मंडल के सबसे बड़े हॉस्पिटल में नियम खुलेआम दरकिनार

एमआर अंदर, मरीज बाहर

सूटबूट व टाई लगाए हुए शख्स डॉक्टर्स के सामने कुर्सी पर बैठे रहते हैं। वहीं उनके पीछे या कमरे के बाहर मरीज अपनी बारी का इंतजार करते रहते हैं। कई बार मरीजों का यह इंतजार अगले दिन में शिफ्ट हो जाता है। अब सवाल यह है कि आखिर जब नियम है कि एमआर प्रोफेशनल कारणों से हॉस्पिटल नहीं आ सकते हैं तो फिर यह यहां पर क्या कर रहे हैं।

-मनाही के बावजूद डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में एमआर का बोलबाला

-ओपीडी टाइम में भी डॉक्टरों के पास जमाएं रहते हैं डेरा

- डॉक्टरों को एमआर के टाइम देने के चलते मरीजों को होती है परेशानी

BAREILLY: नियम बिल्कुल साफ है। सरकारी हॉस्पिटल में मरीजों को दवाएं मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएगी। फिर भी डॉक्टर्स के आसपास एमआर का डेरा रहता है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर जब मरीजों को फ्री में दवाएं उपलब्ध कराई जा रही है तो फिर प्राइवेट फार्मा कंपनी के एमआर यहां पर क्या कर रहे हैं। अगर एमआर हॉस्पिटल और डॉक्टर्स के केबिन में बैठे रहते हैं तो फिर यह भी साफ है कि कहीं कुछ गड़बड़ घोटाला है। हालांकि प्रोफेशनल कारणों के चलते एमआर की हॉस्पिटल में इंट्री बैन है। अगर रीजन पर्सनल है तो फिर हॉस्पिटल में ही क्यों। एमआर को बेधड़क हॉस्पिटल में आना हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन पर भी सवालिया निशान लगाता है।

और मरीज रहते हैं वेटिंग में

आईनेक्स्ट ने जब ओपीडी टाइम में एमआर व डॉक्टर्स के रिश्तों को चेक किया तो हकीकत चौंकाने वाली सामने निकलकर आई। हॉस्पिटल में करीब एक दर्जन से ज्यादा एमआर थे। कोई डॉक्टर के सीट पर बैठने का वेट कर रहा था तो कोई डॉक्टर्स के सामने वाली कुर्सी पर जमा हुआ बैठा हुआ था। चिंता की बात यह है कि एमआर व डॉक्टर के इस गठजोड़ का खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है और उनको वक्त से या तो डॉक्टर नहीं मिल पाते हैं या फिर उनकी वेटिंग अगले दिन को शिफ्ट हो जाती है।

खामियाजा तो बेचारे मरीज को ही उठाना पड़ता

डॉक्टर्स और एमआर के रिश्तों का खामियाजा भी मरीजों को ही उठाना पड़ता है। सोर्स बताते हैं कि एमआर न सिर्फ ओपीडी में आ रहे बल्कि डॉक्टर्स को अपनी कंपनी के दवाओं के सैंपल दे रहे। एमआर डॉक्टर्स से अपनी कंपनी की दवाओं की मार्केटिंग कर बाजार में इनकी बिक्री बढ़ाने में सहयोग करने की अपील करते हैं। ऐसे में डॉक्टर्स कहीं न कहीं मरीज ही डॉक्टर्स का शिकार होते हैं और डॉक्टर उनको बाहर की दवाएं प्रिस्क्राइब करते हैं।

पर्ची में लिखी जाती हैं बाहर की दवाएं

अन्य सरकारी हॉस्पिटल की तरह ही डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में भी मरीजों को गुपचुप तरीके से बाहर की दवाएं लिखे जाने का चलन है। गैर कानूनी होने के बावजूद कई बार हॉस्पिटल के कुछ डॉक्टर्स मरीजों को सादे कागज पर बाहर से दवा व इंजेक्शन खरीदने को लिखते हैं। जानकार सूत्र बताते हैं कि डॉक्टर्स ज्यादातर उन्हीं कंपनी की दवाएं लिखता है जिन कंपनियों के एमआर उनसे अपनी दवा को प्रिस्क्राइब करने की कहते हैं।

आए दिन मरीज करते हैं शिकायत

आई नेक्स्ट ने जब वार्ड में एडमिट व ओपीडी में कई मरीजों से बात की तो उन्होंने बताया कि दिन में कुछ चुनिंदा कॉमन दवाओं को छोड़कर महंगी दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। हॉस्पिटल प्रशासन मरीजों से साफ कह देता है कि यह दवाएं स्टोर में खत्म हो गई है। सिर्फ इतना ही नहीं एमआर डॉक्टर्स के साथ ही यहां के अन्य स्टॉफ को भी 'सेट' करते हैं कि वह भी मरीजों को दवाएं प्रिस्क्राइब करते हैं। आए दिन मरीज इसकी शिकायत सीएमएस को करते हैं।

यूं होता है खेल

दवा कंपनियां अपनी दवाओं की खरीद बढ़ाने के लिए डॉक्टर्स के पास अपने एमआर भेजती हैं। जो डॉक्टर्स को अपनी दवाएं प्रिस्क्राइक कराने के लिए इंटीमेट करते हैं। जिसके बदले में डॉक्टर्स को महंगे गिफ्ट्स, फॉरेन टुअर और हॉलीडे पैकेज तक ऑफर किए जाते हैं। वजह सरकारी डॉक्टर्स के पास आने वाले मरीजों की तादाद बहुत ज्यादा होती है। मरीज को जल्द आराम मिलने या इलाज बेहतर होने की सलाह पर अक्सर डॉक्टर्स सादे पर्चे पर बिना साइन के बाहरी दवा-इंजेक्शन लिख देते हैं। मरीज के तीमारदार-परिजन भी जल्द राहत मिलने की उम्मीद में बाहर से महंगी दवा-इंजेक्शन खरीदने से गुरेज नहीं करते। न ही इसकी कंप्लेन सीएमएस या सीएमओ से करते हैं।

सिस्टम पर सवाल

- नियमों के मुताबिक ओपीडी में एंट्री न होने के बावजूद दवा कंपनियों के एमआर कैसे हॉस्पिटल में घुसपैठ कर रहे।

- ओपीडी में डॉक्टर्स के केबिन तक एमआर की पहुंच इतनी आसानी से कैसे है। सरकारी ओपीडी में एमआर को एंटरटेन क्यों किया जाता है।

- एमआर की ओर से सरकारी डॉक्टर्स को कंपनी की दवाओं के सैंपल दिए जाने की कंप्लेन क्यों नहीं की जाती।

- कंप्लेन के बावजूद ओपीडी में एमआर की मौजूदगी पर रोक क्यों नहीं लग सकी।

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जानें अपना अधिकार

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मरीज को मुफ्त इलाज व दवा की सरकारी सुविधा मिलती है। मरीज को दवाएं हॉस्पिटल के दवा केन्द्र से ही मिलती हैं। अगर कोई दवा हॉस्पिटल के स्टॉक में नहीं मिलती तो, इमरजेंसी केसेज में हॉस्पिटल की ओर से बाहर से दवा मंगवाकर मरीज को देने की व्यवस्था है। किसी भी सूरत में मरीज से बाहर से दवा-इंजेक्शन खरीदने का दबाव नहीं बनाया जा सकता। अगर कोई डॉक्टर मरीज को बाहर से दवा-इंजेक्शन लिखता है तो इसका विरोध करें। इसकी कंप्लेन सीएमएस या सीएमओ से करें।

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डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मरीज को दवाएं मुफ्त में मिलती हैं। ऐसे में ओपीडी में एमआर के आने का कोई तुक नहीं हैं। अगर एमआर ओपीडी में आ रहे हैं तो उन्हें न आने के बारे में कहा जाना चाहिए। पर्सनल वजहों से एमआर के आने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। कोई गड़बड़ी है तो इस पर एक्शन लेंगे।

- डॉ। डीपी शर्मा, सीएमएस