(बरेली ब्यूरो)। होली को लेकर बाजार इन दिनों चिप्स-पापड़ और कचरी आदि उत्पादों से अटे पड़े हैं, लेकिन ये मनमोहक उत्पाद बीमारियों के सौदा से कम नहीं है। अखाद्य रंगों के जरिए इन्हें रंगीन बनाया जाता है। ऐसे रंगों का प्रयोग मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अखाद्य रंग में रंगी कचरी खाने से कई तरह की बीमारियां भी हो सकती हैं।

शहर के बाजारों में चिप्स, पापड़ की दुकानें सजी हुईं हैं। हरे, लाल आदि रंगों में रंगी कचरी भी खूब दिखाई दे रही है। चिकित्सकों का मानना है कि ब्रांडेड कंपनियां अखाद्य रंगों का इस्तेमाल नहीं करतीं, जबकि घरों में कचरी तैयार की जाती है तो बेमानक रंग मिला दिए जाते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। दरअसल अखाद्य रंग कपड़ों की रंगाई जैसे अन्य कार्य के लिए होते हैं, लेकिन कोई बंदिश न होने कारण इनका उपयोग खाद्य पदार्थों में भी किया जा रहा है। कारोबारी इनका उपयोग इसलिए करते हैं, क्योंकि इनकी कीमत खाद्य रंगों से कम होती है। ऐसे में वे सस्ते से सस्ता रंग तलाशते हैं, चाहे वह मानव स्वास्थ्य के लिए कितना भी खतरनाक क्यों न हो।

-नुकसानदायक फिर भी अधिक कीमत
बाजार में आ रहे रंगीन कचरी, चिप्स, गोलगप्पे, पापड़ आदि की मांग ज्यादा है। खास बात यह है कि चमकदार और रंगीन चिप्स, पापड़ नुकसानदायक अधिक होने पर भी अधिक महंगा है। वैसे भी इस बार होली से पहले चिप्स, पापड़, कचरी की कीमतें बढ़ीं हुईं हैं।
दुकानदार ने बताया कि पिछली बार फूलबरी का छोटा पैकेट 40 रुपये का था, जिस पर 10 रुपये बढ़ गए। आलू पापड़ का पैकेट पिछली बार 180 रुपये से लेकर 200 रुपये तक मिला जो अब 220 रुपये में मिल रहा है। कचरी का कोई भी पैकेट 40 रुपये से कम नहीं है।

खुद कारोबारी भी मानते हैं इसे सेहत का दुश्मन
एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया पहली बार आई विदेशी कचरी ने पूरे बाज़ार का ट्रेंड ही बदल दिया है। इंडोनेशिया और जर्मनी के अलावा चाइना से आ रहे यह खाद्य आइटम मशीनो से तैयार होते हैं, लेकिन इसमें क्या-क्या मिलाया जाता है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। ग्राहक आसानी से इनकी तरफ आकर्षित हों इसके लिए अलग-अलग रंगों का भी इस्तेमाल किया गया है। सारे कारोबारी मजबूर हैं, क्योंकि आज हर खरीदार इसे ही लेना पसंद कर रहा है।

रेडिमेड का है जमाना

वहीं, कारोबारी की माने तो अब हर सामानों में मिलावट का धंधा होता है। अब लोग अपने घरों में कुछ भी बनाना पसंद नहीं करते। हर चीज लोगों को रेडिमेट ही चाहिए। ऐसे में बाज़ार में जो भी सामान उपलब्ध है, बस सस्ती और दिखने में खूबसूरत होनी चाहिए। ऐसी चीजों को लोग उसे तुरंत खरीदना पसंद करते हैं।
इनके मुताबिक पापड़ और कचरी में मिलावट रोकने का कोई नियम नहीं है। इस तरह के सभी उत्पादन करमुक्त होते हैं और यह कुटीर उद्योग के तहत भी आते हैं।

हो सकती है ये बीमारी
अखाद्य रंग केमिकल से तैयार होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। किडनी, लीवर, आंत व फेफड़ों में संक्रमण पैदा कर सकते हैं। इनके सेवन से डायरिया, रक्त अल्पता, गर्भवती महिलाओं को गर्भपात तथा कैंसर तक हो सकता है। एसीडिटी की शिकायतें भी बढ़ जाती हैं। इसलिए अखाद्य रंगों वाली चीजें नहीं खानी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग की सलाह है कि लोग सावधानी बरतें और अखाद्य रंगों का उपयोग खाने में न कर।
खाद्य विभाग अधिकारी धर्मेन्द्र मिश्र ने बताया कि होली को लेकर खाद्य विभाग 12 मार्च से अभियान चला रहा है। अभी तक 60 सेंपल भरकर जांच के लिये लैब भेजे गए है।

वर्जन
अधिकतर रंग फूड ग्रेड के नहीं होते हैैं। ये इंडस्ट्रियल केमिकल होते हैैं, इन से बने फूड प्रोडक्ट्स का सेवन करने से पेट संबंधी समस्याएं हो सकती हैैं। वहीं अगर लंबे समय तक ऐसे फूड आइटम का सेवन करने से लीवर, किडनी पर बुरा प्रभाव पड़ता हैै।
-डॉ। अजय मोहन अग्रवाल, वरिष्ठ फिजिशियन