सरकारी मिलीभगत से चल रहा धंधा!
धड़ल्ले से चल रहे अवैध वोटर आईडी कार्ड के कारोबार के तार कलेक्ट्रेट से होकर गुजर रहे हैं। नेक्सस को रॉ मैटीरियल मुहैया करने में कलेक्ट्रेट के कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आ रही है। दरअसल बड़ी संख्या में ऐसे वोटर आईडी कार्ड मार्केट में आ चुके हैं, जो संशोधन के लिए बीएलओ के पास वापस आ गए या जो बीएलओ द्वारा रेजिडेंट्स को बांटे ही नहीं गए। यही कारण है कि फर्जी वोटर आई कार्ड जुलाई 2011 की डेट से बनकर मार्केट में आ रहे हैं।
BLO की होती है जिम्मेदारी
इस खेल की स्टार्टिंग वोटर आई कार्ड बनाने वाली प्राइवेट कंपनी से ही शुरू होती है। वोटर आई कार्ड के लिए सबसे पहले ऑनलाइन डाटा फीडिंग होती है। इसमें घोर लापरवाही बरती जाती है। इसलिए नाम, एड्रेस, सेक्स और ऐज की तमाम गल्तियां होती हैं। गलती होने पर रेजिडेंट्स काड्र्स एक्सेप्ट नहीं करते, इन्हें बीएलओ वापस ले जाता है। नियम तो ये है कि बीएलओ मौके पर ही लिस्ट में रेजिडेंट्स के सिग्नेचर लेकर कार्ड वापस ले, मगर नियमों को ताक पर रखकर काम किया जाता है। वहीं वोटर कार्ड बांटने में बीएलओ खेल करते है। कई बार शिकायतें आती है कि वोटर कार्ड कूड़े के ढेर में मिले। शहर में ये वोटर आई कार्ड कूड़े के ढेर में नहीं, बल्कि काले कारोबारियों के हाथों में पहुंच रहे हैं।
होता है स्पेशल फॉन्ट
वोटर आईडी कार्ड में यूज होने वाला फॉन्ट स्पेशल होता है। इसलिए बीएलओ से मिलीभगत करके ये कार्ड ब्रोकर तक पहुंचते हैं। सोर्सेज के मुताबिक, फर्जी आईडी के लिए असली कार्ड को स्कैन करके कंप्यूटर में फॉर्मेट तैयार किया जाता है। किसी अन्य व्यक्ति का कार्ड बनाने के लिए ब्रोकर कार्ड पर फोटो और डिटेल बदल देते हैं। यह दिखने में असली जैसा ही दिखता है। सिमिलैरिटी इतनी ज्यादा होती है कि असली और नकली में फर्क करना मुश्किल होता है।
हालमार्क में जुगाड़
कार्ड की स्कैनिंग के अलावा कार्ड में निर्वाचन आयोग का हालमार्क भी होता है। संशोधन के लिए आए और न बांटे गए काड्र्स को पहले पानी में भिगो दिया जाता है। इससे कार्ड का कागज फूल जाता है और हालमार्क बड़ी सफाई से उखड़ जाता है। ये हालमार्क फिर नकली कार्ड बनाने में यूज किया जाता है। हालमार्क हासिल करने के लिए इनकी प्रिटिंग का काम भी किया जाता है।
तहसील का process
निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार डीएम, रजिस्ट्रार कानूनगो के जरिए वोटर आईडी बनवाने के लिए प्राइवेट कंपनी को टेंडर जारी करता है। टेंडर प्रक्रिया के बाद प्राइवेट कंपनी मैनुअली तैयार डाटा को कंप्यूटर में फीड करती है। इसी डाटा के बेस पर कंपनी वोटर आईडी कार्ड तैयार करती है। ये कार्ड बनने के बाद वापस रजिस्ट्रार कानूनगो के पास पहुंच जाते हैं, जहां से आरओ, बीएलओ को कार्ड डिस्ट्रिब्यूशन के लिए देता है।
नहीं पहुंचे डेस्ट्रॉय होने वाले कार्ड
संशोधन के लिए कलेक्ट्रेट आए कार्ड और जो वोटर आई कार्ड नहीं बंट पाते हैं, उन्हें एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी की मौजूदगी में डेस्ट्रॉय किया जाता है। इसके लिए निहायत ही कड़े नियम हैं। कलेक्ट्रेट के सोर्सेज के मुताबिक, इस बार निर्वाचन कार्यालय में डेस्ट्रॉय होने के लिए वोटर आई कार्ड पहुंचे ही नहीं। हालांकि खबर प्रकाशित होने के बाद कलेक्ट्रेट में इलेक्शन मैटीरियल जलाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
कार्ड 5.60 रुपए का
ब्रोकर्स के जरिए भले ही वोटर आई कार्ड की कीमत 300 रुपए लगती हो पर ये सेवा तहसील में निशुल्क मुहैया करवाई जाती है। वोटर आई कार्ड बनाने के लिए आपको सिर्फ फॉर्म 6 भरना होता है। फॉर्म में दी गई डिटेल का ही डाटा ऑनलाइन किया जाता है, जिससे वोटर कार्ड बनता है। एक वोटर कार्ड बनाने की लागत सिर्फ 5.60 रुपए आती है।
ये भी कम जिम्मेदार नहीं
हालिया असेंबली इलेक्शन में बरेली में सिर्फ दो कंपनियों शिवपुरी की पवन कंप्यूटर और बदायूं की शैली कंप्यूटर को वोटर आईडी बनाने का कॉन्ट्रेक्ट दिया गया था। डाटा फीडिंग में जबरदस्त गड़बडिय़ां सामने आईं थीं। कलेक्ट्रेट के आकड़ों के मुताबिक, इस बार विधान सभा में 25,63,014 लाख वोटर्स थे मगर इलेक्शन के बाद 45,921 हजार वोटर्स के कार्ड मौजूद हैं, जिन पर फोटो नहीं लग सकी है। इस वजह से निर्वाचन आयोग को ठीक चुनाव से पहले दूसरी आईडी पर वोट कास्ट करने की घोषणा करनी पड़ती है।
जिनका सिग्नेचर है, वो तो चले गए
फिलहाल सामने आ रहे फर्जी वोटर आई कार्ड पर एसडीएम पद्म सिंह के सिग्नेचर हैं। सीरियल नंबर भी उनके टाइम का ही है। ये सभी कार्ड जुलाई 2011 की डेट से जारी किए गए हैं। खास बात ये कि एसडीएम पद्म सिंह का बरेली से ट्रांसफर हो चुका है। वहीं 25 जनवरी 2011 से पहले तहसील में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों के वोटर कार्ड पर एसडीएम के साइन होते थे, मगर अब नई व्यवस्था के तहत सभी क्षेत्रों के एसीएम के सिग्नेचर वोटर आई कार्ड पर किए जाते हैं।
कलेक्ट्रेट के ठीक बाहर 'नागरिकता की दुकान'
नागरिकता बांटने का धंधा शहर के बीचों-बीच डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन के तमाम बड़े ऑफिसर्स के अगल-बगल ही अंजाम दिया जा रहा है। नागरिकता के ये सौदागर विभिन्न सरकारी योजनाओं और नौकरियों के आवेदन फार्म बेचने की आड़ में पूरे काम को अंजाम दे रहे हैं। स्टिंग के दौरान आईनेक्स्ट की मुलाकात ऐसे ही एक ध्ंाधेबाज से हुई। जिसकी दुकान कलेक्ट्रेट के ठीक बाहर है।
रिपोर्टर- इनकम सर्टिफिकेट बनवाना है। क्या प्रोसेस है?
धंधेबाज- फोटो, आईडी व एड्रेस प्रूफ।
रिपोर्टर- इनकम सर्टिफिकेट बनवाने के लिए कितने रुपए लगेंगे?
धंधेबाज- सर्टिफिकेट बनवाने के लिए लगभग 600 रुपए लगेंगे।
रिपोर्टर- इनकम सर्टिफिकेट बनवाने के तो तहसील में 20 रुपए बताए गए हैं?
धंधेबाज- तो आप वहीं से बनवा लो। फॉर्म तो जमा हो जाएगा। लेकिन सर्टिफिकेट कब तक मिलेगा पता नहीं।
रिपोर्टर- 600 रुपए बहुत ज्यादा हैं?
धंधेबाज- हमें तहसील में भी कर्मचारियों की जेब गरम करनी पड़ेगी। उसमें से भी मुझे 20-30 रुपए मिलने हैं। वैसे आपको इनकम सर्टिफिकेट की क्या जरूरत है?
रिपोर्टर- मैं बरेली कॉलेज में बीबीए का स्टूडेंट हूं। वहां स्कॉलरशिप और फीस रिफंड का फॉर्म भरने के लिए इनकम सर्टिफिकेट चाहिए।
धंधेबाज- आप इनकम सर्टिफिकेट की सब फॉर्मेलिटी पूरी करके मुझसे मिलो। आगे का काम करके मैं आपको सर्टिफिकेट जल्द से जल्द दिला दूंगा।
रिपोर्टर- मैं शहर के बाहर का रहने वाला हूं। ऐसे में मैं अगर वहां का आईडी और एड्रेस आपको दूंगा तो वो यहां काम नहीं करेगा। क्या इनकम सर्टिफिकेट को बनवाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं हैं?
धंधेबाज- हां है। इसके लिए पहले एक आईडी बनानी होगी। लेकिन उसमें खर्चा बहुत होगा।
रिपोर्टर- खर्च की परवाह मत करो बस पहले आईडी बनवा दो।
धंधेबाज- इसके लिए एक फोटो और 500 रुपए सहित कार्ड बनवाने वाले का पूरा नाम, पता और बर्थ डेट की डिटेल के साथ मुहैया करा दो।
रिपोर्टर- पैसे कुछ कम करिए। अपने साथ एक और का भी आईडी कार्ड बनवाना है।
धंधेबाज- वैसे तो मैं कम नहीं करता। लेकिन आप मुझे दोनों के 600 रुपए दे देना।
रिपोर्टर- ऐसा तो नहीं कि कहीं इस वोटर आईडी कार्ड का यूज करते समय मैं पकड़ा जाऊं?
धंधेबाज- कार्ड एकदम असली होगा, बाद में वोटर लिस्ट में भी नाम चढ़वा दूंगा।
रिपोर्टर- कार्ड मिलेगा कब?
दलाल- एक दिन बाद।
रिपोर्टर- कार्ड कहां दोगे?
दलाल- तहसील के सामने मिलना।
दूसरे दिन तय समय पर
धंधेबाज- अभी कार्ड तैयार नहीं है. एक घंटे और लग जाएंगे। थोड़ी देर से आओ तो आपको मैं कार्ड बनाकर दे दूंगा।
उसी दिन दोपहर बाद
धंधेबाज- अगर आप लेट हो जाओ और मैं दुकान पर न मिलूं तो किसी और से कोई बात मत करना। सीधे दुकान पर आना। वहीं आपको कार्ड मिल जाएंगे।
दुकान पर पहुंचने पर
धंधेबाज- कार्ड तैयार हो गया है। ये लो। सब डिटेल चेक कर लो ठीक है?
मुख्य निर्वाचन आयोग ने दिए जांच के आदेशजिले का निर्वाचन अधिकारी डीएम होता है। उसको इस पूरे मामले की जांच करनी चाहिए. फिलहाल यह मामला मेरे संज्ञान में आ गया है। यह मामला बहुत ही गंभीर है इसलिए मैंने भी उनको इसकी जांच करने के निर्देश दे दिए हैं।
-उमेश सिन्हा, मुख्य निर्वाचन आयुक्त