- जनवरी से अब तक 18 नवजातों को 4डी पैरामीटर्स से ग्रसित बीमारियों के चलते किया जा चुका हायर सेंटर रेफर
- डायरिया, डिमेन्शिया जन्मजात होंठ फटा होना, सीवियर स्किन प्रॉब्लम समेत अन्य बीमारियों को 4डी कैटेगरी में रखा गया है
बरेली : जिले में नौनिहालों पर 4डी को खतरा मंडरा रहा है। इस कैटेगरी में वह बच्चे आते हैं जो कि गंभीर बीमारियों से ग्रसित होते हैं। मजबूरन उन्हें हायर सेंटर रेफर किया जा रहा है। जनवरी से अब तक जिले में 18 बच्चों को 4डी कैटेगरी के अंतर्गत हायर सेंटर रेफर किया गया है।
4डी में आने वाली बीमारियां
इस कैटेगरी में चार ऐसे ही बीमारियों को रखा गया है जोकि नौनिहालों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। 4डी में आने वाली कैटेगरी है डायरिया, डिमेन्शिया, डर्मेटाइटिस और डेथ। बच्चे को चेकअप करने के बाद जब यहां के हॉस्पिटल में मिल रहे इलाज से उसे फायदा नहीं पहुंचता है फिर उसे कैटेगरी के आधार पर हायर सेंटर रेफर किया जाता है।
ऐसे किया जाता है कैटेराइज्ड
1. डायरिया : गर्मी या फिर ठंड दोनों ही मौसम में डायरिया के तमाम केस जिला अस्पताल के बच्चा वार्ड में एडमिट होते हैं, वहीं ऐसे में डायरिया ग्रसित बच्चे जिनके परिजन समय पर बच्चे को एडमिट नहीं कराते हैं जांच के दौरान बच्चे की हालत गंभीर होने पर उसे 1 कैटेगरी यानि डायरिया में रखकर हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है।
2. डिमेन्शिया : इस कैटेगरी में ऐसे बच्चों को रखा जाता है जो कि जन्म के बाद ही मानसिक रुप से कमजोर होते हैं, लंबे इलाज के बाद भी जब फायदा नहीं होता है तो उन्हें डिमेन्शिया कैटेगरी में रखकर रेफर किया जाता है।
3. डर्मेटाइटिस : इसमें बच्चे के पैदा होने के बाद सीवियर स्किन इंफेक्शन की दिक्कत होती है, यहां सरकारी स्किन स्पेशलिस्ट का टोटा कम होने पर बच्चों को हायर सेंटर भेजा गया है।
4. डेथ : इस कैटेगरी में सबसे अधिक गंभीर हालत के बच्चों को रखा जाता है, इसमें कोई भी बीमारी हो सकती है जिसमें एडमिट के दौरान बच्चे की हालत काफी गंभीर पाई जाती है।
ये होता है फायदा
4डी कैटेगरी के अंतर्गत हायर सेंटर रेफर किए गए बच्चों को सेंटर पर फौरन एडमिट कर लिया जाता है। इसके लिए परिजनों को हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से 4डी कैटेगरी का कार्ड दिखाना होता है। वहीं फौरन इलाज भी शुरू कर दिया जाता है।
4डी कैटेगरी के अंतर्गत अब तक जिले में 18 बच्चों को हायर सेंटर रेफर किया गया है। कैटेराइज्ड होने के चलते समय से उनका इलाज शुरू हो जाता है।
पीएस आनंद, अपर शोध अधिकारी