(हिमांशु अग्निहोत्री) बरेली। वर्षों से बंद पड़ी कुतुबखाना स्थित घंटाघर की टिक-टिक की आवाज फिर से बरेलियंस को सुनाई देने वाली है। क्योंकि बरेली स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है। इसका कार्य अब अंतिम चरण में है। 10 जुलाई के बाद इसके घंटे की गूंज फिर से कुतुबखाना बाजार में सुनाई देगी, इसकी इमारत के ऊपरी भाग में पूरी तरह ऑटोमेटिक डिजिटल घड़ी लगाई गई है, जो कि बंद होने के बाद ऑटोमेटिक टाइम को सेट कर लेती है। इसकी जीर्णोद्धार करीब 87 लाख रुपए की लागत से किया जा रहा है।

पहले था पुस्तकालय
साहित्यकार वसीम बरेलवी ने बताया कि वर्ष 1868 में ब्रिटिशकाल के दौरान इस जगह एक इमारत का निर्माण करवाया गया था, जिसका नाम टाउन हॉल रखा गया था। यह उस समय बरेली का प्रमुख केंद्र था। इस इमारत का निर्माण अंग्रेजी हुकुमत द्वारा कार्यालय व सामाजिक उपयोग के लिए किया जाता था। इसी टाउन हॉल में वर्ष 1868 में एक पुस्तकालय का निर्माण कराया गया था। जिसे कालांतर में कुतुबखाना कहा जाने लगा। क्योंकि उर्दू भाषा में पुस्तकालय को कुतुबखाना कहा जाता है। उस समय वह यहां पर घूमने आया करते थे। बाद में घंटाघर का निर्माण वर्ष 1975 में कराया गया। इसमें साइरन भी लगवाया गया था। लेकिन मुख्य बाजार में होने के कारण कुछ समय बाद यह अव्यवस्थाओं का शिकार हो गया। जिसके बाद घड़ी की टिक-टिक पर भी विराम लग गया।

नौ फीट की है घड़ी
चेन्नई की कंपनी इंडियन क्लॉक्स इसमें घड़ी लगाने का कार्य कर रह है। कंपनी से जुड़े वी सुब्रमण्यम बताते हैं कि घंटाघर में माइल्ड स्टील फुटग्रेड इंर्पोटेड एक्राइलिक डायल विद रोमन नंबर का इस्तेमाल किया गया है। इसका अलार्म 500 से हजार मीटर तक सुनाई देगा। इसके साथ ही इसमें 24 घंटे का बैट्री बैकअप है। यह जीपीएस से जुड़ी हुई है, जिससे सप्लाई बंद होने के बाद भी ऑटोमैटिकली सही टाइम शो हो सकेगा। इसमें हर घंटे पर अलार्म भी सुनाई देगा।

22 मीटर का है घंटाघर
कुतुबखाना में बने हुए घंटाघर की लंबाई 22 मीटर है। इसको चारों ओर से देखा जा सके, इसलिए इसकी चारों दीवारों पर नौ फीट की घड़ी लगी हुई है। इसका निर्माण कार्य जुलाई 2021 में शुरु हुआ था। साइट इंजीनियर हरिकेश यादव ने बताया कि इसकी हाइट पहले के मुकाबले दो मीटर बढ़ा दी गई है। साथ ही इसके फिनिशिंग का कार्य बाकि है। इसको दस जुलाई तक कंप्लीट करने का लक्ष्य निर्धाति किया है। आज इसका ट्रायल किया जाएग, जिसके बाद संचालन शुरु किया जा सकेगा।

स्पेशल रिपोर्ट- हिमांशु अग्निहोत्री

वर्जन
वर्ष 1989 से घंटाघर की देखभाल करने का दावा करने वाले मुख्तार अहमद डंपी बताते हैैं कि इस घंटाघर पर कभी टाउन हॉल की भव्य इमारत हुआ करती थी। साथ ही यहां पर किताबों का विशाल भंडार भी हुआ करता था। हालांकि अब घंटाघर ही यहां की पहचान रह गया है।

स्थानीय निवासी शमशाद अली खां बताते हैैं कि यहां पर कभी लाइब्रेरी हुआ करती थी। अब तस्वीर बदल चुकी है, अब यह घंटाघर लोगों की स्मृति में ही शेष है। पहले साइरन बजने पर लोगों को सही समय का अंदाजा हो जाता था। जीर्णोद्धार होने से लोग फिर इसकी आवाज को सुन पाएंगे।

घंटाघर का जीर्णोद्धार का कार्य लगभग पूरा हो चुका है, इसमें क्लॉक लगाने व फिनिशिंग का कार्य किया जा रहा हैैं। जल्द ही इसको शुरू कर दिया जाएगा।
-भूपेश कुमार सिंह, महाप्रबंधक, बीएससीएल