50 स्कूलों का किया जाएगा चयन

पौधे लगाएंगे बच्चे, उन्हें देखरेख के प्रति जिम्मेदार बनाया जाएगा

BAREILLY:

नन्हे-मुन्ने बच्चे पौधों से दोस्ती करना सीखेंगे। यानि कि, स्कूलों में बच्चों को अब सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं सिखाया जाएगा। बल्कि वह प्रैक्टिकली रूबरू होंगे। इसके लिए मंडे से 'चाइल्ड फॉरेस्ट प्रोग्राम' शुरू होने जा रहा है। जिसके तहत बच्चों को उनके आसपास के पर्यावरण से वाकिफ कराया जाएगा।

क्या है बाल वन स्कूल

कक्षा म् से 9 तक के छात्रों को इस योजना के लिए चुना जायेगा। हर स्कूल में लगभग 80 बच्चों का एक बाल वन समूह बनाया जाएगा। बच्चों से स्कूल प्रांगण में पौधे लगवाये जाएंगे और हर बच्चे को अगले दो साल के लिए अपने लगाये पौधे की पूरी देखभाल करनी होगी। योजना के पीछे उद्देश्य है कि छोटी उम्र के बच्चों में पौधों और पर्यावरण को लेकर जिम्मेदारी का भाव पैदा कराया जाये। बच्चो के लगाए गए पौधों का वन बनाने के लिए बाल समूह के साथ ही स्कूल के दो टीचरों की बाल वन टीम बनाई जायेगी। जो हर पौधे की वृद्धि को मॉनिटर करेगी। जिन स्कूलों में ये प्रोग्राम लागू होगा। उसे बाल वन स्कूल नाम दिया जायेगा।

बता दें कि योजना के लिए चुने जाने वाले पचास स्कूलों में रूरल एरिया के जूनियर हाईस्कूल, क्8 कस्तूरबा गांधी आवासीय छात्रा विद्यालय व जवाहर नवोदय विद्यालय और आश्रम पद्धति स्कूलों को प्राथमिकता दी जायेगी।

स्थानीय पेड़ों को किया जायेगा प्रमोट

स्कूलों में बाल वन बनवाने की इस योजना में स्थानीय पेड़ को अहमियत दी जायेगी। जिससे खत्म होती जा रही इन महत्वपूर्ण पेड़ों की प्रजातियों को संरक्षित किया जा सके। इसके लिए बच्चे को स्कूलों में महुआ, कचनार, अमलतास, अर्जुन, कदम, बेल, सागौन आदि के पौधे लगाने के लिए उपलब्ध कराये जाएंगे।

पेड़ों से आत्मीय रिश्ता बनाने पर होगा जोर

बाल वन कार्यक्रम के लिए सीइई जो एक्शन प्लान प्रपोज किया है। उसके हिसाब से बाल वन स्कूलों में ओरिएंटेशन, ट्री प्लांटेशन, टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम, नेचर टूर व एंवायरंमेंट अवेयरनेस कार्यक्रम कराये जाएंगे। ओरिएंटेशन के जरिए बच्चों को प्लांटिंग की सांइटिफिक तरीके, अपने लगाए पौधे को कैसे हरा-भरा रखे, हर महीनें पौधे की ग्रोथ को रजिस्टर करना आदि की ट्रेनिंग दी जायेंगी। हर पौधे की मानिटरिंग की जाएंगी और कोई पौधा खराब हो जाता है तो उस प्लांट को रिप्लेस किया जायेगा। बच्चे और उसके लगाए पौधे के बीच ऐसा आत्मीय संबंध बनाने की कोशिश की जायेगी जिससे कि बच्चा इन दो सालों में स्कूल छोड़ भी दे तो उस पेड़ के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे। अपने आस-पड़ोस में भी पौधा लगाये। इसके अलावा टीचर ट्रेनिंग भी डिजायन की गई है जिनमें किसी भी विषय को पर्यावरण से लिंक करके पढ़ाया जा सके। इसके लिए कुछ खास बुक्स भी स्कूलों को प्रोवाइड होंगी।

योजना के लिए मेरे पास मुख्य वन संरक्षक का क्7 नवंबर को लेटर आया। जिसमें सीईई व शिक्षा विभाग की मदद से योजना के क्रियांवयन को मॉनीटर करने की जिम्मेदारी वन प्रभाग को दी है। दो साल की योजना के लिए एनजीओ ने चार साल का एक्शन प्लान दिया है। जल्द योजना का शुभारम्भ कर दिया जाएगा।

- धर्म सिंह, डिस्ट्रक्ट फारेस्ट आफिसर