घर में ही भेदभाव

मैं रुढि़वादी सोच की भेंट चढऩे से बच गई, मगर मेरा संघर्ष खत्म नहीं हुआ। मुझे अपने ही घर में असमानता का शिकार होना पड़ा। घर के अंदर मेरा खाना, कपड़ा और रहन सहन मेरे भाइयों से कमतर रखा गया। मेरा इतना ही कसूर था कि मैं लड़की थी। मेरे जैसी दूसरी लड़कियों को भी ये झेलना पड़ता है। मेरे खाने में घी नहीं डाला जाता था। भाइयों को दूध का ग्लास देते समय मुझे नजरअंदाज किया जाता था।

-डिस्ट्रिक्ट के गांवों में 40 परसेंट परिवार लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलने देते और भेदभाव करते हैं।

मेरी स्टडी पर नहीं दिया ध्यान

मैं थोड़ा बड़ी हुई, स्कूली बैग कंधे पर टांगकर स्कूल में पढऩे की तमन्ना मेरी भी थी। मेरा भाई अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ता था। पर मां के लाख कहने के बाद मेरा दाखिला सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कराया गया। मैं अपने भाई को ड्रेस में सजा-धजा देखकर ही खुश हो लेती थी। मेरे मम्मी-पापा सोचते रहे, मेरा भाई ही उनके बुढ़ापे की लाठी बनेगा पर मैं भी उनके लिए कुछ करना चाहती थी।

-बरेली डिस्ट्रिक्ट में 5 साल से कम उम्र की 70 परसेंट लड़कियां स्कूल का मुंह नहीं देख पाती हैं।

स्कूल में सताता रहा डर

पढ़ाई के संघर्ष के बाद जब मैंने घर की दहलीज लांघी तो खुली दुनिया के साथ नई समस्याएं भी मिल गईं। जगह-जगह छेड़छाड़ और मानसिक प्रताडऩा का शिकार होना पड़ा। कॉलेज में डर रहता कि कोई सिरफिरा मनमानी न कर पाने के पागलपन में मुझ पर तेजाब न फेंक दे। मगर कॉन्फिडेंस के साथ इस फेज को पार किया। मुझे एक प्राइवेट फर्म में जॉब मिल गई । मैं अपना काम पूरी मेहनत से करती रही मगर अपने ही कलीग्स की बुरी निगाहें मुझे सालती रहीं।

-सिटी में इस साल 3 दर्जन से ज्यादा रेप के केस दर्ज हो चुके हैं। पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होने वाले 60 परसेंट मामलों में लड़कियों को उनके करीबी रिश्तेदारों से ज्यादा प्रताडऩा मिलती है।

हमेशा समझा गया पराया

करियर में एक मुकाम हासिल करके मैं अपने पेरेंट्स का सहारा बनना चाहती रही। मगर मेरे घरवाले मुझे पराये घर की समझते रहे। जल्द से जल्द मेरी शादी कर देने की कोशिश में रहे। किसी दूसरे के घर का सम्मान बनने के लिए दहेज का पुल जैसे-तैसे लांघा पर शादी के बाद भी मेरी मुश्किलें कम नहीं हुईं। मुझे दहेज उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा। सास-ननद के ताने सुनने पड़े।

- 2012 में बरेली में दहेज उत्पीडऩ के लगभग 364 मामले सामने आए हैं। 3 दर्जन से ज्यादा ऐसे मामले में दहेज प्रताडऩा के चलते जान गंवानी पड़ी।

और फिर मिला अकेलापन

शादी के उत्पीडऩ के बावजूद मैं घर की परंपराओं का निर्वाह करती रही। इस दौरान मुझे मातृत्व का सुख मिला। समय की धारा अविरल बहती रही और मेरे दोनों लड़कों की शादी हो गई। दोनों दूसरे शहरों में जॉब करते हैं। वे अपनी-अपनी जिंदगी में मगन हैं और सुख से हैं लेकिन मां शायद अब उनके लिए अहमियत नहीं रखती। हफ्ते में एक या दो बार फोन पर हालचाल की औपचारिकता से ज्यादा अब कुछ नहीं है।

- 30 परसेंट पेरेंट्स वृद्धाश्रम की शरण लेते हैं, जबकि 40 परसेंट वृद्ध घरों में घुटते रहते हैं।

(संकल्प संस्था का इनपुट)

Fact file

30 लाख मिसिंग

खुद सरकार के मुताबिक, 2011 में भारत में 30 लाख गर्ल चाइल्ड मिसिंग।

2.9 परसेंट कमी

2001 में टोटल फीमेल पॉपुलेशन में गर्ल चाइल्ड का परसेंटेज 15.8 था जो 2011 में 12.9 परसेंट रह गया।

7,50,000 एबॉर्शन

यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर साल 7,50,000 गल्र्स एबॉर्ट कराई जाती हैं।

पंजाब-हरियाणा टॉप पर

देश में करीब 80 परसेंट स्टेट्स में एबॉर्शन की संख्या बढ़ रही है। पंजाब व हरियाणा टॉप पर हैं।

और ये बनीं मिसाल

मेघा की मेधा के सब दीवाने

मानसिक मंदित होने के बावजूद आज वह कई बड़ों के लिए मिसाल हैं। सुनने और बोलने की क्षमता जन्म से ही न होने के बावजूद कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश ने मेघा को इतनी हिम्मत दी कि वह आज कंप्यूटर टीचर हैं। दीक्षा इंस्टीट्यूट से उन्होंने 12वीं तक की एजुकेशन हासिल की। भीड़ से कुछ अलग करने की चाहत के चलते मेघा ने आईआईएफटी से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी किया। हालिया समय में वह अपने जैसे कई बच्चों को एजुकेट करती हैं। वो भविष्य में भी अपने जैसे बच्चों को एजुकेट करने की इच्छा जाहिर करती हैं।

जज्बे ने बनाया सबके लिए नजीर

गुरबतों के दौर में ये उनका जज्बा ही था कि वह आज दूसरों के लिए नजीर बन चुकी हैं। हर दिन क्लास अटेंड करने के लिए कई किमी पैदल रास्ता तय करती थीं। घर में भाई बहनों की पढ़ाई का बोझ होने के बावजूद उनकी महत्वाकांक्षा ने उन्हें आज इस मुकाम पर पहुंचाया है। जिक्र कर रहे हैं सिटी की डिप्टी बेसिक शिक्षा अधिकारी विशू गबरियाल की। उन्होंने अपनी मेहनत से सोसाइटी में एक अलग पहचान बनाई। उन्होंने  मॉली गांव के प्राइमरी स्कूल में शुरुआती एजुकेशन ली। हायर एजुकेशन के लिए मध्यमवर्गीय परिवार से  होने के कारण सुविधाओं के अभाव में 10 किमी से ज्यादा का रास्ता उन्हें पैदल तय करना पड़ता था। मगर दृढ़ संकल्प से सफलता मिल ही गई. 

Report by: Abhishek Mishra