सिटी के स्पोर्ट्स स्टेडियम का हाल है बेहाल
BAREILLY: खेल तभी चमकेगा जब खिलाड़ी चमकेंगे और खिलाड़ी तभी चमकेंगे जब खेल मैदान चमकेगा, खेलने की सभी उम्दा फैसिलिटीज होंगी। सभी स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस के लिए अलग से ग्राउंड और कोचेज होंगे, लेकिन स्पोर्ट्स स्टेडियम की स्थिति देखकर यह अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि प्लेयर्स नेशनल लेवल पर क्यों फिसड्डी हो जाते हैं और इंटरनेशनल लेवल के लिए तो जगह भी नहीं बना पाते। स्थानीय स्पोर्ट्स स्टेडियम में खेल सुविधाओं की भारी कमी है। कोर्ट, ट्रैक, ग्राउंड की क्वालिटी से लेकर कोचेज की कमी की समस्या काफी गंभीर है।
ब्0 वर्षो से तरस रहा स्टेडियम
स्पोर्ट्स स्टेडियम क्97ब् में स्टेट गवर्नमेंट कीअंडरटेकिंग में आया। तब से आज तक ब्0 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन स्पोर्ट्स स्टेडियम के इस क्0 एकड़ ग्राउंड में अभी तक खेल की सारी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। स्टेडियम की बाउंड्री वॉल काफी समय से टूटी हुई थी। हाल ही में वॉल को दुरुस्त करने का काम शुरू किया गया है। दर्शक दीर्घा में तो दर्शक बैठ ही नहीं सकते क्योंकि जगह-जबह बनीं सीढि़यां टूटी हुई हैं। वहीं दर्शक दीर्घा के ऊपर आज तक शेड का निर्माण नहीं कराया गया। एक अदद शेड होता तो दिन में दर्शक और प्लेयर्स तो बैठ ही सकते।
बिना ट्रैक के ग्राउंड
किसी भी स्टेडियम के ग्राउंड में एथलेटिक ट्रैक एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, लेकिन स्पोर्ट्स स्टेडियम में यही महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं है। काफी समय से यह दावा तो किया जा रहा है कि ट्रैक का जल्द निर्माण कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। लिहाजा एथलीट बिना ट्रैक के ही प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं। ट्रैक वाला हिस्सा तो जंगली घास व धूल मिट्टी से पटा रहता है। उबड़-खाबड़ जमीन होने के चलते एथलीट गिरकर चोटिल भी जाते हैं।
एक ही ग्राउंड में सभी गेम्स
स्पोर्ट्स स्टेडियम के एक ही ग्राउंड पर करीब सभी खेलों की प्रैक्टिस की जाती है। फुटबॉल, क्रिकेट, हॉकी, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, समेत कई गेम्स की प्रैक्टिस की जाती है। जबकि अलग-अलग गेम्स के लिए ग्राउंड के मानक अलग होते हैं। यही कारण है जब यहां प्रैक्टिस करने वाले प्लेयर्स ऑफिशियल गेम्स में खेलते हैं तो वे अपना बेस्ट नहीं दे पाते। क्योंकि तब वे असली ग्राउंड पर अपना पैर जमा नहीं पाते। एक बहुउद्देशीय हॉल भी है, जिसमें बैडमिंटन, टीटी, जिमनास्ट की प्रैक्टिस की जाती है। जबकि इनके लिए भी कंडीशन अलग-अलग होनी चाहिए। भ्0 लाख रुपए की लागत से लास्ट ईयर बॉस्केट बॉल कोर्ट का निर्माण कराया गया था, लेकिन वह भी मानक से परे है।
महज दो ही परमानेंट कोच
स्पोर्ट्स स्टेडियम फुटबॉल, क्रिकेट, वॉलीबॉल, बास्केट बॉल जिमनास्ट, स्वीमिंग, वेटलिफ्टिंग, नेट बॉल, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, समेत कई गेम्स की प्रैक्टिस कराई जाती है, लेकिन स्टेडियम में केवल दो ही खेल के परमानेंट कोच हैं। स्वीमिंग और जिमनास्ट के ही प्लयेर्स को ही कोचिंग मिल पा रही है। एक महीने पहले ही फुटबॉल के कोच का ट्रांसफर हो गया है। बाकी गेम्स में नॉन परमानेंट कोच कोचिंग दे रहे हैं और कई गेम्स में तो तमाम खेल एसोसिएशन के खिलाड़ी कोचिंग प्रदान कर रहे हैं। अधिकांश तो कोच के मानक पर तो खरे ही नहीं उतरते।
बेसिक सुविधाएं भी नहीं
स्टेडियम में खेल और खिलाडि़यों को लेकर बेसिक सुविधाएं नदारद है। महिला व पुरुष शौचालय की हालत तो ऐसी है कि शायद ही उसको कोई यूज करता होगा। वहीं प्रैक्टिस के लिए स्पोर्ट्स के सामान की तो भारी कमी है। वेट लिफ्टिंग के सामान पुराने जंग खा चुके हैं। एथलेटिक्स, क्रिकेट, बैडमिंटन, टीटी, जिमनास्ट समेत बाकी खेलों के लिए जरूरी सामान जरूरत के हिसाब से मुहैया नहीं कराए जाते। कई सामान तो महंगे होने की वजह से अफोर्ड नहीं हो पाते।
फंड का है रोना
स्पोर्ट्स स्टेडियम के अधिकारियों का कहना है कि स्टेडियम के लिए अलग से रेगुलर फंड की व्यवस्था नहीं है। हर वर्ष एस्टिमेट भेजा जाता है, जिसके अनुसार फंड रिलीज होता है। करीब ब् से भ् लाख रुपए का फंड आता है, लेकिन मोटा हिस्सा तो सैलरी और हॉस्टल के लिए खर्च हो जाता है। सुविधाओं को बढ़ाने के लिए तो फंड बचता ही नहीं। हाल ही में शासन से आए फंड से कुछ रेनोवेशन का काम चल रहा है। ग्राउंड में पिच तैयार हो रही है, लेकिन वह भी मानक की धज्जियां उड़ाकर। बाउंड्री वॉल का निर्माण कराया जा रहा है। साथ कोर्ट भी तैयार किया जा रहा है।