वियोग में जान दे देता है सारस

सारस लोगों को अपने बेटर हाफ के प्रति फेदफुल रहने से लेकर बच्चों के परफेक्ट पालन-पोषण तक की तालीम देता है। एक्सपट्र्स की मानें तो सारस की सबसे खास बात यह है कि ये अपने पूरे जीवन में एक जोड़ा बनाता है। इनमें से किसी एक की मौत हो जाए तो दूसरा भी अपने प्राण त्याग देता है। मेल और फीमेल सारस दोनों मिलकर अपने पंखों से अंडे सेते हैं और पालन करते हैं। सारस को इन्हीं खासियतों के कारण सोशल बर्ड भी कहा जाता है।

रामायण में भी इनका जिक्र

सारस का रामायण में प्यार के सिम्बल के रूप में वर्णन है। उसमें इसे क्रोंच पक्षी बताया गया है। सारस हमेशा झुंड में रहते हैं और दलदली भूमि, बाढ़ वाले स्थान, तालाब, झील और खेत में रहते हैं। यह पूरी जिंदगी एक ही जीवनसाथी के साथ बिताता है। उसके न रहने पर वियोग में जान दे देता है। इस बारे में दिल्ली के वन्य जीव वैज्ञानिक फैयाज खुदसर ने बताया कि सारस के लाइफ पार्टनर की अगर मौत हो जाए तो वह खाना-पीना छोड़ देता है। इस वजह से उसकी मौत हो जाती है। अब इनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। वन्य जीव वैज्ञानिक रजत भार्गव का कहना है कि सारस को डॉग्स से खतरा रहता है। इसके अलावा जलाशय घटने और हाईटेंशन वायर से सारस की संख्या कम होती जा रही है।

नवविवाहितों को कराते हैं दर्शन

सारस की वफादारी की वजह से ही कई एरियाज में न्यूली मैरिड कपल्स को इनके दर्शन कराए जाते हैं। इसे शुभ माना जाता है। कपल्स को खेतों में या जलाशयों में रहने वाले सारस के दर्शन कराए जाते हैं, ताकि उनकी सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी की क्वालिटी कपल्स में भी आ जाए।

संरक्षण की कवायद शुरू

रजत भार्गव ने बताया कि एनवायरमेंट के लिए सारस काफी जरूरी है इसलिए कई एनजीओ के साथ सरकारी संस्था भी सारस के संरक्षण में आगे आ गए हैं। सारस जलाशयों के किनारे मौजूद झाडिय़ों में अंडे देते हैं। डॉग्स की संख्या बढऩे से अंडे बच ही नहीं पाते। वहीं जलाशयों की कमी होने से उन्हें निवास स्थान नहीं मिल पा रहा है।

धान की खेती के लिए फायदेमंद

फैयाज खुदसर बताते हैं कि सारस इको सिस्टम के बैलेंस में इंपॉर्टेंट रोल प्ले करते हैं। सारस मेनली धान के खेत में रहते हैं। ये धान में लगने वाले कीड़े तथा घोंघे को खाकर उसे सुरक्षित रखते हैं। बहुत से किसानों को यह गलतफहमी है कि धान की फसल को ये नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन कई रिसर्च के दौरान साबित हो चुका है कि इनसे धान की फसल को कोई नुकसान नहीं होता। फैयाज खुदसर ने बताया कि अगर इको सिस्टम में इनकी संख्या कम या विलुप्त हो जाती है तो सबसे पहले धान की खेती को भारी नुकसान होगा। इससे पूरा फूड सिस्टम प्रभावित हो जाएगा।

करीब 10 हजार की तादाद बची

वन्य जीव वैज्ञानिक रजत भार्गव का कहना है कि सारस भारतीय मूल का है लेकिन संकट की घड़ी में आ गया है। इंडिया में इनकी संख्या करीब 8-10 हजार ही बची है। वहीं उत्तर प्रदेश में इसकी संख्या महज 3-4 हजार ही है। फीमेल सारस एक बार में 2-3 अंडे देती है। अंडों से बच्चों को बाहर आने में 25 दिन का समय लगता है। मेल और फीमेल दोनों ही मिलकर अपने पंखों से अंडे को सेते हैं।

बरेली में पाए गए 108

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से मिली जानकारी के अनुसार, 2010 में अलग-अलग जगह सारस की संख्या काफी कम हो गई है-

शहर                        सारस

बरेली                       108

कानपुर देहात वन प्रभाग   580

शाहजहांपुर वन प्रभाग      482

पीलीभीत वन प्रभाग          77

मुरादाबाद                     69

आगरा                        38

बदायूं                         30

मेरठ                          15

गौतमबुद्धनगर                  2

वन्य जीव वैज्ञानिक फैयाज खुदसर ने बताया कि बरेली में सारस की संख्या ठीक-ठाक है। अगर संरक्षण जारी रहा हतो इनकी तादाद और बढ़ेगी।

Report by: Gupteshwar Kumar