Prescription के बदले लेते हैं पैसा

हर दिन बरेली के सैकड़ों लोग डॉक्टर्स के पास सेहत की बेहतरी के लिए पहुंचते है। मगर ज्यादा मुनाफे के खेल में बहुत से डॉक्टर्स ने चिकित्सीय सुविधाओं को कारोबार का जरिया बना लिया है। आलम ये है रेफर होने वाली मेडिसिन के एक रुपए में आठ चवन्नी बनाई जा रही है। सारी कारगुजारी आंखों के सामने चलती है मगर पेशेंंट और तीमारदार को खबर तक नहीं लगती।

 

हर रोज 3 करोड़ का turnover  

सिटी में करीब 175 हॉस्पिटल्स और नर्सिंग होम चल रहे हैं। इसके साथ बहुत से डॉक्टर्स की खुद की क्लीनिक  भी है। आईएमए के अनुसार, सिटी में करीब 650 रजिस्टर्ड डॉक्टर्स हैं। आकड़ों के मुताबिक, सिटी में डेली मेडिसिन का औसत टर्नओवर 3 करोड़ रुपए का है। सिटी के एक सीनियर फिजीशियन ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि करंट टाइम पर डॉक्टर्स का कमीशन मेडिसिन मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर उसकी सेल तक फिक्स है। अगर हम मोटे तौर पर कमाई की बात करें तो पेशेंट को मेडिसिन रेफर करने में कई कंपनियां डॉक्टर की जेब में उसका 30 से 50 परसेंट तक हिस्सा पहुंचा देती हैं।

हर दिन पौने दो करोड़ कमीशन

मेडिकल हब बन चुके बरेली में डॉक्टर्स की शह पर फल-फूल रहे कमीशन का खेल करोड़ों का है। अकेले मेडिसिन मार्केट का सिटी में रोजाना का टर्नओवर 3 करोड़ रुपऐ के पार का है। अगर कमीशन लेने वाले डॉक्टर्स की बात करें तो 1.75 करोड़ रुपए कमीशन के रूप में उनकी जेबों पर गिरते हैं।

Launching से ही खेल start  

बरेली मंडल में हर मंथ 3 से 4 नई मेडिसिन कंपनीज मार्केट में उतरती हैं। सोर्सेज के मुताबिक, सारा खेल कंपनी की लांचिंग के साथ ही शुरू हो जाता है। कंपनी के एजेंट डॉक्टर्स से पहले ही कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं कि वह उनकी कंपनी की ही मेडिसिन रेफर करेंगे। यही नहीं कंपनियां डॉक्टर्स के जिम्मे भी अपना टारगेट सौंपती हैं। इसके बदले कंपनियां डॉक्टर्स को भारी-भरकम रकम, विदेश यात्रा से लेकर महंगे गिफ्ट के साथ कई और लुभावने ऑफर प्रोवाइड करती है।  

10 रुपए की medicine 136 में

अब अगर मेडिसिन के रेट पर बात करें तो इसका खेल खासा चौंकाने वाला है। दरअसल, डॉक्टर्स को प्रोवाइड होने वाले महंगे गिफ्ट आम कंज्यूमर्स की ही जेब से निकाले जाते हैं। मसलन अगर किसी दवा की मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट 10 रुपए पड़ती है। सीएनएफ के पास आने वाले इनवायस में इसकी कीमत 100 रुपए दिखाई जाती है। मतलब गोदाम में ही 90 रुपऐ का मुनाफा। इस पर 2 से 3 परसेंट का सीएनएफ का मार्जिन होता है। इसके बाद मेडिसिन आती है सुपर डिस्ट्रिब्यूटर के पास, जिसका मार्जिन 5 परसेंट का होता है। यहां से स्टोरेज एजेंसी के 8 परसेंट के मार्जिन के साथ मेडिसिन रिटेलर के पास पहुंचती है। रिटेलर का मार्जिन होता है 20 परसेंट। अब अगर ओपन मार्केट में दवा की कीमत आंके तो 10 रुपए की मेडिसिन मार्केट में आती है 136 रुपए की। जिसे कंज्यूमर्स परचेज करते हैं।  

 

मार तो हमेशा बीमारों पर ही

अक्सर ऐसा होता होगा कि आप डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते होंगे मगर उसकी लिखी मेडिसिन आपको उसकी बताई शॉप के अलावा कही नहीं उपलब्ध होती होगी। इसमें सबसे ज्यादा तो वह पेशेंट परेशान होते है जो इंटर डिस्ट्रिक्ट इलाज करवाते हैं। क्योंकि उन्हें दवाइयों के लिए डॉक्टर की ही बताए मेडिकल स्टोर पर जाना पड़ता है। असल में इसका पूरा रिलेशन कमीशन से ही होता है, वहां से बिकने वाली मेडिसिन में से डॉक्टर्स का 30 से 50 परसेंट तक कमीशन फिक्स होता है।

DPCO के दायरे में 74 दवाएं

फार्मास्यूटिकल एंड कैमिकल मिनिस्ट्री मेडिसिन की प्राइस पर कंट्रोल रखती है। ड्रग एंड प्राइज कंट्रोल आर्डर 1995 के तहत वर्तमान में 74 मेडिसिन आती है। वहीं मिनिस्ट्री जल्द ही 374 मेडिसिन डीपीसीओ के तहत लाने की तैयारी कर रही है। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि बाकी कि मेडिसिन के प्राइज पर आउट ऑफ कंट्रोल है। जिसका खामियाजा कंज्यूमर उठाता है।

बड़ी companies का खेल

एक बड़ी कंपनी के मार्केटिंग हेड ने नाम न छापने की कंडीशन पर बताया कि मेडिसिन मैन्यूफेक्चरिंग कंपनीज को हम तीन कैटेगरी में रखते है। ए,बी और सी ग्रेड। अब अगर मार्जिन के खेल की बात की जाए तो ए और बी ग्रेड की कंपनीज डॉक्टर्स को एसी, टीवी जैसे महंगे गिफ्ट और फॉरेन टूअर इंस्पॉसंर करती है। उन्हें मेडिसिन में कमीशन नहीं दिया जाता है। ज्यादातर उनके सेमिनार या फैमली टूअर को इंस्पॉसर कर दिया जाता है। जिसके बाद डॉक्टर पर्टिकूलर मेडिसिन रिक्मेंड करते हैं। ये मल्टी नेशनल कंपनीज और बिग हाउसेज में धड़ल्ले से हो रहा है।

छोटी companies करती हैं डॉक्टर्स को target  

ग्रेड सी कंपनीज सबसे पहले सिटी के कुछ प्रभुत्व वाले डॉक्टर्स को टारगेट करती हैं। खासकर इनमें गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स होते हैं। ये कंपनीज रिटेलर को मार्जिन नहीं देती हैं बल्कि मेजर मार्जिन डॉक्टर के खाते में जाता है। अगर एक ए या बी ग्रेड कंपनी एक मेडिसिन मार्केट में दे रही है जो डिस्ट्रिब्यूटर एंड पर 150 रुपए की है और एमआरपी 200 रुपए है, वहीं सी ग्रेड कंपनी मेडिसिन की कॉस्ट 40 रुपए दिखाकर 160 रुपए का मार्जिन डॉक्टर की जेब में देती है। इस वक्त सबसे ज्यादा गायनी की हार्मोनल मेडिसिन और मेडिकल इक्विमेंट में हो रहा है।

मेडिसिन की एक्चुअल कॉस्ट तो बहुत कम होती है। कमीशनबाजी के चक्कर में कॉस्ट कई गुना बढ़ जाती है। जिसका खामियाजा आखिरकार कंज्यूमर झेलता है। हम इसी मुद्दे पर सिटी में पिछले 20 साल से अलख जगा रहे है।

-देवेंद्र डंग, स्वास्थ्य चेतना फाउंडेशन

ये गंभीर मामला है। कंज्यूमर हर तरफ से महंगाई की मार झेल रहा है। ज्यादा उचित रहेगा कि गवर्नमेंट को इस एरिया में हार्ड स्टेप ले। मेडिसिन कंपनीज की मनमानी पर लगाम कसी जा सके।

-मोहनलाल आहूजा, रेजिडेंट

इस मामलें में गवर्नमेंट को सामने आना चाहिए। कंपनीज पर शिकंजा कसना चाहिए। वैसे प्राइज कंट्रोल एक्ट के तहत कई मेडिसिन के रेट कंट्रोल होते है मगर इसको ज्यादा व्यापक करने की जरूरत है।  

-आशुतोष, रेजिडेंट

कंज्यूमर्स को होने वाली प्राब्लम्स के लिए कई स्टेप पर फेरबदल जरूरी है। मेडिसिन एक्ट में संशोधन होने चाहिए। ताकि आम आदमी को सस्ता इलाज मुहैया हो सके।

-अभिनेंद्र सिंह, रेजिडेंट

गवर्नमेंट को पूरी तरह से मेडिसिन मार्केट अपने कंट्रोल में लेना चाहिए। हालांकि अभी भी कुछ मेडिसिन प्राइज कंट्रोल में है। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि डॉक्टर्स के लेवल पर कमीशनबाजी न हो सके।

-अनुराग, रेजिडेंट

ये पूरी तरह से गलत बात है। अब वैराइटी ऑफ डिजीज बढ़ रही है। डॉक्टर की प्राथमिकता पेशेंट की डिजीज ठीक करना होता है। किसी पेशेंट को सीवियर इंफेक्शन है तो उसकी सेहत के साथ डॉक्टर रिस्क नहीं ले सकता। पेशेंट की प्रॉब्लम ठीक करने के लिए डॉक्टर अच्छी से अच्छी मेडिसिन प्रिसक्राइब करता है। नंबर ऑफ टेस्ट अब बढ़ गए हैं।

-डॉ अमित अग्रवाल, प्रेसिडेंट आइएमए

Report by: Abhishek Mishra