- जंक्शन के प्लेटफार्म 1 पर लावारिस हालत में पड़ी रही वेंडर की लाश
- न आरपीएफ न जीआरपी ने ली सुध, ढाई घंटे बाद नींद से जागा रेलवे
BAREILLY: समय दोपहर फ् बजे, प्लेटफॉर्म नं क् पर पहुंचने का मेन गेट। दायीं ओर इंक्वायरी पर अपनी ट्रेन की जानकारी लेते पैसेंजर्स की भीड़। मेन गेट पार करते ही प्लेटफॉर्म क् पर पहुंच रही ट्रेन को पकड़ने को तैयार सैंकड़ों लोग। वहीं कुछ प्लेटफॉर्म के एक छोर से दूसरे छोर को दौड़ लगाते। इन सभी के बीच में मेन गेट के ठीक सामने एक अधेड़ उम्र के आदमी का बेजान शरीर पड़ा हुआ। कुछ पुलिस वाले बगल से गुजर गए, लेकिन नजर तक डालने की जरूरत भी न समझी। दो घंटे बीत गए उस बेजान शरीर को उसी तरह लावारिस हालत में फर्श पर पड़े हुए। वेडनसडे को ए कटेगरी वाले बरेली जंक्शन में इंडियन रेलवे की असलियत बयां करती यह तस्वीर उन खोखले दावों की कलई खोल रही थी जो पैसेंजर्स को बढ़े किराए का चाबुक मारकर अच्छे सफर का सब्ज दिखा रही।
सिर्फ मुनाफे के मायने
किराए में क्ब्.ख् फीसदी की बढ़ोतरी कर पैसेंजर्स की कमर तोड़ने वाली रेलवे को सिर्फ मुनाफे के मायने ही दिख रहे। उसे बढ़े किराए के बदले सुविधाएं देने से शायद सरोकार नहीं। वेडनसडे को जंक्शन पर चाय बेचने वाले अनिल नाम के एक अधेड़ की प्लेटफॉर्म क् पर तबियत बिगड़ने से मौत हो गई। अधिकारियों की मौजूदगी और आरपीएफ-जीआरपी के जवानों के गश्त के बावजूद वेंडर की लाश को ढाई घंटे तक नहीं हटाया गया। रेलवे के जिम्मेदार जंक्शन के मेन प्लेटफार्म क् के बीचोंबीच उस अधेड़ की मौत पर बने इस मजाक का हिस्सा बने रहे।
नहीं मिला समय पर इलाज
जंक्शन पर मौजूद अन्य वेंडर्स के मुताबिक दोपहर सवा दो बजे के करीब वेंडर अनिल की तबियत बिगड़ने लगी। तबियत खराब होने पर चक्कर खाकर वह वहीं मेन एंट्री के सामने ही गिर गया। इसकी सूचना मिलती ही एसएस ने रेलवे हॉस्पिटल के डॉक्टर वेद प्रकाश को मेमो भेज बुलवाया। लेकिन सोर्सेज का कहना है कि सूचना के बावजूद डेढ़ घंटे तक डॉक्टर मौके पर नहीं पहुंचे। इस दौरान ही बीमार वेंडर की मौत हो गई। शाम ब्.ख्भ् बजे जीआरपी को डॉक्टर का मेमो मिला जिसमें वेंडर की मौत होने की बात लिखी थी। इससे दो बातें भी साफ हो गई कि अगर उस वेंडर की जगह कोई बीमार पैसेंजर होता तो उसे भी रेलवे की ऐसी ही जानलेवा सुविधा मिलती। अगर नहीं तो शायद रेलवे की नजर में गरीब वेंडर की जिंदगी की कोई कीमत नहीं।