-बरेली के साइकिलिस्ट ने बनाई अलग पहचान

बरेली। देश में कभी ब्रिटिशर्स की शान की सवारी रही साइकिल अपनी खूबियों से इतनी आम हुई कि महानगरों की सड़कों से गांव की पगडंडियों तक में इसका जलवा कायम रहा। नेचर से लेकर राइडर तक के लिए सेहतमंद रही यह सवारी समय के साथ बदली तो जरूर, पर इसकी स्पीड समय की स्पीड के साथ नहीं बढ़ी। इससे मोटर बाइक का चलन बढ़ा और देखते ही देखते इसने सड़कों पर साइकिल के मुकाम को अपने नाम कर लिया। ऐसा भी नहीं है कि मोटर बाइक के दौर में साइकिल का वजूद गुम हो गया हो। अपनी खूबियों से इसने अपना वजूद अब भी बनाए रखा है। शहरों में तो अब साइकिल जरूरत से ज्यादा शौक व सेहत का जरिया बन गई है।

पहले बनी लकड़ी की साइकिल

साइकिल की हिस्ट्री के मुताबिक इसकी शुरुआत वर्ष 1817 में जर्मनी से हुई। तब बैरन फ्रॉन डेविस ने लकड़ी की साइकिल तैयार की और इसका नाम पड़ा डेसियेन। उस सयम इसकी स्पीड 15 किलोमीटर प्रति घंटा थी। कुछ खामियां होने से यह साइकिल 1830 से 1842 तक ही वजूद में रही। इसके बाद साइकिल की तकनीकी में लगातार बदलाव होता रहा। इससे यह सवारी खास से आम होते चली गई।

घुम हो गई ट्रिन, टिन

साइकिल हर लिहाज से ईकोफ्रैंडली तैयार की गई। पूरी तरह मैकेनिज्म बेस्ड होने से यह सवारी एयर व नॉइज पॉल्यूशन फ्री रही। राइडिंग के दौरान अपना रास्ता साफ करने को इसमें हार्न की जगह घंटी लगाई गई। इस घंटी की ट्रिंन, ट्रिन.भी आज के मोटर वाहनों के कान फोड़ू हॉर्न की जगह कानों में मिठास घोलने वाली ही रही। अब सड़कों पर साइकिल का चलन कम होने से इसकी घंटी की मिठास भरी ट्रिन,ट्रिन। गायब हो गई है।

साइकिलिस्ट बने बरेली की शान

सुपर रेंडोनियर्स बने रविन्द्र सिंह

साइकिलिंग में बरेली की पहचान बने रविन्द्र सिंह ओबराय देश के अलग-अलग शहरों के अलावा नेपाल तक में राइडिंग कर चुके हैं। वह ओडेक्स इंडिया के परसियन क्लब के मेंबर हैं। शहर में उनके साइकिलिंग क्लब बरेली रेंडोनियर्स से 40 से अधिक लोग जुड़े हुए हैं। जिस परसियन क्लब के वह मेंबर हैं उसकी राइड टाइम बाउंड होती है। इसमें 200 किलोमीटर राइडिंग के लिए 12.30 घंटा, 300 किलोमीटर के लिए 20 घंटा,

400 किलोमीटर राइडिंग के लिए 27 घंटा और 600 किलोमीटर राइडिंग के लिए 40 घंटा समय निर्धारित है। रविन्द्र सिंह इन सभी राइडिंग में हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वह देश के साथ ही अपनी सेहत के लिए साइकिलिंग जरूर करें। इससे बच्चे भी साइकिलिंग करेंगे और सेहतमंद बनेंगे।

यंगेस्ट राइडर हैं साढ़े पांच साल के रणदीप

साइकिल राइडिंग में शहर के नन्हें राइडर रणदीप ने देश में ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल स्तर पर अपनी पहचान कायम की है। मात्र साढ़े पांच साल की उम्र में यह राइडर इंटरनेशनल बुक रिकार्ड की ओर से यंगेस्ट राइडर का खिताब हासिल कर चुका है। यह खिताब रणदीप को 3.16 घंटे में 44 किलोमीटर की साइकिलिंग से हासिल हुआ। रणदीप के पिता अश्वनी कुमार ने बताया कि उसने यह राइड उनके साथ बरेली से आटामांडा और वहां से बरेली तक की। इस राइडिंग की जानकारी जब उन्होंने अपने क्लब को दी तो क्लब ने इसे रिकार्ड बताया। इसके बाद रणदीप की राइडिंग के सभी एविडेंस व‌र्ल्ड रिकार्ड के लिए इंटरनेशनल बुक रिकार्ड को भेजे गए। वहां से रणदीप को मेडल व सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ है। इसी एजेंसी ने रणदीप को यंगेस्ट बाइसाइकिल राइडर का खिताब दिया है। इतनी कम उम्र में रणदीप अपने पिता के साथ हर रोज 15 से 20 किलोमीटर साइकिलिंग करते हैं।