यह भी जानें
16 सीएचसी हैं जिले में
03 हजार एआरवी इंजेक्शन एक माह में भेजे जाते है सीएचसी पर
30 केसेस डेली और बंदरों के काटने के
18 सौ एआरवी एक माह में जिला अस्पताल में ही लोगों को लग जाती हैं

बरेली(ब्यूरो)। दुनका में 16 जुलाई को बंदरों के हमले से हुई चार माह की नवजात की मौत के बाद अब बंदरों को पकडऩे की मांग लोगों ने उठाई है। दुनका ही नहीं शहर के लोग भी बंदरों के आतंक से परेशान हो चुके हैं। बंदरों के आतंक को जानने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। जिला अस्पताल के एआरवी सेंटर पर आने वाले केसेस का आंकड़ा देखने के साथ सीएचसी पर आने वाले बंदर और कुत्तों द्वारा काटने के आंकड़ों को देख लेंगे तो हैरान हो जाएंगे। जिले में डेली करीब 30 लोग एंटी रैबीज लगवाने के लिए आ रहे हैं।

सीएचसी पर भेजी जाती एआरवी
इस बारे में एसीएमओ डॉ। हरपाल ङ्क्षसह बताते हैं कि जिले की 16 सीएचसी पर रोजाना 70-70 एआरवी इंजेक्शन भेजे जाते हैं, जो मरीजों को लगाए जाते हैं। महीने में करीब 3000 एआरवी सीएचसी पर भेजे जाते हैं। वहीं अकेले जिला अस्पताल में ही करीब 1800 एआरवी महीने में लगा दिए जाते हैं। इस बारे में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बंदरों के काटने के बाद एआरवी लगाई जाती हैं।

इन एरिया में अधिक प्रॉब्लम
बिहारीपुर, खन्नू मुहल्ला, सिटी, आलमगिरीगंज, साहूकारा, कालीबाड़ी, भुड़, जाटवपुरा, रामपुर गार्डन, पवन विहार व शाहबाद वार्ड समेत कई अन्य कॉलोनी व मोहल्ले बंदरों के उत्पात की वजह से पिजरों में कैद हो चुके हैं। कहने का तात्पर्य है कि लोगों ने छतों पर जाल व कटीले तार लगाकर घर को सुरक्षित करने को मजबूर हो गए हैं। लोग बच्चों को घरों से बाहर निकलने देने से कतराते हैं।

हो चुकी है एफआईआर
नगर निगम ने करीब दो साल पहले शहर से एक हजार बंदर पकडऩे की अनुमति वन विभाग ने मांगी थी। पांच-पांच सौ करके दो बार में बंदरों को पकडऩे की अनुमति मिली। इसके बाद नगर निगम ने टेंडर किए। बदायूं की एक एजेंसी को बंदर पकडऩे का काम किया। बंदरों को पकडऩा शुरू किया तो सांसद मेनका गांधी की संस्था पीपुल फार एनीमल (पीएफए) के पदाधिकारियों ने विरोध कर दिया। उन्होंने एजेंसी संचालकों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी। इस पर एजेंसी बीच में ही काम छोडक़र चली गई।

इतनी शर्तों को पूरी करने पर ही पकड़ सकेंगे बंदर
एक-दो की संख्या में नहीं पूरे समूह को पकड़ेंगे
भोजन-पानी की समुचित व्यवस्था
पर्याप्त साइज के ङ्क्षपजरे होने चाहिए
वन विभाग का प्रतिनिधि, वन्य जीव के क्षेत्र में कार्य करने वाले प्रतिष्ठित संस्था का सदस्य का उपलब्ध होना जरूरी
बंदरों को पकडऩे के बाद उनका स्वास्थ्य परीक्षण कर रिपोर्ट शासन को भेजेंगे
बंदरों को पकडऩे के बाद किस जंगल में छोडऩा है, इसकी भी जानकारी देनी होगी

कैसे पकड़ेंं बंदर
बंदरों को पकडऩे के नियम इतने पेचीदा हैं कि उनको पकडऩे के लिए अनुमति मिलने में खासा वक्त लग जाता है। नगर निगम या नगर निकाय की ओर से बंदरों को पकडऩे के लिए अनुमति ली जाती है तो उससे पहले बंदरों को पकडऩे के बाद कहां पर छोड़ा जाएगा, इसका जिक्र किया जाएगा। जिस जंगल में बंदरों को छोड़ा जाएगा तो वहां की स्थिति से भी अवगत कराते हुए आवेदन वन विभाग को किया जाएगा। जिले से उस आवेदन को चीफ वाइल्ड वार्डन लखनऊ को भेजा जाता है, वहां से अनुमति मिलने के बाद बंदरों को पकड़ा जाता है। इसमें बंदरों को प्रताडि़त ना किया जाए, इसका ध्यान भी रखा जाए।

छोड़ दिया छत पर जाना
69 शाहबाद निवासी जावेद खान ने बताया कि 28 मार्च 2019 के दिन उनके बड़े भाई जियाऊर रहमान छत पर सुबह सात बजे पक्षियों को दाना डाल रहे थे। तभी 40-45 की संख्या में बदरों के समूह ने उन पर हमला कर दिया, जिससे वह दूसरे मंजिल से नीचे गिर गए। अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सकों ने उन्हे मृत घोषित कर दिया। जावेद ने बताया कि भाई के साथ हुई घटना के बाद से दूसरी मंजिल पर जाना छोड़ दिया। जियाऊर रहमान नगर निगम में टैक्स विभाग में क्लर्क थे।

्रपत्र लिखकर चला रहे काम
नगर निगम क्षेत्र में बंदरों का लगातार आतंक बढ़ता जा रहा है। जबकि नगर निगम के मेयर डॉ। उमेश गौतम पत्र लिखने तक ही अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं। महापौर ने बताया कि पूर्व में वन एवं पर्यावरण मंत्री को दस हजार बंदरों को पकडऩे के लिए पत्र लिखा था। अब बढ़ते घटना को देखते हुए 30 हजार से अधिक बंदरों को पकडऩे के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्री के साथ शासन को पत्र लिखा जाएगा।

बंदर में नहीं होता कोई अंतर
लोगों में आम धारणा होती है कि जंगली और आवासीय क्षेत्रों में रहने वाले बंदर अलग-अलग होते हैं लेकिन यह सच नहीं है। इस बारे में डीएफओ समीर कुमार कहते हैं कि जो बंदर शहरी क्षेत्रों में होते हैं, उन्हें अगर जंगल में छोड़ देंगे तो उनमें कोई अंतर नहीं हो जाता है। केवल लंगूर अलग होते हैं।
=============


डरने पर बॉडी लैंग्वेज समझ लेते हैं बंदर
कुत्ता या फिर बंदर को देखकर एकदम से डरना नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आप बंदर या फिर कुत्ता से डर रहे जो तो यह फिर वह आप पर हमला करने के लिए प्रेरित हो जाते है। बंदरों को देखकर जबच्बच्चे या वयस्क डर जाता है तो उसके शरीर से हार्मोन बदलने लगते हैं। हार्मोन में होने वाले परिवर्तन को बंदर सूंघ लेते हैं, जिससे उन्हें पता चल जाता है कि सामने वाला व्यक्ति डर गया है और वे हमला कर देते हैं.यह कहना है भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ। अभिजीत पावड़े का। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। पावड़े बताते हैं कि बंदर लोगों के डरने पर उनकी बाडी लैंग्वेज में होने वाले परिर्वतन भी समझ लेते हैं। इसके बाद वह तुरंत ही हमला कर देते हैं।

मांस भी खा लेते हैं बंदर
एक्सपर्ट की माने तो बंदर शाकाहरी भी नहीं होते हैं। बंदर चिकन, मटन आदि के पकौड़े, उबले अंडे, आमलेट या बिरयानी भी खा लेते हैं। उन्होंने बताया कि बंदरों को उबले अंडे बिक्री करने वाले, मछली और मीट की पकौड़ी की दुकानों के बाहर बंदर अक्सर उन्हें खाते रहते हैं।

बढ़ते तापमान में आक्रामक हो रहे बंदर
पर्यावरण में हुए परिवर्तन की वजह से बंदर आक्रामक हो गए हैं। बढ़ते तापमान की वजह से बंदरों के अंदर आक्रामकता बढ़ गई है। डॉ। अभिजीत पावड़े का कहना है कि बंदर 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान ही झेल सकते हैं। लेकिन तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक जा रहा है। तापमान बढऩे पर बंदर खुद को घने पेड़ों की छांव में छिपा लेते थे लेकिन जंगल और पेड़ कटने की वजह से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया है, जिससे गर्मी बढऩे पर बंदर आक्रामक हो गए हैं और उन्हें छांव भरे स्थानों से हटाने पर भी आक्रामक हो जाते हैं।


- वर्जन
नगर निगम की ओर से बंदरों की पकडऩे के लिए आवेदन किया गया था, उसे लखनऊ में चीफ वाइल्ड वार्डन को भेज दिया गया था लेकिन बंदर पकडऩे के नियमों से भी नगर निगम को अवगत करा दिया गया था। इसके बाद उन्होंने बंदरों को पकडऩे की सूचना नहीं दी है।
- समीर कुमार, डीएफओ, बरेली