- रंगमंच की विरासत को संजोने में युवाओं का रूझान हो रहा कम

BAREILLY:

'शहर ए बरेली, जो कला और सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में तमाम कल्चरल एक्टिविटीज के बावजूद रंगमंच का दायरा सिमट रहा है। कॅरियर की संभावनाओं के बावजूद युवाओं में थिएटर के प्रति अरुचि पनपती जा रही है। यही वजह है कि कभी क्भ्0 समितियां जहां रंगमंच से जुड़ी थीं, उनकी संख्या गिनती भर की रह गई है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले वक्त में बरेली का रंगमंच केवल किताबों के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा.' यह मानना है शहर के रंगमंच से जुड़े पुरोधाओं और कलाकारों का। आखिर क्या वजहें हैं, जो बरेली के रंगमंच को तमाम सुविधाओं के बावजूद भी पीछे धकेल रही हैं।

कहीं कथानक न बन जाए रंगमंच

करीब म् दशक पहले पं। राधेश्याम कथावाचक ने पर्सियन थिएटर के तर्ज पर बरेली में हिन्दी रंगमंच की नींव डाली थी। पं। राधेश्याम द्वारा लिखित रामायण नाटक का मंचन उस दौर में देश के मंच पर अमिट छाप बनाता जा रहा था। थिएटर जगत से जुड़ी तमाम प्रसिद्ध हस्तियों का बरेली में जमावड़ा रहता था। शौकिया कलाकारों की करीब क्भ्0 संस्थाओं से शहर गुलजार था। तकरीबन हर घर में थिएटर की धमक थी। लेकिन धीरे-धीरे रंगमंच से 'गंभीरता' का पुट खत्म होने से दर्शकों ने रंगमंच से किनारा करना शुरु कर दिया। रंगकर्मियों के मुताबिक थिएटर का प्रोफेशनलिज्म में तब्दील न होने से बरेली का रंगमंच 'कथानक' बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है।

सहेज रहे विरासत

रंगमंच की विरासत को संजोए रखने में कई समितियों और संस्थाओं ने हाथ बढ़ाया। करीब ख्0 वर्षो तक सुनसान पड़े रंगमंच के मंच को दयादृष्टि रंगविनायक रंगमंडल ने सजाने का काम किया है। विंडरमेयर थिएटर फेस्ट ने शहर में एक बार फिर युवाओं में रंगमंच के प्रति लगाव, रंगमंच के पुरोधाओं से मंच को गुलजार करने का काम कर रहा है। वहीं, दूसरी ओर ऑल इंडिया कल्चरल एसोसिएशन द्वारा इंटरनेशनल नाट्य प्रतियोगिताओं के आयोजन से देश और विदेश के प्रसिद्ध थिएटर्स का शहर से परिचय हुआ। इसके अलावा रंगालय द्वारा भी रंगमंच को सहेजने का प्रयास कर रहा है। इसके अलावा अन्य छोटी-छोटी समितियों के प्रयास भी सराहनीय हैं।

युवाओं को संदेश

रंगकर्मियों के अनुसार कला संस्कृति को संजोने की जिम्मेदारी युवाओं पर होती है। लेकिन बरेली के रंगमंच का प्रोफेशनलिज्म में न ढल पाने से युवाओं का मोहभंग हुआ है। इसके अलावा युवाओं में द्रुत गति से सफलता की सीढि़यां चढ़ पाने का ख्वाब भी थिएटर से दूर करता है। रंगकर्मी शैलेंद्र ने बताया कि थिएटर में अपार संभावनाएं हैं। लेकिन इसके लिए समय, अनुशासन, समर्पण, टीम के साथ तालमेल और धैर्य होना बहुत जरूरी है। जिसका अभाव युवाओं में झलकता है। दूसरी ओर युवाओं के मुताबिक शहर में थिएटर वर्कशॉप अथवा नए कलाकारों को मौका न मिलना थिएटर से युवाओं का मोहभंग का कारण है।

रंगमंच से युवाओं का मोहभंग हुआ है। लेकिन विरासत को जीवित रखने के लिए संस्थाओं की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। जो सराहनीय है।

अम्बुज कुकरेती, प्ले रायटर और डायरेक्टर

रंगमंच से युवाओं को जोड़े रखने का प्रयास काफी हद तक सार्थक रहा है। लेकिन अभी थिएटर के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है।

डॉ। बृजेश्वर सिंह, थिएटर फाउंडर

अपार संभावनाओं के बाद भी यूथ का रंगमंच के प्रति लगाव कम है। यूथ को रंगमंच की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए आगे आना चाहिए।

दानिश, थिएटर एक्टर