ये कैसा social change है!

Case-1

आशा देवी कैंट में रहती हैं। उनके चार बेटे हैं। उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे 28 वर्षीय संजय की शादी दो महीने पहले प्रेमनगर की रुचि के साथ करवाई थी। कुछ ही दिन बीते थे कि रुचि ने घर में इसलिए झगड़ा शुरू कर दिया कि उसका बेडरूम छोटा है। जबकि उसकी सास का रूम बड़ा है। रुचि उस रूम में रहने की डिमांड करने लगी। बेडरूम को लेकर घर से शुरू हुई लड़ाई परामर्श केंद्र तक पहुंच गई। वहां काउंसलर्स के काफी समझाने के बाद भी मामला नहीं सुलझा। सास का कमरा न मिलने पर रुचि ने अपने पति संजय से डायवोर्स लेकर दूसरी शादी तक करने का फैसला ले लिया। फिलहाल रुचि अपनी मां के साथ रहती है। उसके पेरेंट्स का भी डायवोर्स हो चुका है।

Case-2

30 साल के दिनेश की शादी 2004 में सुनीता के साथ हुई थी। दोनों सितारगंज में रहते हैं। दोनों के दो बच्चे भी हैं। शादी के 8 साल बाद सुनीता को अपने पति से यह शिकायत है कि वह उसे प्यार नहीं करता। उसकी अनदेखी करता है। कहीं घुमाने नहीं ले जाता। मामला परामर्श केंद्र पहुंचा। थर्सडे को दोनों को काउंसलिंग के लिए बुलाया गया था। फिलहाल इनके केस का फैसला नहीं हो सका है।

Case-3

शांति प्रेमनगर में रहती हैं। उनका घर थोड़ा छोटा है। उनके चार बेटे हैं और दो की शादी हो चुकी है। घर में एक रूम व एक बराम्दा है। बड़े बेटा संदीप और उसकी पत्नी शालिनी रूम में रहते हैं। इसलिए शालिनी की देवरानी सोनम को अच्छा नहीं लगता। सोनम की शादी संजीव से हुई है। रूम में रहने को लेकर आए दिन घर में लड़ाई होती है। इससे तंग आकर शांति अपने दो कुंवारे बेटों के साथ किराए के मकान में रहती है। रूम में रहने की जिद पर अड़ी सोनम ने परामर्श केंद्र का सहारा लिया। वहां काउंसलर्स ने सोनम और उसकी जिठानी शालिनी को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। जिद पर अड़ी सोनम ने अपने पति संजीव से एक महीने पहले तलाक ले लिया।

ये केसेज बताते हैं कि इन दिनों तेजी से टूट रही शादियों के पीछे वजह कितनी मामूली और बचकाना है। सात जन्मों तक साथ निभाने के वादे के साथ फेरे लेने वाले कपल साल पलों के लिए भी एक-दूसरे के साथ एडजस्टमेंट करने को तैयार नहीं। छोटी-छोटी बात पर झगड़ा और फिर तलाक जैसा लाइफ टाइम डिसीजन। परामर्श केंद्र में करीब-करीब रोज इसी तरह के मामले आते हैं। खुद काउंसलर भी बताते हैं कि किसी-किसी केस में ही सीरियस प्रॉब्लम सामने आती है। तो क्या ये आजकल की फास्ट एंड फ्यूरियस लाइफ के साइडइफेक्ट्स हैं। जानने की कोशिश की आई नेक्स्ट ने-

Daily करीब 10 case

बरेली में मैरीड लाइफ में दरार की प्रॉब्लम बढ़ती जा रही है। महिला थाने में पति-पत्नी के बीच मतभेद के डेली सात-आठ केस दर्ज होते हैं। इसके अलावा परामर्श केंद्र में भी चार से पांच केस डेली आते हैं। मामला देखने में तो बड़ा नजर आता है लेकिन छानबीन करने पर बात बच्चों जैसे झगड़े से ज्यादा कुछ नहीं होती। कई केसेज में तो डायरेक्ट तलाक की बात आ जाती है। परामर्श केंद्र की इंचार्ज पूजा शर्मा ने बताया कि दोनों पक्षों को समझाने की हर संभव कोशिश की जाती है लेकिन जरा-जरा सी बातों के लिए भी कोई एडजस्ट नहीं करना चाहता।

Society में आ रहा बदलाव

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो आजकल कपल्स बिल्कुल भी एडजस्टमेंट नहीं करना चाहते। उन्हें लगता है कि इससे उनकी इज्जत कम हो जाएगी। किसी भी बात पर कॉम्प्रोमाइज तो उनकी शान के खिलाफ है। एक-दूसरे के तौर तरीकों को एक्सेप्ट करने में उन्हें दिक्कत होती है। अपने बीच बड़ों का हस्तक्षेप उन्हें बर्दाश्त नहीं। इसी वजह से तलाक जैसे बड़े फैसले तक की नौबत आ जाती है।

सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर में आया बदलाव इसकी बड़ी वजह है। सोशलॉजिस्ट का कहना है कि महिलाओं की भूमिका बदल रही है। पहले वे घर के अंदर रहते हुए पुरुषों पर निर्भर थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है। उनकी भागीदारी घर के बाहर भी बढ़ रही है। उनकी सोच बदल रही है कि वे कमाती हैं तो अलग से कुछ भी कर सकती हैं। यही छोटी-छोटी बातें आगे चलकर तलाक का कारण बन जाती हैं।

बेहतर है थोड़ी सी care

-पति-पत्नी एक दूसरे को टाइम दें।

-मनमुटाव होने पर जल्दबाजी में डिसीजन न लें। गुस्से में लिया गया डिसीजन ठीक नहीं होता।

-पॉजिटिव एप्रोच हमेशा बनाए रखें।

-कम्युनिकेशन गैप न होने दें।

-खुद के साथ एक-दूसरे पर भी भरोसा रखें।

-कई बार बुजुर्गों, साइकोलॉजिस्ट और सोशलॉजिस्ट की सलाह भी काम आती है।

महिला थाने में ज्यादातर दहेज और पति-पत्नी के आपसी मनमुटाव के केस आते हैं। डेली करीब सात से आठ केस पति -पत्नी के आपसी झगड़े के होते हैं, वो भी छोटी-मोटी बातों पर। जो आसानी से सॉल्व हो सकती हैं।

-रजनी द्विवेदी, इंचार्ज, महिला थाना

परामर्श केंद्र में पांच मेंबर्स हैं। सभी पति-पत्नी के विवाद सुलझाने में लगे रहते हैं। काउंसलिंग के लिए मैक्सिमम तीन बार पक्ष-विपक्ष के लोगों को बुलाया जाता है। उन्हें समझाया जाता है। जब लोग केस दर्ज कराते हैं तो लगता है सच में मामला दहेज का है पर छानबीन के बाद अक्सर आपसी झगड़े का विवाद निकलता है।

-पूजा शर्मा, हेड, परामर्श केंद्र

छोटी-छोटी बातों को तूल देने से बचना चाहिए। हसबैंड-वाइफ एक दूसरे के तौर तरीकों को अपनाएं तो तलाक की नौबत नहीं आएगी। सबसे बड़ी वजह होती है इगो। जब तक व्यक्ति अपने अंदर इगो रखेगा, दो लोगों को जिंदगी साथ बिताने में प्रॉब्लम आएगी।

-डॉ। हेमा खन्ना, साइकोलॉजिस्ट

एक दूसरे की सोच को समझना बहुत जरूरी होता है। पति -पत्नी के बीच कोई प्रॉब्लम भी होती है तो एक-दूसरे से बात करके सुलझा लेनी चाहिए। सोशल चैलेंजेज को एक्सेप्ट तो करना ही होगा। लाइफ में आने वाली छोटी-छोटी परेशानियों को एवॉइड कर देना ही बेहतर होता है।

-डॉ। नवनीत कौर आहुजा, सोशलॉजिस्ट