-डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इमरजेंसी ऑपरेशन के बजाए सेलेक्टिव ऑपरेशन ज्यादा
-सीएमएस ने भेजा नोटिस, इमरजेंसी ऑपरेशन न करने पर मांगा जुलाई का ब्यौरा
-सेलेक्टिव ऑपरेशन में कर रहे कमाई, बाहरी मरीज भी सस्ते में करा रहे ऑपरेशन
<-डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इमरजेंसी ऑपरेशन के बजाए सेलेक्टिव ऑपरेशन ज्यादा
-सीएमएस ने भेजा नोटिस, इमरजेंसी ऑपरेशन न करने पर मांगा जुलाई का ब्यौरा
-सेलेक्टिव ऑपरेशन में कर रहे कमाई, बाहरी मरीज भी सस्ते में करा रहे ऑपरेशन
BAREILLY: BAREILLY: डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में पहुंच रहे इमरजेंसी केसेज जिनमें ऑपरेशन किए जाने की जरूरत है, दूसरे हॉस्पिटल को रेफर किए जा रहे हैं। कभी केस क्रिटिकल होने के नाम पर हॉयर सेंटर तो कभी सलाह मशविरे के तौर पर शहर के ही निजी हॉस्पिटल में भेजे जा रहे हैं। हॉस्पिटल के मुखिया की नाराजगी और आंकड़े तो इसी की गवाही दे रहे हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के सर्जनों की दिलचस्पी इमरजेंसी ऑपरेशन में नहीं है। वे सेलेक्टिव ऑपरेशन में ही अपनी काबिलियत दिखा रहे हैं। इमरजेंसी ऑपरेशन से मुंह चुरा रहे ऐसे सर्जन पर सीएमएस डॉ। आरसी डिमरी ने अब नजरें टेढ़ी कर ली है।
मांगा जुलाई का ब्यौरा
लंबे समय से हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक सर्जन और जनरल सर्जन के खिलाफ इमरजेंसी ऑपरेशन न किए जाने की कंप्लेन सीएमएस को मिल रही थी। शिकायतें खंगाली गई और रिकॉर्ड चेक किए गए तो मामला गंभीर नजर आया। सीएमओ डॉ। विजय यादव ने सीएमएस को ऐसे सर्जन के खिलाफ नोटिस देने के निर्देश दिए, जिस पर सीएमएस ने 14 अगस्त को 3 ऑर्थोपेडिक व 4 जनरल सर्जन समेत कुल 7 डॉक्टर्स को लेटर भेजा। जिसमें जुलाई 2014 में इनके किए हुए इमरजेंसी ऑपरेशन का ब्यौरा मांगा गया।
कमाई है असली वजह
हॉस्पिटल में इमरजेंसी ऑपरेशन में आ रही कमी के पीछे की बड़ी वजह इसमें कमाई का न होना है। जानकारों ने बताया कि इमरजेंसी ऑपरेशन में सर्जन को ऑन ड्यूटी या ऑन कॉल मौजूद रहना पड़ता है। ऐसे इमरजेंसी केसेज में होने वाले ऑपरेशन मुफ्त किए जाते हैं। वहीं सेलेक्टिव ऑपरेशन ऐसे ऑपरेशन हैं जिन्हें ऑपरेट करने के लिए समय व तारीख तय कर दी जाती है। जानकारों ने बताया कि इन ऑपरेशन में ही असली कमाई का खेल होता है। जिसकी वजह से इनकी तादाद ज्यादा है।
मरीज के लिए फायदे का सौदा
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में सेलेक्टिव ऑपरेशन का खर्च महज 400 रुपए में सिमट जाता है। निजी हॉस्पिटल में होने वाले ऐसे ऑपरेशन जिनमें 20-30 हजार रुपए का खर्च होता है वह मरीज डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल आते हैं। एक रुपए के पर्चे पर उन्हें एडमिट कर उनके ऑपरेशन की तारीख तय कर दी जाती है। जिन दवाओं व इंजेक्शन पर 1600 से 3200 रुपए तक का खर्च आता है वह हॉस्पिटल में मुफ्त में मरीज को उपलब्ध हो जाती है। ऐसे में मरीज की जेब पर कोई बोझ नहीं पड़ता।
यूं होता है कमाई का खेल
जानकारों ने बताया कि मरीज को लगभग मुफ्त में मिल रहे इलाज का फायदा ही डॉक्टर्स की कमाई की वजह बनता है। ऐसे मरीज जो निजी हॉस्पिटल से इलाज करा रहे हो, लेकिन ऑपरेशन की भारी कीमत से बचना चाह रहे हो उनसे संपर्क कर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इलाज कराया जाता है। इन केसेज में दलाल ही पूरी डील फिक्स कर देते हैं। डॉक्टर 399 रुपए फीस के सरकारी खर्च पर ऐसे मरीज एडमिट कर उनका ऑपरेशन कर देते हैं। इस दौरान मरीज सरकारी खर्च पर दवा, इलाज, इंजेक्शन और वार्ड की सुविधा लेता हैं। बदले में मरीज 5 से 10 हजार रुपए तक जितने में डील हुई हो पैसे देता है। जो डॉक्टर की जेब में जाता है।
खराब केसेज से हुए खुलासे
हॉस्पिटल में इलाज के बदले डॉक्टर की ओर से पैसे वसूले जाने के कई मामले सुर्खियों में रहे हैं, जिनमें आरोपी डॉक्टर के खिलाफ जांच व कार्रवाई की कवायदे भी खूब खेली गई। लेकिन कभी किसी मामले में सजा नहीं हुई। जानकारों ने बताया कि निजी हॉस्पिटल में इलाज कराने वाले, लेकिन पैसे बचाने की खातिर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल का रूख करने वाले मरीज खुद भी इस खेल का हिस्सा हैं। जिन मामलों में ऑपरेशन खराब हो गए या डील फाइनल होने के बावजूद पैसों को लेकर ऑपरेशन न किए गए सिर्फ उन्हीं केसेज में डॉक्टर्स के खिलाफ पैसे वसूली के आरोप उछले।
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नोटिस पर सर्जन नहीं दे रहे जवाब
-12 दिन बाद भी 7 सर्जन ने नहीं दिया जुलाई में किए इमरजेंसी ऑपरेशन का ब्यौरा
-23 अगस्त को सीएमएस ने भेजा रिमाइंडर, जवाब नहीं तो उच्चाधिकारियों को जाएगी रिपोर्ट
<डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में पहुंच रहे इमरजेंसी केसेज जिनमें ऑपरेशन किए जाने की जरूरत है, दूसरे हॉस्पिटल को रेफर किए जा रहे हैं। कभी केस क्रिटिकल होने के नाम पर हॉयर सेंटर तो कभी सलाह मशविरे के तौर पर शहर के ही निजी हॉस्पिटल में भेजे जा रहे हैं। हॉस्पिटल के मुखिया की नाराजगी और आंकड़े तो इसी की गवाही दे रहे हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के सर्जनों की दिलचस्पी इमरजेंसी ऑपरेशन में नहीं है। वे सेलेक्टिव ऑपरेशन में ही अपनी काबिलियत दिखा रहे हैं। इमरजेंसी ऑपरेशन से मुंह चुरा रहे ऐसे सर्जन पर सीएमएस डॉ। आरसी डिमरी ने अब नजरें टेढ़ी कर ली है।
मांगा जुलाई का ब्यौरा
लंबे समय से हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक सर्जन और जनरल सर्जन के खिलाफ इमरजेंसी ऑपरेशन न किए जाने की कंप्लेन सीएमएस को मिल रही थी। शिकायतें खंगाली गई और रिकॉर्ड चेक किए गए तो मामला गंभीर नजर आया। सीएमओ डॉ। विजय यादव ने सीएमएस को ऐसे सर्जन के खिलाफ नोटिस देने के निर्देश दिए, जिस पर सीएमएस ने क्ब् अगस्त को फ् ऑर्थोपेडिक व ब् जनरल सर्जन समेत कुल 7 डॉक्टर्स को लेटर भेजा। जिसमें जुलाई ख्0क्ब् में इनके किए हुए इमरजेंसी ऑपरेशन का ब्यौरा मांगा गया।
कमाई है असली वजह
हॉस्पिटल में इमरजेंसी ऑपरेशन में आ रही कमी के पीछे की बड़ी वजह इसमें कमाई का न होना है। जानकारों ने बताया कि इमरजेंसी ऑपरेशन में सर्जन को ऑन ड्यूटी या ऑन कॉल मौजूद रहना पड़ता है। ऐसे इमरजेंसी केसेज में होने वाले ऑपरेशन मुफ्त किए जाते हैं। वहीं सेलेक्टिव ऑपरेशन ऐसे ऑपरेशन हैं जिन्हें ऑपरेट करने के लिए समय व तारीख तय कर दी जाती है। जानकारों ने बताया कि इन ऑपरेशन में ही असली कमाई का खेल होता है। जिसकी वजह से इनकी तादाद ज्यादा है।
मरीज के लिए फायदे का सौदा
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में सेलेक्टिव ऑपरेशन का खर्च महज ब्00 रुपए में सिमट जाता है। निजी हॉस्पिटल में होने वाले ऐसे ऑपरेशन जिनमें ख्0-फ्0 हजार रुपए का खर्च होता है वह मरीज डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल आते हैं। एक रुपए के पर्चे पर उन्हें एडमिट कर उनके ऑपरेशन की तारीख तय कर दी जाती है। जिन दवाओं व इंजेक्शन पर क्म्00 से फ्ख्00 रुपए तक का खर्च आता है वह हॉस्पिटल में मुफ्त में मरीज को उपलब्ध हो जाती है। ऐसे में मरीज की जेब पर कोई बोझ नहीं पड़ता।
यूं होता है कमाई का खेल
जानकारों ने बताया कि मरीज को लगभग मुफ्त में मिल रहे इलाज का फायदा ही डॉक्टर्स की कमाई की वजह बनता है। ऐसे मरीज जो निजी हॉस्पिटल से इलाज करा रहे हो, लेकिन ऑपरेशन की भारी कीमत से बचना चाह रहे हो उनसे संपर्क कर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इलाज कराया जाता है। इन केसेज में दलाल ही पूरी डील फिक्स कर देते हैं। डॉक्टर फ्99 रुपए फीस के सरकारी खर्च पर ऐसे मरीज एडमिट कर उनका ऑपरेशन कर देते हैं। इस दौरान मरीज सरकारी खर्च पर दवा, इलाज, इंजेक्शन और वार्ड की सुविधा लेता हैं। बदले में मरीज भ् से क्0 हजार रुपए तक जितने में डील हुई हो पैसे देता है। जो डॉक्टर की जेब में जाता है।
खराब केसेज से हुए खुलासे
हॉस्पिटल में इलाज के बदले डॉक्टर की ओर से पैसे वसूले जाने के कई मामले सुर्खियों में रहे हैं, जिनमें आरोपी डॉक्टर के खिलाफ जांच व कार्रवाई की कवायदे भी खूब खेली गई। लेकिन कभी किसी मामले में सजा नहीं हुई। जानकारों ने बताया कि निजी हॉस्पिटल में इलाज कराने वाले, लेकिन पैसे बचाने की खातिर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल का रूख करने वाले मरीज खुद भी इस खेल का हिस्सा हैं। जिन मामलों में ऑपरेशन खराब हो गए या डील फाइनल होने के बावजूद पैसों को लेकर ऑपरेशन न किए गए सिर्फ उन्हीं केसेज में डॉक्टर्स के खिलाफ पैसे वसूली के आरोप उछले।
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नोटिस पर सर्जन नहीं दे रहे जवाब
-क्ख् दिन बाद भी 7 सर्जन ने नहीं दिया जुलाई में किए इमरजेंसी ऑपरेशन का ब्यौरा
-ख्फ् अगस्त को सीएमएस ने भेजा रिमाइंडर, जवाब नहीं तो उच्चाधिकारियों को जाएगी रिपोर्ट
BAREILLY: BAREILLY: इमरजेंसी ऑपरेशन न किए जाने के मामले में सीएमएस की ओर से 7 सर्जन को भेजी गई नोटिस पर किसी ने भी जवाब नहीं दिया है। क्ब् अगस्त को दी गई नोटिस के जवाब में फ् ऑर्थोपेडिक व ब् जनरल सर्जन में से एक ने भी जुलाई में किए गए अपने इमरजेंसी ऑपरेशन का ब्यौरा नहीं दिया। 9 दिन बीतने पर भी एक भी सर्जन के अपने ब्यौरे न भेजने पर सीएमएस ने ख्फ् अगस्त को सभी को रिमाइंडर नोटिस भेजा है, जिसमें ब्यौरा न दिए जाने पर संबंधित सर्जन के खिलाफ उच्चाधिकारियों को कार्रवाई के लिए रिपोर्ट भेजी जाएगी।
इन्हें मिली है नोटिस
हॉस्पिटल के मुखिया ने खुद इमरजेंसी ऑपरेशन से मुंह फेर रहे सरकारी सर्जन के ऐसे रवैये को बेहद गंभीर माना। सीएमएस ने अपने भेजे लेटर में साफ किया कि इमरजेंसी ऑपरेशन न किए जाने की बार-बार शिकायतें मिल रही हैं जो एक बेहद गंभीर मामला है। इमरजेंसी ऑपरेशन न करने वाले जिन सर्जनों को नोटिस दी गई उनमें तीन ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ। केएस गुप्ता, डॉ। टीएस आर्या और डॉ। शिवदत्ता हैं। वहीं ब् जनरल सर्जन डॉ। एके गुप्ता, डॉ। एके अग्रवाल, डॉ। एसके सक्सेना और डॉ। एमपी सिंह हैं।
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हॉस्पिटल में इमरजेंसी ऑपरेशन न किए जाने की कई कंप्लेन मिली हैं। यह एक बेहद गंभीर मामला है। सर्जन से जुलाई महीने के उनके इमरजेंसी ऑपरेंशन का ब्यौरा मांगा गया है। एक भी सर्जन ने ब्यौरा नहीं दिया। सभी को रिमाइंडर भेजा गया है। जवाब न दिया तो उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेजी जाएगी। - डॉ। आरसी डिमरी, सीएमएस