बरेली(ब्यूरो)। एक्सीडेंट में पशुओं का रक्त बह जाने और पालतू पशुओं के बीमार होने पर रक्त की कमी से उनकी मृत्यु तक हो जाती है। पशु चिकित्सालयों में रक्त चढ़ाने के समुचित साधन हों तो कई पालतू पशुओं की जान बचाई जा सकती है। लेकिन पर्याप्त संसाधनों के अभाव में भी ऐसे पशुओं को फ्रेश ब्लड चढ़ाया जा सकता है। इस के लिए यह अनिवार्य है कि जिस पशु को ब्लड दिया जाना है, रक्त देने वाला पशु भी उस प्रजाति का ही होना चाहिए। फिलहाल पशुओं के बीमार होने पर जब रक्त की कमी हो जाती है तो उन्हें रक्त चढ़ाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि बरेली मंडल में पशुओं के लिए कोई ब्लड बैंक नहीं है। आईवीआरआई में भी ब्लड बैंक न होने की वजह से अभी रक्त की कमी होने पर उसे बहुत ज्यादा रक्त नहीं चढ़ाया जा सकता है, लेकिन विषम परिस्थितियों में आईवीआरआई के वैज्ञानिक बीमार या घायल पशुओं को रक्त चढ़ा देते हैं।
दूसरी बार जांच कंपलसरी
गाय या अन्य किसी गोवंशीय पशु को रक्त की जरूरत है तो दूसरे गोवंशीय पशु का रक्त पहली बार बिना जांच कराए ही चढ़ा सकते हैं, लेेकिन दूसरी बार रक्त चढ़ाने से पहले जांच करानी जरूरी है, अन्यथा प्रतिशत रीएक्शन का खतरा 30 रहता है। इस तरह ही भैंस को महिषवंशीय पशु का, घोड़ा को अश्व प्रजाति और बकरी को बकरी का ही रक्त चढ़ाया जाता है। आईवीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ। अमरपाल बताते हैं कि हर पशु के अलग-अलग रक्त समूह होते हैं। उन्होंने बताया कि आईवीआरआई में पशुओं के रक्त को सुरक्षित रखने के लिए ब्लड बैंक नहीं है, लेकिन यहां आने वाले पशुओं को आवश्यकता के अनुसार ही रक्त चढ़ा देते हैं। पशुओं का रक्त निकालने के लिए यहां पर ब्लड बैंक न होने की वजह से रक्तदान कराने के लिए पशु कम आते हैं। जिस व्यक्ति के पशु को आवश्यकता होती है, वह ही दूसरे पशु को लेकर आता है। वह बताते हैं कि रक्तदान करवाने में दो सौ रुपये का खर्च आ जाता है। उन्होंने कहा कि भेड़, बकरी, कुत्ता बिल्ली में 150 से 200 एमएल का एक यूनिट ब्लड होता है, जबकि गाय, भैंस, घोड़ा आदि बड़े जानवरों के रक्त का एक यूनिट 450 एमएल से 500 एमएल का होता है।