- दलाल के नाम ही बुक रहता है माल और ट्रेन का एसएलआर
- करते हैं खास मार्का का इस्तेमाल जिससे पकड़ में न आए माल
BAREILLY:
टैक्स चोरी कर डुप्लीकेट माल शहर में खपाने का धंधा इन दिनों जोरों पर हैं। वाणिज्य कर विभाग की ओर से पकड़े गए माल इस बात की बखूबी पुष्टि कर रहे हैं। शहर के कई व्यापारी यह सारा खेल दलालों के सहयोग रहे हैं रहे हैं। ताकि, माल पकडे़ जाने के बाद भी उनका नाम उजागर न हो। इस काम के बदले दलालों को माल के हिसाब से व्यापारी पेमेंट भी करते हैं।
दलालों के माध्यम से मंगाते हैं माल
व्यापारी दलालों के माध्यम ये ज्यादातर माल डायरेक्ट बरेली से होकर गुजरने वाली ट्रेनों से ही मंगाते हैं। ताकि, कहीं बीच में माल उतारने और चढ़ाने का झंझट न रहे हैं। माल आसानी से संबंधित जगह पर पहुंच जाए। अधिकारियों ने बताया कि यह माल दलालों के नाम ही बुक रहता हैं। ट्रेन के एसएलआर भी उन्हीं के नाम पर बुक होता हैं। पार्सल के नग पर एक खास मार्का होता है। जो दलाल, संबंधित व्यापारी और ठेला चालकों हो ही पता होता हैं। ठेला वाले बिना किसी नाम के सिर्फ मार्का देखकर ही माल गंतव्य स्थान पर पहुंचा देते हैं। माल पकडे़ जाने पर व्यापारी की जगह दलाल ही माल छुड़ाने भी आते हैं।
अधिकतर माल होता हैं डुप्लीकेट
ट्रेनों से शहर आने वाले ज्यादातर माल डुप्लीकेट की मंगाए जाते हैं। इनमें सबसे अधिक होजरी, किराना, जूता-चप्पल के सामान होता हैं। इसके अलावा ड्राइफ्रूट्स व इलेक्ट्रिकल गुड्स भी होते हैं। यह सारा माल दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और गुजरात जैसे शहरों से मंगाए जाते हैं। बाहर से मंगाए जाने माल का न तो बिल होता है और न ही फॉर्म-38, बिल्टी और चालान ही होता हैं।
3 लाख से अधिक की टैक्स चोरी
वाणिज्य कर टीम छापेमारी कर हर महीने 3 लाख रूपए से अधिक का टैक्स चोरी का माल पकड़ रही है। ट्रेन से उतरने के बाद यह माल माल गोदाम रोड से होकर ही शहर के विभिन्न मार्केट में जाते हैं। ट्रेन के आउटर पर रुकने पर टैक्स चोरी का माल उतारने की बजाय दलाल जंक्शन पर ही माल उतारना मुनासिब समझते हैं। क्योंकि, यहां पर नंबर एक का भी माल उतरता है। जिसके कारण उन्हें आसानी से पकड़ पाना मुश्किल होता हैं।
हर महीने 3 लाख से अधिक टैक्स चोरी के माल सिर्फ ट्रेन के जरिए आने वाले पकड़े जाते हैं। ट्रेन से ज्यादातर डुप्लीकेट माल ही आते हैं। टैक्स चोरी करने वालों पर हमारी खास नजर हैं।
सीके पटेल, एडिशनल कमिश्नर, ग्रेड वन, वाणिज्य कर विभाग