बरेली (ब्यूरो)। जेनरिक दवाएं ब्रांडेड मेडिसिन से कम कीमत पर अवलेबल हैं। इसके बावजूद डॉक्टर्स उसे नहीं लिख रहे हैं। सीएमओ डॉ। बलवीर सिंह ने साफ तौर से कहा है कि सरकारी अस्पतालों के साथ ही प्राइवेट डॉक्टर को मेडिसिन के नाम की जगह कंपाउंड यानी उस दवा में शामिल साल्ट का नाम लिखना चाहिए। फिर भी इसका पालन नहीं किया जा रहा है। सॉल्ट लिखने के बारे में आईएमए के अध्यक्ष डॉ। विनोद पागरानी से बात की गई। उन्होंने ब्रांडेड दवाओं के बारे में बात तो की, लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि सिटी के डॉक्टर दवा के ब्रांड की जगह कंपाउंड का नाम क्यों नहीं लिखते हैं तो वह कन्नी काट गए। हालांकि इन हालातों के बावजूद शहर के कुछ डॉक्टर्स हैं, जो मरीजों को जेनेरिक दवाएं प्रिस्क्राइब करते हैं।

पहला अधिकार पेशेंट का
लोगों का कहना है कि तमाम सिटीजंस महंगी दवाओं की वजह से ठीक से इलाज नहीं करा पाते हैं। डॉक्टरों को धरती का भगवान माना जाता है। ऐसे में उन्हें मरीजों को जेनरिक दवाएं लिखकर उनकी मदद करनी चाहिए। लोगों का जीवन बचाना और उन्हें स्वस्थ रखना डॉक्टरों की जिम्मेदारी है। उन्हें इससे मुंह नहीं मोडऩा चाहिए। पीएचडी स्कॉलर अतुल कहते हैैं कि दवा खरीदने के लिए पेशेंट या उसका परिवार पैसे खर्च करते हैं। दवा खरीदने का फैसला भी पेशेंट को ही करने का हक होना चाहिए न कि डॉक्टर्स को।

लिखते हैं जेनरिक दवाएं
सिटी के कुछ डॉक्टर्स ऐसे भी हैैं जो मरीजों की समस्या को अच्छी तरह से समझते हंैैं। वे जेेनेरिक दवा लेने का मरीजों को सजेशन भी देते हैैं। इससे मरीज की जेब पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता है। ऑर्थो सर्जन डॉ। राजकमल श्रीवास्तव जेनेरिक दवा भी लिखते हैैं। मरीज पर कोई प्रेशर नहीं रहता है। वह जहां से दवा लेना चाहता है, वहां से ले सकता है। डॉ। शक्ति कंसल भी मरीजों को जेनरिक दवा का आप्शन देते हैैं।

इनकी भी सुनें
आईएमए की गाइडलाइन है कि डॉक्टर्स जेनेरिक नाम लिखेंगे। डॉक्टर्स को जेनेरिक दवा लिखनी चाहिए। पेशेंट फ्री होना चाहिए कि वह कोई दवा कहीं से भी ले सके।
संदीप कुमार, असिस्टेंट कमिश्नर, ड्रग लाइसेंस अथारिटी

सरकारी और प्राइवेट डॉक्टर्स को दवा का कंपाउंड लिखना चाहिए। साथ ही अगर दो सॉल्ट हैैं तो दोनों के कंपाउंड स्पष्ट लिखना चाहिए। ताकि इससे मरीजों किसी तरह की समस्या न हो।
डॉ। बलवीर सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी