Ignore न करें behavioral change

न्यूरो साइकोलॉजिस्ट्स के अकॉर्डिंग गल्र्स के साथ इस तरह के क्राइम करने वालों के दिमाग में कुछ केमिकल्स के डिसबैलेंस होने के कारण ऐसी मेंटल कंडीशन डेवलप होती है। यह एक तरह का पर्सनैलिटी डिसऑर्डर होता है जिसे साइंस की लैंग्वेज में एएसपीडी (एंटी सोशल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर) कहते हैं। साइकाइट्रिस्ट बताते हैं कि इस डिसऑर्डर के सिम्पटम्स छोटी उम्र में ही दिखने लगते हैें। जरूरत है तो इसे सही समय पर पहचान कर इलाज की।

लास्ट डीकेड में बढ़े पेशेंट

एएसपीडी के पेशेंट्स को सामान्य लोगों से डिफरेंशिएट करना मुश्किल होता है। समय रहते इनकी पहचान कर ट्रीटमेंट किया जाए तो ऐसी घटनाओं को कंट्रोल किया जा सकता है। साइकाइट्रिस्ट नवीन सहाय के अकॉर्डिंग लास्ट डीकेड में पूरे देश में एंटी सोशल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के पेशेंट्स की संख्या काफी बढ़ गई है। इसके पीछे के कारण भी सोशल हैं। न्यूक्लियर फैमिली का बढ़ता कल्चर, पेरेंट्स की आपसी अनबन, घर में लड़ाई-झगड़े का माहौल बच्चों में इस डिसऑर्डर को और प्रमोट करता है। साइकोलॉजिस्ट राम सिंह कुशवाहा बताते हैं कि कई रिसर्च में यह पू्रव हो चुका है कि घर का खराब माहौल बच्चे में एएसपीडी को बढ़ावा देता है। इस तरह के क्राइम करने वालों में यह प्रॉब्लम छोटी उम्र से ही होती है। कई बार यह बॉडी में केमिकल डिसबैलेंस तो कई बार यह समस्या क्रोमोसोमल डिफेक्ट की वजह से भी हो सकती है।

न्यूरो हार्मोन्स का खेल

डॉक्टर्स के अकॉर्डिंग ब्रेन में रिलीज होने वाले न्यूरो हार्मोन्स फाइएक्सीटीन, सीरोटोनिन, डोपामिन और इपीनाफ्रीन की मात्रा बढऩे पर एएसपीडी होता है। वहीं कुछ केसेज में यह क्रोमोसोमल डिफेक्ट की वजह से भी होता है। इस डिसऑर्डर में पेशेंट अग्रेसिव हो जाता है। उसकी सोच भी काफी हिसंक और आपराधिक हो जाती है। इस मेंटल स्टेटस में वह कोई भी क्राइम करने में परहेज नहीं करता है।

 

शरारत समझ कर नजरअंदाज न करें

साइकोलॉजिस्ट डॉ। हेमा खन्ना बताती हैं कि एंटी सोशल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के पेशेंट के साथ यह प्रॉब्लम होती है कि उनके पेरेंट्स इस बात को समझ ही नहीं पाते कि उनके बच्चे में ऐसा कोई डिसऑर्डर है। इस डिसऑर्डर के सिम्पटम्स बच्चों की शुरुआती एज में ही दिखने लगते हैं लेकिन पेरेंट्स इसे उनकी शरारत समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। समय के साथ ही ये शरारतें गंभीर हो जाती हैं और बच्चे का ओरिएंटेशन एबनॉर्मल हो जाता है। ऐसे बच्चों की शुरू से ही किसी साइकोलॉजिस्ट से काउंसलिंग कराई जानी चाहिए।

हो सकता है ट्रीटमेंट

एएसपीडी के ट्रीटमेंट के लिए कई रिसर्च की जा चुकी हैं। साइकोलॉजिस्ट्स के अकॉर्डिंग बच्चों में इसके सिम्पटम्स को पहचान कर सही समय पर ट्रीटमेंट शुरू हो जाना चाहिए। पेशेंट की कंडीशन के अकॉर्डिंग उसका ट्रीटमेंट तीन डिफरेंट थेरेपीज से किया जाता है।

ग्रुप थेरेपी

इस थेरेपी में सेम ऐज ग्रुप के पेशेंट के डिफरेंट ग्रुप बना दिए जाते हैं। ये सोसाइटी वेलफेयर के कामों में हिस्सा लेते हैं। साथ ही मेडिटेशन या योगा भी करते हैं। ग्रुप डिस्कशन में अच्छे टॉपिक पर बात की जाती है। अच्छे कामों को करते-करते पेशेंट की थिकिंग और बिहेवियर में बदलाव आता है।

बिहेवियरल थेरेपी

इस थेरेपी में पेशेंट को सही-गलत की पहचान कराई जाती है। साइकोलॉजिस्ट काउंसलिंग के जरिए पेशेंट को एथिक्स का एहसास कराते हैं। इसके लिए उन्हें शॉर्ट मूवीज भी दिखाई जाती है। इस थेरेपी के बाद पेशेंट गिल्ट फील करता है और अपने बिहेवियर में चेंज लाता है। इस थेरेपी में पेशेंट को साइकोलॉजिस्ट की प्रॉपर सुपरविजन में रखा जाता है। अदर वाइज वह खुद को हार्म भी कर सकता है।

कॉग्नीटिव थेरेपी

इस थेरेपी में पेशेंट की थिंकिंग प्रोसेस को चेंज किया जाता है। कोशिश की जाती है कि उसकी सोच को बदला जाए। इसके लिए साइकोलॉजिस्ट काउंसलिंग का सहारा लेता है।

थेरेपी का हो चुका है यूज

आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने ऐसी ही थेरेपी का सहारा लेकर जेल में सजा काट रहे कैदियों की मनोवृत्ति बदलने की कोशिश की थी। इसके रिजल्ट्स काफी अच्छे रहे थे।

How to detect

वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इंटरनेशनल स्टेटिस्टीकल क्लासीफिकेशन ऑफ डिजीज एंड रिलेटेड हेल्थ प्रॉब्लम्स के 10वें एडीशन में एंटी सोशल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर से रिलेटेड डीटेल्ड रिपोर्ट पब्लिश की। इस रिपोर्ट के अकॉर्डिंग बच्चों में अगर इन सिम्पटम्स में से कोई भी तीन विजिबल हैं तो उसे एएसपीडी हो सकता है।

* दूसरों की फीलिंग्स के प्रति बेहद कठोर होना और उन्हें नोटिस न करना।

* सोशल नॉम्र्स, रूल्स और ऑब्लीगेशंस के लिए डिसरिगरेट रखना। शुरुआत से ही जिम्मेदारी का भाव न होना।

* रिलेशंस को इंपॉर्टेंस न देना।

* फ्रस्ट्रेशन के सिंपटम्स दिखना, छोटी बातों पर भी पैनिक होना।

* छोटी-मोटी बातों पर जल्दी अग्रेसिव हो जाना।

* पास्ट बैड एक्सपीरिएंसेज से लेसन न लेते हुए बार-बार वही काम करना।

* साथियों पर आरोप मढऩा। नॉर्मल सोशल बिहेवियर से डिफरेंट बिहेवियर रखना।

महिलाओं के साथ क्राइम का ग्राफ बढ़ रहा है। सबसे बड़ा कारण तेजी से हो रहा अर्बनाइजेशन है। इस प्रॉसेस में अनएंप्लॉयमेंट और फ्रस्ट्रेशन यूथ को अपराध की तरफ मोड़ देते हैं। इसके अतिरिक्त भारत का समाज शुरू से पुरुष प्रधान रहा है। मेल डॉमिनेटिंग नेचर के चलते महिलाएं डोमेस्टिक वॉयलेंस का शिकार होती हैं। घर के बाहर आए दिन छेड़छाड़ और रेप की घटनाएं अब साधारण हो चली है। महिलाओं को आज भी समाज में दोयम दर्जा प्राप्त है। फिलहाल इन घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है। क्योंकि महिला सुरक्षा के लिए जो कानून अस्तित्व में है वह ज्यादा प्रभावी नहीं है।

डॉ। एसडी ढौढियाल, सोशियोलॉजिस्ट

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये सही है कि ऐसी घटनाओं का ग्राफ काफी बढ़ चुका है। इसके पीछे हमारी सामाजिक व्यवस्था का भी कम दोष नहीं है। यहां विक्टिम्स को ही सबसे बड़ा अपराधी करार दे दिया जाता है। अक्सर ये मामले घर की चौखट के अंदर ही दब जाते हैं। अपराधी निडर खुलेआम घूमता रहता है। गिने चुने केसेज ही कोर्ट तक पहुंचते हैं। ऐसे केसेज को दबाया नहीं जाना चाहिए। इसके खिलाफ आवाज उठाए जाने की जरूरत है। मेरा मानना है कि ऐसी घटनाओं पर काबू पाने के लिए सख्त कानून    बनाए जाने चाहिए। रेपिस्ट के लिए फांसी से नीचे कोई भी सजा कम है।

-डॉ नवनीत अहूजा, सोशियोलॉजिस्ट

न्यूरो हार्मोंस का डिसऑर्डर यूथ के लिए बेहद घातक है। ये इसलिए भी है क्योंकि शुरुआत में पेरेंट्स समझ ही नहीं पाते हैं कि एक्चुअल प्रॉब्लम है क्या। समाज में लगातार हो रही घटनाओं के पीछे यह डिसऑर्डर बड़ा कारण है।

-डॉ। राम सिंह कुशवाहा, न्यूरोलॉजिस्ट

अगर स्टैंडर्ड से ज्यादा हार्मोन्स का रिसाव दिमाग में होता है, तो पेशेंट क्रिमिनल एक्टिविटी के लिए प्रेरित होता है। आज जरूरत है कि इसे पहचानकर सही समय पर इसका इलाज किया जाए।

-डॉ। संजीव गुप्ता,

न्यूरोलॉजिस्ट  

इस हार्मोनल डिसबैलेंस के ट्रीटमेंट के लिए कई थेरेपीज उपलब्ध हैं। अगर पेरेंट्स सही समय पर पेशेंट को साइकोलॉजिस्ट के पास ले आएं तो सिर्फ काउंसलिंग से भी इस प्रॉब्लम को ठीक किया जा सकता है।

-डॉ। हेमा खन्ना,

साइकोलॉजिस्ट