-सिरे से खत्म होनी चाहिए वोट के लिए आरक्षण की परंपरा

BARIELLY: लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां स्कूल-कॉलेज तक पहुंच गई है। शिक्षक यानी गुरु का जीवन में बहुत ही महत्व है। देश के फ्यूचर के निर्माण में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ट्यूजडे को बीसीबी में कुछ ऐसे ही शिक्षक राजनीति की दशा और दिशा तय करने में लगे रहे। उन्होंने राजनीतिक दलों की कार्यशैली से लेकर उनकी रूपरेखा तक पर सवाल उठाएं। कास्ट एंड क्रीड के नाम पर समाज को किसने कितना छला उस पर भी जोरदार बहस हुई।

राजनीति में पारदर्शिता की मांग

चुनावी डिस्कशन के दौरान आम आदमी की चर्चाओं में राजनीतिक पारदर्शिता और ईमानदारी की मांग स्पष्ट रूप से देखा-सुना जा सकता है। लोकसभा इलेक्शन के बाद केंद्र में किस पार्टी की गवर्नमेंट बननी चाहिए और वोटर्स किसके सिर जीत का सेहरा बांधेंगे। अलग-अलग मुद्दों में राजनीति को व्यवसायिक दायरे से बाहर निकालकर जनसेवा की भावना से स्थापित करने पर जोर दिया गया।

विकास मद के पैसे का हो सदुपयोग

अपने समकक्ष फैकल्टी मेंबर्स के साथ बैठे मैथ डिपार्टमेंट के हेड डॉ। स्वदेश सिंह ने चर्चा छेड़ी। अपनी शिकायती लहजे में कहा कि पॉलिटिक्स अब व्यवसाय हो गई है। राजनेता करोड़ों रुपए खर्च करके टिकट खरीदते हैं और इलेक्शन जीतने के बाद जनता के लिए विकास मद में जारी पैसे को व्यक्तिगत आय का स्रोत समझते हैं। यह परंपरा खत्म होनी चाहिए और हर राजनेता को सच्चे अर्थो में खुद को जनसेवक समझते हुए जन समस्याओं के प्रति समर्पण की भावना रखनी होगी। विकास मद में जारी होने वाले पैसे को विकास कार्यो में ही लगाया जाना चाहिए।

क्रिमिनलाइजेशन इन पॉलिटिक्स

स्वदेश सिंह के चंद शब्द कानों में पड़ते ही फिजिक्स डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो। डॉ। बीपी सिंह उत्साहित होकर पॉलिटिक्स में क्रिमिनलाइजेशन का पुरजोर विरोध किया। उनके विचार में साफ और स्वच्छ छवि के नेता को ही चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाना चाहिए। राजनीति में ऐसे लोगों का पदार्पण समय की मांग है।

आम लोगों के बीच से रिप्रजेंटेटिव

केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो। डॉ। अनुराग मोहन ने कहा कि देश की जनता उन साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को देश की बागडोर सौंपनी चाहिए लेकिन दुखद पहलू यह है कि आज राजनेताओं की संदिग्ध कार्यशैली और उनकी सामाजिक जवाबदेही में गिरावट आ गई है। लीडर्स गैरजिम्मेदार हो गए हैं। वे महंगाई, बेरोजगारी और भूखमरी जैसी समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं।

देश को निगल जाएगा आरक्षण

काफी देर चुप-चाप बहस सुन रहीं सैन्य अध्ययन विभाग की एसोसिएट प्रो। डा। नीरजा अस्थाना अचानक गंभीर मुद्रा में पहुंच गई और उन्होंने वोट के लिए आरक्षण की राजनीति का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरक्षण का राक्षस एक न एक दिन देश को निगल जाएगा। चुनावी स्टंट के तहत लोक-लुभावन वादे, योजना और विकास का सब्जबाग दिखाकर राजनेताओं द्वारा देश को लूटने से बाज आना चाहिए।

एजुकेटेड तबके का हुआ नैतिक अवमूल्यन

केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो। डा। एके अग्रवाल को चिंता सबसे अधिक इस बात की है कि एजुकेटेड लोगों में मोरल वैल्यूज की कमी सामने आ रही है। कहीं न कहीं राजनीति भीषण संक्रमण की दौर से गुजर रही है। उन्होंने कहा कि जनता की ओर से चुने गए जनप्रतिनिधियों की समय-समय समीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि इलेक्शन जीतने वाले जन प्रतिनिधियों को आम आदमी की समस्याओं को खुद के साथ जोड़कर देखना चाहिए।

चुनाव में मंथन करे जनता

रसायन शास्त्र विभाग की एसोसिएट प्रो। डा। पूनम गर्ग ने कहा कि राजनेता आम आदमी की कमजोरी को पहले से भांप लेते हैं। लोगों की भावनाओं को जांच-परखकर ही वे एजेंडा तैयार करते हैं। सबकुछ जानने-सुनने के बाद भी लोगों के पास बहुत कम विकल्प रह जाते हैं। इसलिए आम आदमी को भी अपना जनप्रतिनिधि चुनते समय उन तमाम लोक लुभावन वादों से दूर रहना चाहिए।

बुनियादी सुविधाओं का रखे ध्यान

बॉटनी डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो। डा। आलोक खरे कहते हैं कि देश गरीबी, भुखमरी और महंगाई की मार से कराह रहा है। हमारा नेता वैसा हो जो जनता की उन बुनियादी समस्याओं को दूर करे। बच्चों के एडमिशन से लेकर बिजली, पानी, सड़क, गैस, डीजल, पेट्रोल तक लोगों की पहुंच आसान हो। महिलाएं घर से लेकर बाहर तक सुरक्षित हों। इसके लिए चुने गए राजनेताओं द्वारा पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन पर पूरा कंट्रोल रखना चाहिए।

बढ़े रोजगार के साधन

कम होते रोजगार के साधन को लेकर डिपार्टमेंट की हेड डॉ। पूर्णिमा अनिल काफी चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि एक सोची-समझी साजिश के तहत शिक्षा का अवमूल्यन कर दिया गया, जिससे युवाओं में भी राष्ट्रीयता की ऊर्जा कम होती जा रही है। छात्रसंघ के इलेक्शन में राजनेताओं की भागीदारी इस बात का गवाह है कि वोट के लिए समाज में दरार डालने वाले भ्रष्ट छवि वाले नेता यूनिवर्सिटी कॉलेजेज की गलियारों से राजनीतिक छवियों को चमकाना चाह रहे हैं।

नागरिकसुविधाओं के प्रति गंभीरता जरूरी

फिजिक्स डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो। डा। अविनाश अग्रवाल ने अपने अनुभव के आधार पर राजनेताओं को अपनी सुख-सुविधाओं को दरकिनार करने का सुझाव दिया। जबतक सही मायने में एक नेता आम आदमी की भावनाओं, आवश्यकताओं के प्रति गंभीर नहीं होगा, विकास की कल्पना भी बेकार है। जाति, मजहब की सोच से हटकर एकसमान विकास की नींव डालकर लोकतंत्र की जड़ को मजबूती दी जा सकती है।

समय-समय पर हो मानीटरिंग

जूलॉजी डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रो। डॉ। राजेंद्र सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों की मॉनिटरिंग होनी चाहिए। चुनाव से पहले अगर किसी नेता ने दल बदला तो उसे उस साल के लिए टिकट दिए जाने पर रोक होनी चाहिए। क्योंकि कुछ राजनीतिक दलें और उसके राजनेता राजनीति को ही बिजनेस समझ लिए हैं।