किराए पर ली थी साइकिल
मैंने बीएससी तक डेली साइक्लिंग की है। फ्रेंड्स के साथ कॉलेज साइकिल से ही जाता था। उस समय एक साइकिल पर दो लोग भी चलते थे। कॉलेज जाते समय जो साइकिल चलाता था, वह लौटते समय आराम से बैठकर आता था। क्योंकि उस समय दूसरा साथी साइकिल चलाता था। पूरे फ्रेंड्स में ऐसी ही सेटिंग चलती थी। उसके बाद एमबीबीएस करने के लिए नागपुर चला गया। वहां साइकिल लेकर नहीं गया पर वहां किराए पर साइकिल मिला करती थी। साइक्लिंग का क्रेज था, तो कई बार किराए पर साइकिल लेकर यूज किया करते थे। एमडी करने के लिए बीएचयू आया तो वहां उस समय साइक्लिंग का जबरदस्त क्रेज था। लोग बनारस से इलाहाबाद तक भी साइकिल से जाया करते थे। उस समय तकरीबन 140 किमी की यह दूरी जैसे पलों में कट जाती थी।
बिटिया की साइकिल थी
मेरी छोटी बेटी स्कूल जाने के लिए साइकिल यूज करती थी। घर में उसकी साइकिल रहती थी तो मैं भी उस पर ही हाथ आजमाने लगा। साइक्लिंग में इतना अच्छा था कि अब भी काफी देर तक साइकिल पर बैलेंस बना सकता हूं। अब तो मैंने नई साइकिल ले ली है। वास्तव में साइक्लिंग करके आप अच्छी-खासी कैलोरी बर्न कर सकते हैं। इससे खुद को फिट रखना बहुत आसान होता है। हेल्थ के लिहाज से रोज साइकिल चलाना फायदेमंद होता है। अब लोग रोड पर साइक्लिंग करने के बजाए जिम में साइक्लिंग करना ज्यादा पसंद करते हैं, जिनके पास जिम जाने का समय नहीं है वह तो घर पर ही एक्सरसाइजर करते हैं।
यहां इसका culture नहीं
मैंने यूरोप में देखा है साइक्लिंग के लिए अलग से रोड साइट ट्रैक बने होते हैं, साइक्लिंग के लिए तो अलग से रोड रूल्स भी हैं। वहां साइक्लिंग लोगों के लिए पैशन होती है। पर अफसोस हमारे यहां साइक्लिंग का कल्चर नहीं है। हम साइकिल लेकर निकलते हैं तो लोग टोकते हैं। इसलिए हमें दिन में साइकिल लेकर निकलने में प्रॉब्लम होती है। रात में कई बार टाइम न होने पर साइक्लिंग के रूटीन पर ब्रेक भी लगता है। पर इसके लिए जरूरी है कि साइक्लिंग को प्रमोट किया जाए। ताकि बरेलियंस साइक्लिंग करके अपनी सेहत बना सकें।