निगम के स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन्हें साफ कराने के समय रहते आदेश भी जारी करा दिए गए। लेकिन नालों की सफाई के नाम पर खानापूर्ति की गई। जानकारों ने बताया कि विभाग की ओर से कुल क्फ्ख् नालों में से 90 फीसदी में से सिल्ट निकालने का काम ही नहीं किया गया। विभाग के जिम्मेदारों की कारगुजारी इसी से पता चलती है कि उनके पास रोजाना नालों से निकलने वाली सिल्ट और इस पूरी कवायद में खर्च होने वाले डीजल का आंकड़ों का जवाब ही मौजूद नहीं। बावजूद इसके विभाग की ओर से कमिश्नर को दी गई अपनी रिपोर्ट में 80 फीसदी नालों की सफाई कराने की रिपोर्ट दी गई है। आलम यह कि निगम के सामने का चोक नाला ही जिम्मेदारों के काम की कहानी बयां कर रहा है।

मानसून सिर पर अब खुल रही नींद

गंदे चोक नालों और सीवर को साफ कराने के मकसद से निगम की ओर से तैयार ब्0 लाख रुपए का बजट चोक हो गया है। मेयर ने मानसून की दस्तक से पहले ही शहर के नालों को दुरुस्त कराने के मकसद से डेढ़ महीने पहले ब्0 लाख रुपए के बजट को मंजूरी दी थी। पिछली बार मानसून में आधे से ज्यादा शहर के डूबने से निगम की बेहद किरकिरी हुई। ऐसे में पिछले बार के मुकाबले नालों की सफाई को लेकर दोगुना बजट पास किया गया। लेकिन जून के तीसरे हफ्ते में भी इसके लिए टेंडर नहीं खोले जा सके। मानसून सिर पर है ऐसे में कब टेंडर खुलेंगे, कब सफाई अभियान शुरू होगा इससे अधिकारियों की चुस्ती मालूम होती है।

इनकी लड़ाई में 'हार गया शहर'

निगम में पिछले काफी समय से चली आ रही दो पूर्व नगर आयुक्त बनाम मेयर की आपसी तनातनी भी नालों की सफाई में बड़ा रोड़ा साबित हुई। मेयर की ओर से पहले ही निर्देश दिए जाने के बावजूद पूर्व नगर आयुक्त की कमान में नालों की सफाई कागजों पर ही पूरी की जा रही थी। वहीं नगर स्वास्थ्य विभाग में नगर स्वास्थ्य अधिकारी बनाम एनवॉयरमेंट इंजीनियर की टेंशन ने भी सफाई मुहिम और गंदे नालों के बीच दूरी बरकरार रखी। निगम में वर्चस्व की यह जंग शहर की जनता पर भारी पड़ी थी। जिसका अंजाम एक बार और जनता को दिखने वाला है।

इन एरिया पर खतरा

बीसीबी से सिविल लाइंस, मिशन हॉस्पिटल होते हुए सुभाषनगर जाने वाला नाला शहर का सबसे बड़ा नाला है। जिस पर जबरदस्त एनक्रोचमेंट है। इसे साफ नहीं कराया जा सका है। बड़ी बिहारी नाला, सतीपुर से हारुनगला का नाला, सुभाषनगर का मुस्तफानगर नाला, शुगर फैक्ट्री नाला, चौपुला से राजीव कॉलोनी का नाला और विश्वमानव प्रेस के पीछे का नाला बुरी तरह चोक हैं। वहीं शहर के संजयनगर, सुभाषनगर, शांति विहार, गणेशनगर, मणिनाथ, जोगीनवादा, बड़ी बिहार, श्रीराम विहार, मॉडल टाउन, बिहारीपुर, प्रेमनगर और एकतानगर एरिया में गंदे नाले की समस्या है। यह एरिया मानसून के दौरान वॉटर लॉगिंग से बुरी तरह डूब जाते हैं।

मैं नालों की सफाई से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूं। हमने ऑउटसोर्स कर 700 सफाई कर्मचारी जुटाए हैं। हर वार्ड में क्0-क्0 कर्मचारी नाला सफाई के लिए लगाए जाएंगे। अगर पिछली बार की तरह इस बार भी शहर में दिक्कत हुई तो जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी।

- डॉ। आईएस तोमर मेयर

शहर में नालों की सफाई को लेकर काम हुआ है। लेकिन नालों की सिल्ट निकालने का काम इस बार बिल्कुल नहीं हुआ। टेंडर प्रोसेस पहले ही पूरी कराकर ऑउटसोर्स से मैनपॉवर जुटाकर काम शुरू हो जाना चाहिए था। फिलहाल टेंडर जल्दी ही पूरे कराकर सख्ती से सफाई अभियान का काम पूरा होगा।

- शीलधर यादव, नगर आयुक्त