बरेली (ब्यूरो)। पुराने दिनों के खेल के बारे में आज के बच्चे नहीं जानते। हम-आपने उन्हेंं न तो इनके बारे में बताया और न ही खेलने के लिए कभी प्रेरित किया। स्टॉपू, छुई-छुआन, कोड़ा जमाल छू, आई स्पाई यह वो खेल थे जिनसे फिजिकल एक्सरसाइज होती थी। इन्हें खेलते हुए बच्चों में टीम वर्क और हेल्दी कंपटीशन की भावना पैदा होती थी। वो यह सब स्वत: सीख लिया करते थे। घर से बाहर न निकलने से उनमें विटामिन डी की भी कमी हो रही है।

गुम हो रही सामूहिक खिलखिलाहट
याद कीजिए आपने ढेर सारे बच्चों की सामूहिक खिलखिलाहट कब सुनी थी। बच्चों के लिए यह सामूहिक उल्लास जरूरी है। यह सब आउटडोर गेम में ही मुमकिन है। कई खेल ऐसे थे जिन्हें खेल कर लोगों के चेहरों पर खिल-खिलाहट दिखती थी। आज वो गुम हो गई हैै। आज के बच्चों को घर से बाहर जाना और वो पुराने खेल खेलना पसंद ही नहीं हैं। इसका सबसे ज्यादा असर उनकी डेली लाइफ पर पड़ता है। वे ज्यादा बीमार पड़ते हैैं। वीक और चिडचिडे होते जा रहे हैैं। बच्चों ने अपने आस-पास की दुनिया को रिस्ट्रिक्ट कर लिया है।

कौन-कौन से थे ऐसे खेल
स्टापू
स्टापू ऐसा खेल है जिसे हर किसी ने खेला होगा। बच्चे तो बच्चे बड़ों मेें भी इसको बहुत क्रेज होता था। रोम से जन्मा यह खेल उतना ही भारतीय है और सदियों पुराना है। भारत में इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कहीं इसे किथकिथ कहते हैैं तो कहीं सकड़ी या फिर लंगड़ी। बंगाल में इसे एकाहाट-दुहाट या एक्का-दुक्का कहा जाता है। महाराष्ट्र में बच्चे इसे लंगड़ी-पानी के नाम से जानते थे। कर्नाटक में कुंटे-बिले, तमिलनाडु में पांडी और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तोकुद्दू के नाम से जाना जाता है। खेल तो एक ही हैै बस पहले इसे खेलने वाले थे पर अब नहीं खेलते हैैं।

बर्फ-पानी
शायद ही कोई ऐसा हो जिसने यह खेल न खेला हो। पढ़ाई से टाइम निकाल कर बच्चे इसे खेल ही लेते थे। इंग्लिश में उसका नया नाम है आइज एंड वॉटर। बरफ-पानी के खेल में कई बच्चे इक_ा होते हैं और उनमें से कोई एक, दूसरों को पकडऩे के लिए भागता है। इसमें एक चोर होता था, जो सभी को बर्फ बनाता था। वहीं दूसरे लोग बर्फ बने बच्चों को पानी बनाते थे।

कोड़ा जमाल छू
इस खेल के कई नाम हैैं। कोड़ा जामाल छू, कोड़ा जमाल खाई, पीछे देखी मार खाई वगैरा। इस खेल में लोग एक गोला बनाकर बैठते थे। इसमें एक चोर होता था, जो दोपट्टïे से बना एक कपड़ा गोले में बैठे किसी भी मेंबर के पास छोड देता था। गोलाई में बैठा मेंबर पीछे मुडकर नहीं देख सकता था। देखने पर उसे कोड़े पड़ते थे। कोड़ा पीछे गिरा देने पर भी नहीं देखा तो भी मार पड़ती थी। यह तकरीबन पूरे भारत में खेला जाने वाला एक आम खेल रहा है।

इन खेलों के थे फायदे अनेक
पहले बच्चे जब बाहर खेलने जाते थे तो ज्यादा फिट होते थे। अब उनका नेचुरल रुटीन ही बदल गया है। आउटडोर गेम खेलने के फायदे सभी उम्र के बच्चों के लिए हैं। आउटडोर एक्टिविटी लोगों को फिट और तंदरुस्त बनाने में मदद करती है।

शारीरिक विकास में मददगार
आउटडोर गेम्स से बच्चे एक्टिव रहते हैं। इससे उनकी शारीरिक क्षमता का विकास होता है। आउटडोर गेम्स खेलने से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत होती हैं। इसके अलावा इम्युनिटी मजबूत होती है और डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम और मोटापे जैसी कई बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। ताजी हवा और धूप में रहने से बच्चों को नेचुरल रूप से विटामिन डी भी मिलता है।

क्रिएटिविटी को करता है इंक्रीज
आउटडोर गेम्स खेलने से बच्चे ज्यादा क्रिएटिव बनते हैं और इससे उनकी इमेजिनेशन स्किल्स बढ़ती है। पेड़ और पौधों के बीच खुले में रहने से बच्चों की इमेजिनेशन पॉवर बढ़ती है, जो उनकी क्रिएटिव को बढ़ाता है।

सोशल स्किल को करता है इन्हांस
सोशल मीट या बाहर खेलने से लोगों की सोशल स्किल इंहानस होती है। जो बच्चे बाहर समय बिताते हैं और एक-दूसरे के साथ गेम्स खेलते हैं, वो घर के अंदर रहने वाले बच्चों के मुकालबे ज्यादा अच्छी तरह से लोगों से बातचीत करते हैं। इससे बच्चों का सोशल और कम्युनिकेशन स्किल बेहतर होने लगता है। यह स्किल आगे चलकर बच्चे की मदद करता है।

पॉजिटिव एटीट्यूड बनाए रखने में मदद
जो बच्चे बाहर खेलते हैं, उनमें अपने आप ही पॉजिटिव एटीट्यूड विकसित होने लगता है। वो शांत और खुश रहते हैं। आउटडोर प्ले से उनकी एनर्जी का सही तरह से उपयोग होता है।

पर्सनालिटी डेवलपमेंट
आउटडोर गेम्स खेलने से बच्चे की पर्सनालिटी पर बहुत असर पढ़ता है। बच्चे जब बाहर लोगों से मिलते हैं, बाते करते हंै तो इससे उनका इनर डेवलेपमेंट होता है। इसके अलावा आउटडोर गेम्स से उनमें अनुशासन, खिलाड़ी के समान निपुणता और लीडरशिप स्किल भी आती है।

हेल्दी लाइफस्टाइल को बढ़ावा
बच्चे आउटडोर गेम्स खेलते हैैं तो उनकी लाइफस्टाइल ज्यादा हेल्दी होती है। उनमें डिसीजन लेने की बेहतर पावर आती है। वो खुद को चुनौती देना सीखते हैं और हर चीज में अपना बेहतर देने की कोशिश करते हैं।

मोबाइल से रखें दूर
आउटडोर गेम बंद होने से जनरेशन पर बहुत ही गलत असर पड़ रहा है। वे बाहर खेलते-कुदते थे तो उनकी हड्डी मजबूत होती थी, बाहर खेल खेलने से उनके अंदर के टॉक्सिन बाहर निकलते थे, जो कि अब नहीं हो पा रहा है। आज भी गांवों में पल रहे बच्चे शहर के बच्चों से ज्यादा हेल्दी और फिट होते हैं। पैरेंट्स को उन्हें बाहर भेजना चाहिए और मोबाइल से दूर रखना चाहिए।
-डॉ। जितेंद्र मौर्या, फिजियोथेरेपिस्ट

बाहर न खेलने की वजह से बच्चे ज्यादा थका और एग्जाइल फील करते हैैं। उनका इंम्यून स्सिटम वीक हो जाता है। इसका साइकोलॉजिकल असर भी उन पर पड़ता है। वे बाहर रहकर टीम वर्क सीखते हैं। कोंफिडेंस डेवलप होता है। घर में रहकर बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैैं। उनमें बर्दाशत करने की क्षमता कम होती जा रही है।
खुशअदा, साइकोलॉजिस्ट

बच्चे बाहर निकलना कम पसंद कर रहे हंै। जब से मोबाइल आ गया है। लोग मोबाइल कांशियस ज्यादा हो गए हैं।
गीता श्रीवास्तव

हमारे टाइम जैसा अब माहौल नहीं रहा। अब बच्चे सारा दिन मोबाइल में ही लगे रहते है। बाहर जाना कम पसंद होता है।
आंचल सक्सेना

बाहर जाकर खेलने वाले खेल तो बच्चों के जहन से उतर ही गए हैं। उनका खुद ही मन नहीं होता कि बाहर जाएं।
रोली सक्सेना