- स्वार्थ हित साधने वाले कैंडिडेट की पहचान कर बहिष्कार करें

लोकसभा इलेक्शन की डेट फाइनल होने के साथ ही देश भर में एक बार फिर से चुनावी महासंग्राम की बिसात बिछने लगी है। सभी पॉलिटिकल पार्टीज एक दूसरे पर जुबानी हमले तेज कर दिए हैं। इसके इतर राजनीति के पारखी भी नेता जी के पैमाने को अपनी कसौटी पर माप रहे हैं। यानी जनता भी इसमें अपनी दिलचस्पी दिखा रही है। इन सब के बीच गवर्नमेंट और प्राइवेट ऑफिस में भी कर्मचारियों के राजनीति विचार भी आकार लेने लगा है। फ्राइडे को एक्साइज डिपार्टमेंट के अधिकारी कुछ इसी आधार पर समीकरण बनाते नजर आएं। बहस से कुछ एसी बातें निकली, जो लोगों के लिए अहम और कारगर था।

नोटा इज बेस्ट ऑप्शन

चर्चा की शुरुआत एक्साइज ऑफिसर आनंद शंकर राय ने बड़े ही साफ और स्पष्ट लहजे से किया। उन्होंने राइट टू रिजेक्ट ऑप्शन (नोटा) को सबसे बेहतर और कारगर हथियार बताया। अगर नेता हमारे कसौटी पर खड़े नहीं उतरते हैं, तो उन्हें वोट मांगने का कोई अधिकार नहीं है। सभी लोग इस ऑप्शन को चुनेंगें, तो नए विकल्प खोजे जाएंगे। उसके बाद ही नए कैंडीडेट हमारे सामने आएगा। वह नई एनर्जी के साथ राजनीति में कदम रखेगा और देश को नई उंचाइयों तक ले जाएगा। इसके लिए लोगों को घर से बाहर निकलकर वोटिंग करनी होगी। ताकि वोटिंग का परसेंटज बढ़े। हम लोग इलेक्शन के दौरान ड्यूटी पर रहते हैं। इसलिए वोट डाल नहीं सकते, लेकिन और लोग जो इस दिन छुट्टियां मनाते हैं। वे तो अपने मत का प्रयोग कर ही सकते हैं। उनके समर्थन में सभी ने सिर हिला दिया।

लीडर के मानक तय हो

काफी एनर्जेटिक दिख रहे एक्साइज इंस्पेक्टर एमएन सिंह ने इसमें एक और बात जोड़ दी। उन्होंने कहा इलेक्शन कमीशन को चाहिए कि चुनाव लड़ने के लिए नेताओं की योग्यता का मानक भी तय करे। इसके लिए कायदे से एग्जाम कंडक्ट हो और जो बेहतर परफार्म करे। वही दावेदारी के काबिल माना जाए। प्रेजेंट टाइम में कर्मचारियों की भर्ती के लिए जब बड़े लेवल पर एग्जाम लिया जा रहा है तो देश की बागडोर यूं ही किसी के हाथों में सौंप देना साहब कहां का न्याय है? नेता पढ़ा लिखा होगा तो ज्यादा बेहतर होगा। इस पर सभी ने चुटकी ली और सवाल उभरा कि कम पढ़े लिखे तो देश को बेच खाए हैं। ज्यादा पढ़ा होगा तो सबूत भी हाथ नहीं लगेगा। इस चुटकी पर सभी हंस पड़े।

एजूकेशन सिस्टम हो बेहतर

एक्साइज इंस्पेक्टर केपी यादव ने कहा कि देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी का है। दुनिया में सबसे ज्यादा मैन पॉवर इंडिया के पास है, लेकिन एजूकेशन सिस्टम कुछ ऐसा है कि संस्थानों से पढ़े लिखे बेरोजगार निकल रहे हैं। भई इस बार वही लीडर सक्सेस करेगा, जो बेरोजगारों को लुभावने सपने दिखाएगा। प्रेजेंट में देखिए कितनी ही भर्तियां लटकी पड़ी हैं। इस पर बात न होकर सिर्फ राजनीति हो रही है। इस मुद्दे पर लीडर्स केवल वोट बैंक बना रहे हैं। किसी को इस बात का ध्यान नहीं है कि यूथ ही पॉलिटिक्स की दिशा तय करेगा।

स्वार्थ हित नहीं समाज हित

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए एमएन सिंह ने चिंता व्यक्त की कि सभी नेता स्वार्थ हित साधने में लगे हुए हैं। यहां तक कि एजूकेटेड लोगों में भी मोरल वैल्यूज की कमी सामने आ रही है। इसी का फायदा नेता उठा रहे हैं। कहीं जाति तो कहीं धर्म, तो कहीं एक कदम और आगे बढ़कर अब आरक्षण भी इस कड़ी में जुड़ गया है। इन मुद्दों पर लीडर्स अपनी राजनीति भी खूब चमका रहे हैं। ऐसे हालात में आम आदमी को चाहिए कि वह इलेक्शन के दौरान अपने निजी स्वार्थो को छोड़कर विकास की बात करे, लेकिन यहां तो पब्लिक केवल लीडर्स से मिल रहे फायदों को देखती है। इसी बाबत वह अपने वोट का प्रयोग भी करती है। बीच में ही उनकी बातों को काटते हुए इंस्पेक्टर राजेंद्र यादव ने कहा कि आज की एजूकेशन में नैतिक शिक्षा का पाठ ऑप्शनल हो गया है। आंकड़े देखें तो शायद ही दो चार स्टूडेंट इस क्लास में मिले।

सिक्योरिटी से कोई समझौता नहीं

अपने बाग की रखवाली राम भरोसे मत छोड़ो वरना ये वहशी दरिंदे कच्चा फल खा जाएंगे इस दमदार और सटीक शायरी अपनी बातों को रखते हुए क्लर्क इब्ने हसन ने कहा कि आम आदमी डरा हुआ है। वह जहां अपनी सुरक्षा देखता है वहीं पर वोट देता है। महिलाओं की सुरक्षा को ही लीजिए कितने वादे हुए और हो रहे हैं। नतीजा क्या निकला जीरो? दरअसल यह केवल वोट बैंक की राजनीति है। कोई समाज सुधारने के लिए राजनीति नहीं कर रहा। बात का समर्थन करते हुए इंस्पेक्टर प्रगल्भ लावनिया ने कहा कि लीडर्स को कॉलेजेज में सेल्फ डिफेंस की क्लासेज चलानी होगी। इसके लिए जरूरी है कि वे अनुशासन में रहे। भाई आखिरी में बस यही कहना है कि जब तक सब नहीं सुधरेंगे कुछ नहीं सुधरेगा।

पार्टी की संख्या निश्चित हो

ऑफिसर आनंद शंकर राय ने कहा कि देश में कई पॉलिटिकल पार्टीज बन गई है। बात चाहे राष्ट्रीय पार्टी की हो या फिर क्षेत्रीय पार्टी की। इस वजह से किसी की सरकार बहुमत में नहीं आ पाती है। इससे लीडर्स एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर मुक्ति पा जाते हैं। अगर नेशनल लेवल पर केवल दो से तीन पार्टीज रहेगी तो सबकी जवाबदेही तय होगी। उन्हें अपने कार्यो की समीक्षा देनी होगी। आरोप लगाने के बजाय विकास के कार्य होंगे। इस बात पर सभी ने हामी भरी और चर्चा को चाय की चुस्कियों के साथ खत्म किया।

नोटा बटन दबाओ, नेता को हटाओ

ना जाने कैसी हवा बह रही है कि नेता जीतने से पहले तो घर-घर जाकर हाथ पांव पकड़कर वोट मांगते हैं। पब्लिक को भगवान बनाकर खूब डींगें हांककर वोट बटोर लेते हैं, लेकिन नेता की पदवी मिलते ही जनता को भूल जाते हैं। पब्लिक को चाहिए कि वह निजी स्वार्थ को परे रखकर नेता का चुनाव करे। किसी भी परिस्थिति में लालच को खुद पर न हावी होने दे। विकास कार्यो पर ही वोट करें। करप्शन, अनइंप्लॉइमेंट प्रेजेंट टाइम में सबसे बड़े मुद्दे बनकर उभरे हैं। वैसे नेता को वोट ना दें जो अन्य हथकंडे अपनाते हैं। ऐसे नेता के लिए बस एक ही बटन दबाओ। नोटा का। यह एक बेहतर ऑप्शन मिला है जनता को। हमारा नेता ऐसा होना चाहिए जो आम आदमी के साथ अपने को जोड़कर देखे। सांसद और विधायक निधि का उपयोग विकास कार्यो पर करे। जीतने के बाद नेता पार्लियामेंट में जनता की परेशानियों को उठाए। राष्ट्रीय पार्टी दबंग को टिकट ना बांटकर साफ छवि और वेल एजूकेटेड लोगों को ही जनता के समक्ष प्रेजेंट करें।

आनंद शंकर राय,