बरेली (ब्यूरो)। हर कोई अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहता है, लेकिन माता-पिता आर्थिक रूप से मजबूर होने की वजह से वेे बेबस हो जाते हैैं। आरटीई यानी की राइट टू एजुकेशन का मेन मकसद पिछड़े छात्रों को अच्छी पढ़ाई देना है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों के एडमिशन न देने के कई सारे बहाने रहते हैैं। अगर अभिभावक की ओर से कोई छोटी सी भी गलती हो जाए और एडमिशन न करना पड़े। ऐसे में अभिभावक स्कूल और बीएसए कार्यालय के चक्कर काटते रहते हैैं।
परेशान रहते हैं अभिभावक
अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई देने की चाह में पेरेंट्स कोई कसर नहीं छोड़ते हैैं। दिन-रात एक कर देते हैैं, लेकिन हर साल का अभिभावकों को परेशानी ही झेलनी पड़ती है। प्राइवेट स्कूल वाले स्कूल एडमिशन न देने करने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैैं। प्राइवेट स्कूल ने आरटीई को दर किनार करते हुए अपनी मनमानी करनी शुरू कर दी है और कई तो स्कूल तो एडमिशन न लेने के लिए टाल मटोल करते दिखाई दे रहे हैैं। स्कूल वाले एक एडमिशन लेने के लिए पेरेंट्स को स्कूल के पचासों एडमिशन चक्कर लगवा रहे हैैं। साथ ही स्कूल वाले अपनी सहूलियत के हिसाब से अभिभावकों को बुलाते हैैं। इसके अलावा स्कूल वाले पेरेंट्स को कागजी कार्यवाही में पसा देते हैैं की आपके डॉक्यूमेंट कंप्लीट नहीं है, इसे पूरा करों नहीं तो एडमिशन नहीं देंगे।
नहीं होगा एडमिशन
अभिभावकों से बात करने पर उन्होंने बताया कि प्राइवेट स्कूल वाले अपनी ही मनमानी करते हैैं और एडमिशन न देने के कई सारे बहाने बनाते रहते हैैं। उन्होंने बताया कि आरटीई के तहत उन्होंने फार्म भरा था। बीएसए ऑफिस से तो उनका फॉर्म पास भी हो गया, लेकिन स्कूल में एडमिशन कराने गए तो स्कूल वालों ने कागजों में तरह-तरह की कमियां निकालनी शुरू कर दी। वहीं दूसरे अभिभावक मुजफ्फर खान ने बताया कि उनकी दो बच्चे हैं और दोनों बच्चों का ही नाम लॉटरी के जरिए आ गया था, लेकिन स्कूल में एडमिशन के लिए जाने में स्कूल वाले तरह-तरह की बाते बताने लगे। पहली बार गए तो एक बच्ची का एडमिशन ले लिया और दूसरे का लेने से मना कर दिया। जिसके लिए एप्लीकेशन और सर्टीफिटेक दिया, लेकिन फिर भी एडमिशन नहीं दिया साथ ही बोला की बीएसए से मना हो गया। इसके बाद बीएसए कार्यालय आया तो उन्होंने यहां से बात की फिर भी कई बार न नकुर करते रहे। वहीं अब कल जाउंगा तो पता चलेगा की एडमिशन मिलेगा या नहीं।
स्कूल्स के बहाने
-कागज पूरे नहीं है
-एज में गड़बड़ है
-नाम की स्पेलिंग सही नहीं है
-हमारे यहां सीट फुल हो गई हैैं
-आधार कार्ड में एड्रेस चेंज है
-हमारे यहां एडमिशन क्लोज हो गए हैैं
-अभी स्कूल में टीचर नहीं है, जब आएंगे तब एडमिशन होगा।
केस 1: एक महीने से भटक रहे
अमित नाम के युवक ने बताया कि उनकी बेटी का नाम दूसरे चरण की लॉटरी में आया था। जिसके लिए वे बहुत ही खुश थे, स्कूल में एडमिशन कराने के लिए जैसे ही स्कूल गए तो स्कूल प्रशासन, स्कूल और बीएसए ऑफिस के चक्कर काटने को मजबूर करते रहे। वहीं एडमिशन किस तरह से रोक दिया जाए। इसके बहाने तलाश रहे हैैं। कई सारी एप्लीकेशन तक दे चुके हैैं।
केस 2:
आशिष ने बताया कि उनकी बच्ची का एडमिशन उनके ब्लॉक आंवला में हुआ है, लेकिन जिस स्कूल में हुआ वहां के टीचर्स डॉक्यूमेंट पूरे होने के बावजूद बहाने बना रहे हैैं और कह रहें हैैं की यह एडमिशन हमारे स्कूल और ब्लॉक का नहीं है।
राइट टू एजुकेशन के तहत हर प्राइवेट स्कूल 25 प्रतिशत सीट आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए रिजर्व होती है। इसका पालन नहीं करने वाले स्कूल को पहले तो समझाया जाता है और फिर भी अगर कोई नहीं मानता है तो उनकी मान्यता रद्द्र कर दी जाती है। विभाग के अधिकारियों द्वारा ऐसे स्कूल से बराबर पूछा जा रहा है कि स्कूल में एडमिशन न होने का कारण क्या है। इसके लिए बकाया जांच भी कराई जा रही है।
-आशीष, आरटीई इंचार्ज