बरेली (ब्यूरो)। बरेली के शास्त्री नगर निवासी कोच अजय कश्यप की स्पोट्र्स में रूचि नहीं थी। केवल फिट रहने के लिए उन्होंने दौडऩा शुरूकिया था। अच्छा दौडऩे लगाते देखे उनके कोच दिनेश जैसवाल ने उन्हें सपोर्ट किया और उन्हें इलाहबाद हॉस्टल ले गए। यहां से 100 और 200 मीटर प्रतियोगिता में पार्टीसिपेट करना शुरू किया। कई बार फस्र्ट आए और मेडल पर कब्जा जमाया। स्पोट्र्स कोटा से उन्हें नौकरी मिली। इसके बाद सन् 2000 में रेलवे में टेक्नीशियन के पद पर स्पोट्र्स कोटा से बरेली में नौकरी करने लगे और यहीं से जरूरतमंद बच्चों को फ्री में कोचिंग देने लगे। इसके अलावा वह खुद भी कई गेम्स में पार्टीसिपेट करते रहते हैं।
स्पोट्र्स करियर की शुरूआत
अजय कश्यप बताते हैं कि जब वह 9वीं क्लास में थे तब उनकी स्पोट्र्स में रुचि बढ़ी। उनके स्कूल में एक रनिंग कंम्पटीसन का आयोजन हुआ था। इसमें उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया। उन्होंने पहला नेशनल गेम रानीगंज पश्चिम बंगाल में खेला। यहां 200 मीटर में दूसरा स्थान और 400 मीटर में पहला स्थान मिला। इसके बाद सीनियर नेशनल लखनऊ में 200 और 400 मीटर रनिंग में पार्टीसिपेट किया और दोनों में गोल्ड जीता। वह बताते हैं यहीं से उनका सेलेक्शन इंटरनेशनल गेम्स वेलारूस और फ्रांस के हुआ और पासपोर्ट नहीं बन पाने के चलते नहीं सके।
स्पोट्र्स कोटा से नौकरी
अजय ने बताया कि उन्होंने अपना पहला इंटरनेशनल सन् 1995 में राजा भलेंद्र सिंह में सात देशों की एथलीट मीट नई दिल्ली में खेला था। यहां 400 मीटर सिंगल में चौथा स्थान और 400 मीटर रिले में गोल्ड मिला था। इसके बाद 1997 में उनका सेलेक्शन स्पोट्र्स कोटा से सीआईएसएफ में हो गया और यहां दो साल नौकरी की। उन्होंने बताया कि इसके बाद सी पोर्ट बॉम्बे में एक साल, छह महीने बिहार पुलिस में और बीएसएफ आदि में भी स्पोट्र्स कोटा से नौकरी मिली। लेेकिन खेलने का मौका कम मिलने के चलते छोड़ दी। उन्होंने बताया कि 2010 में दिल्ली में हुए इंटरनेशनल इंडो-वेगाली मास्टर्स ईवेंट में पार्टीसिपेट किया था। यहां ट्रिपल जंप में दूसरा स्थान प्राप्त किया था।
स्पोट्र्स कोटा से सरकारी
अजय बताते हैं कि वह रेलवे इज्जतनगर में नौकरी करते हैं और यहीं रेलवे के ग्राउंड में जरूरतमंद एथलीटों फ्री तैयारी भी कराते हैं। वह जॉब के अलावा सुबह-शाम खाली समय निकालकर दो-दो घंटे एथलीटों को कोचिंग देते हैं। वह अब तक ऐसे बहुत सारे एथलीट तैयार कर चुके हैं जो नेशनल और इंटरनेशनल गेम्स में पार्टीसिपेट कर मेडल जीत चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनसे कोचिंग ले चुके 100 से अधिक एथलीटों की स्पोट्र्स कोटा से सरकारी नौकरी लग चुकी है। ये सभी एथलीट ग्रामीण या गरीब परिवारों से आते हैं। वह कोचिंग का कोई चार्ज नहीं लेते है।
ओलंपिक भेजने का सपना
वह करीब 20 सालों से जरूरतमंद एथलीटों को कोचिंग दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह इंटरनेशनल लेवल के एथलीट की तैयार कर रहें हैं। उनके कई एथलीट इंटरनेशनल ईवेंट का हिस्सा रह चुके हैं और आगे भी हिस्सा लेते रहेंगे। उनका सपना है कि एक दिन उनके एथलीट ओलंपिक में पार्टीसिपेट करेंगे और देश के लिए मेडल भी जीतेंगे।
मैने कई ऐसे बच्चों को देखा हैं जिनके पास खेलने की क्षमता बहुत होती है लेकिन अच्छा गाईडेंस न मिलने के कारण भटक जाते हैं। मै नहीं चाहता कि कोई ऐसा जरूरतमंद एथलीट छूटे जो बहुत आगे खेलना चाहता है और देश के लिए मेडल जीतना चाहता है। मै जनून से भरे खिलाडिय़ों की हर संभव मदद करने के लिए तैयार हंू। - अजय कश्यप, कोच