बरेली (ब्यूरो)। शहर में स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए बर्बाद तो कर दिए लेकिन इनका संचालन आज तक नहीं हो सका। इससे ये स्मार्ट टॉयलेट प्रयोग से पहले ही कबाड़ होने की कंडीशन में आ चुके हैं। अफसरों की ही माने तो इनको बनाने का मकसद था कि सेंसर युक्त टॉयलेट का लाभ बरेलियंस को मिल सके। इतना ही नहीं टॉयलेट के बाद इसमें फीडबैक भी देना था ताकि जो कमी है उसमें सुधार हो सके। लेकिन दो साल से बंद पड़े स्मार्ट टॉयलेट का सेंसर आदि भी अब चोर उखाड़ ले गए हैं।

शोपीस बने खड़े
स्मार्ट सिटी लिमिटेड की तरफ से शहर के 12 अलग-अलग एरिया में स्मार्ट टॉयलेट बनाए गए थे। इसके लिए 5.97 करोड़ रुपए खर्च किए गए। 24 दिसम्बर 2020 से निर्माण शुरू हुआ और 15 अप्रैल वर्ष 2022 में इन टॉयलेट का निर्माण भी पूरा कर लिया गया। सेंसर युक्त स्मार्ट टॉयलेट में ऑटोमेशन में पूरा काम होना था। लेकिन बनने के बाद से इनका संचालन कराने के लिए जिम्मेदारों ने ध्यान नहीं दिया और ये स्मार्ट सेंसर युक्त टॉयलेट का पूरा सामान चोर उखाड़ ले गए। इससे स्मार्ट टॉयलेट तब से अभी तक धूल फांक रहे हैं।


क्या है इसका उद्देश्य
स्मार्ट सिटी मिशन और स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार का लक्ष्य सार्वजनिक स्वच्छता सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए शहर में स्मार्ट सार्वजनिक शौचालय स्थापित किए गए। इन शौचालयों से सिटी को स्वच्छ बनाने में हेल्प मिलेगी। साथ ही इसके माध्यम से शहर में पब्लिक प्लेसेस को स्वच्छ रखने में भी सहायता मिलेगी। गंदगी से छुटकारा दिलाने के लिए इन टॉयलेट्स में सेंसर आधारित फ्लश, ऑटो सफाई प्रणाली, प्रकाश व्यवस्था, कूड़ेदान आदि जैसी सुविधाएं हैं। इन्हें सार्वजनिक स्थानों, सडक़ों और अन्य उच्च फुटफॉल क्षेत्रों में इसीलिए बनाया गया है।

यहां बनाए गए स्मार्ट टॉयलेट
-गांधी उद्यान
-सिविल लाइंस
-बीआई बाजार
-सीडीओ आवास के पास
-सीआई पार्क
-बलवंत सिंह मार्ग
-संजय कम्युनिटी हॉल


इन सुविधाओं से लैस है टॉयलेट
-ऑन द स्पॉट फीडबैक
-लो मेंंटेनेंस
-ऑटोमेटिक फ्लशिंग सिस्टम
-इंटीग्रेटिड कंट्रोल कमांड सेंटर से निगरानी
-क्वॉइन कलेक्शन सिस्टम
-सेंसर बेस्ड
-आईटी इनेबल्ड


जहां पर जरूरत वहां नहीं
शहर के 25 अलग एरिया में स्मार्ट टॉयलेट का निर्माण कराने के लिए प्रस्ताव पास हुआ था। लेकिन मार्केट में इनके लिए कहीं जगह ही नहीं मिली। इसके बाद सिर्फ 12 स्मार्ट टॉयलेट ही बन सके। स्मार्ट टॉयलेट को कई ऐसी एरिया में भी बना दिया गया जो सिर्फ जगह को पूरा करती है लेकिन इतनी रकम खर्च करके स्मार्ट टॉयलेट उस एरिया में क्यों बनाया गया है इसका मतलब जिम्मेदारों को भी नहीं पता है। इससे साफ है स्मार्ट सिटी की रकम को सिर्फ खर्च करने पर अधिक फोकस रखा गया। पब्लिक की जरूरत को ध्यान में इतना नहीं रखा गया।


नहीं हो सके टेंडर
स्मार्ट टॉयलेट स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत बनाए तो गए लेकिन इनका टेंडर अभी तक नहंी हो सका। इनका टेंडर होना अभी बाकी हे। जबकि आचार संहिता से पहले भी टेंडर प्रक्रिया का यही हाल था। लेकिन अगर टेंडर नहीं होता तो स्मार्ट सिटी कंपनी खुद इसे चलवाएगी। दो साल हो गए, लेकिन न तो टेंडर हुए न ही स्मार्ट सिटी के अफसर इसे चलवाने का प्लान बना रहे हैं।